सारंगढ़-बिलाईगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सारंगढ़, 19 अक्टूबर। शारदीय नवरात्र के प्रथम दिवस से मछली पसरा में दुर्गा भक्तों की भीड़ लग रही है। मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप का नाम कुष्मांडा है। मां कुष्मांडा अपनी मंद और हल्की सी मुस्कान मात्र से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली होने के कारण इन्हें कुष्मांडा कहा गया है।
कुष्मांडा का अभिप्राय कद्दू से है गोलाकार कद्दू के रूप में देवी मानव शरीर में प्राण शक्ति रूप में स्थित है। आठ भुजाओं के कारण यह अष्टभुजी मां दुर्गा कही गई। इनके सात हाथों में विभिन्न प्रकार के अस्त्र - शास्त्र यानी कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र तथा गदा है, आठवीं हाथ में सर्व सिद्धि और सर्व निधि देने वाली जपमाला है। देवी का सुरम्य दर्शन अभीष्ट फल प्रदायक है। मुख्य यजमान नरेंद्र चंद्रा संगीता चंद्रा जी हैं। कार्यक्रम के पुरोहित रेडा वाले शर्मा जी हैं। शर्मा जी ने बताया कि देवी का दर्शन नवनिधि,अष्टसिद्धि व अभीष्ट फल प्रदायक है। यह ब्रह्मांड की स्वामिनी व त्रिलोक की रक्षिका है। किसी भी दैविक, दैहिक, भौतिक तापों का शीघ्र निवारण करती है। इनके दर्शन से भक्ति व मुक्ति सहजता से प्राप्त होती है। सर्वरोग का नाश करती है, मां कुष्मांडा को मालपुआ का भोग अतिप्रिय है।


