सारंगढ़-बिलाईगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सारंगढ़ /भटगांव, 25 अक्टूबर। मंगलवार को नगर के खेलभांटा मैदान में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विजयादशमी के अवसर पर गढ़ विच्छेदन का आयोजन किया गया।
यह सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिला बनने के बाद दूसरी बार कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम को राज परिवार द्वारा आयोजित किया। नवरात्र की समाप्ति के बाद विजयादशमी का पर्व अंचल में बड़े धूमधाम से मनाया गया, वहीं राज परिवार द्वारा मां समलेश्वरी की पूजा अर्चना करने के बाद नगर के खेल का मैदान पर पहुंचे, जहां गढ़ विच्छेद का आयोजन किया गया। यहां गढ़ विच्छेद में राज परिवार के राजा पुष्पा देवी ने संबोधित करते हुए मां समलेश्वरी की जयकारा लगाते हुए हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी यह आयोजन किया जा रहा है।साथ ही सब को विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएं दी गई। सैकड़ों वर्ष यहां सिर्फ परंपरा को जारी रखते हुए रावण का पुतला दहन किया गया। जिसमें इस वर्ष विजेता मोहनसिंह फूलझारिया 26 नम्बर द्वारा इस गढ़ उत्सव का विजेता हुआ और उसे राज परिवार द्वारा सम्मानित किया गया।
बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और रावण का पुतला दहन भी किया गया। वहीं नगर के गढ़ विच्छेदन के दौरान राज परिवार के राजा पुष्पा देवी एवं प्रवेश मिश्रा, राजपुरोहित,एवं अधिकारी कर्मचारी आदि के साथ पुलिस प्रशासन उपस्थित थे। हजारों की संख्या में मौजूद लोगों के बीच मिट्टी से बने किले के ऊपर सैनिक तैनात रहते हैं जो उस मिट्टी के किले पर चढऩे की कोशिश करते हैं उसे डंडो से मार कर नीचे गिराया जाता है जो उस किले पर चढ़ता है उसे विजय घोषित किया जाता। राज परिवार द्वारा सम्मानित की जाती है।
गोस्वामी परिवार बनाता है रावण
सारंगढ़ के प्रसिद्ध गढ़ उत्सव में गढ़ विच्छेदन के बाद रावण का पुतला दहन किया जाता है। यह रावण का पुतला को सारंगढ़ राजपरिवार के करीब और कोतरी के गोस्वामी परिवार के द्वारा तैयार किया जाता है।
1978 में सारंगढ़ के राजा मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेश चंद्र सिंह का स्वास्थ्य बिगड़ा उन्होंने इलाज के लिए मुंबई ले जाया गया। नवरात्रि शुरू होने वाली थी विजयादशमी का पर्व सामने था और उनके अनुपस्थिति रहने के स्थिति बन रही थी जांच पूरी हुई और 8 अक्टूबर के दिन डॉक्टर ने घोषित किया कि उन्हें गंभीर बीमारी नहीं है।
11 अक्टूबर को दशहरा था महल के बगीचे से कुछ ऊंचे और मोटे बांस लगाकर रावण बनाया गया गढ़ विच्छेद के पास खड़ा कर दिया गया उसके बाद राजा नरेश सिंह ने तीर चला कर रावण दहन की शुरुआत की। जहां यह परंपरा अब तक चली आ रही है और आज तक यह बरकरार है।


