सारंगढ़-बिलाईगढ़

किसी प्राणी के प्रति क्रूरता न करें, मनुष्यता का परिचय दें-देवी चित्रलेखा
13-Feb-2023 4:20 PM
किसी प्राणी के प्रति क्रूरता न करें,  मनुष्यता का परिचय दें-देवी चित्रलेखा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
 सारंगढ़, 13 फरवरी।
विधानसभा बिलाईगढ़  के अंतर्गत कसडोल विकासखंड के ग्राम कुरमाझर में स्कूल के सामने देवरीराज प्रखंड एवं ग्रामवासी कुरमाझर, कलमीदादर एवं मगरदरहा के तत्वाधान में 7 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया है। 

अंतरराष्ट्रीय कथा वाचिका देवी चित्रलेखाजी अपने मधुर वाणी में संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा का गुणगान कर रही हैं। कथा दोपहर 1 बजे से सायं 4 बजे तक आयोजित है। इस कथा का आस्था भजन टीवी चैनल में सीधा प्रसारण भी हो रहा है। जो लोग किसी कारण बस कथा स्थल तक नहीं पहुंच सकते हैं वे लोग घर बैठे ही टीवी या मोबाइल में आस्था भजन चैनल के माध्यम से सुनकर इस कथा का लाभ उठा सकते हैं।

कथा के द्वितीय दिवस शनिवार को आरती के बाद कथा का शुभारंभ करती हुई देवीजी ने बताई कि मानव जीवन में हम लोगों के लिए हरी नाम संकीर्तन ही सार है। साधना के सभी साधन ठीक हैं, किंतु अन्य साधनों को करने में कठिनाई  है। हम लोगों से हो पाएगा कि नहीं इसका कोई ठिकाना नहीं है, किंतु भगवत्नाम में कोई नियम नहीं है। उठते- बैठते, खाते- पीते, सोते- जागते 24 घंटे में किसी भी समय हर हालत में भगवत्नाम लिया जा सकता है। 

उन्होंने कहा, भगवत्नाम लेने में कोई विशेष नियम नहीं है, हर परिस्थिति में भगवत नाम कल्याणकारी है। शायद इसीलिए प्रात: स्मरणीय पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदासजी ने मानस में लिखे हैं कि नहि कलि कर्म न भगति विवेकू।  राम नाम अवलंबन एकू...नारदजी भी कहते हैं कि हरैर नामेव हरैर नामैव हरैर नामैव केवलम। कलौ नास्तैव नास्तैव नास्तैव गतिरन्यथा... यह मानव देह भगवत्कृपा से हम लोगों को अपना कल्याण करने के लिए मिला है। इसलिए मिले हुए समय को सही काम में, समाज हित के कार्यों में लगाकर समय रहते अपना कल्याण हम लोगों को कर लेना चाहिए। 
हमारे देश के 19वीं सदी के महान संत श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी महाराज अपने अमूल्य ग्रंथ साधन सुधा सिंधु में लिखते हैं कि समय का मूल्य समझे एवं इसका सदुपयोग कर अपना कल्याण कर लें। श्री परमात्मा कि इस विचित्र सृष्टि में मनुष्य शरीर एक अमूल्य एवं विलक्षण वस्तु है। यह उन्नति करने का एक सर्वोत्तम साधन है। इसको प्राप्त करके सर्वोत्तम सिद्धि( भगवत प्राप्ति) के लिए सदा सतत चेष्टा करनी चाहिए। भगवत्नाम स्मरण से नाम भगवान, नामी से मिला देते हैं। नाम ही अर्थात भगवान से मिलते ही मानव जीवन धन्य हो जाता है। उसका लक्ष्य पूरा हो जाता है। मनुष्य का अंतिम लक्ष्य वासुदेव: सर्वम की अनुभूति है। नाम महाराज की कृपा से यह बड़ी सरलता से हो जाता है। इसीलिए विनय पत्रिका में गोस्वामीजी लिखते हैं कि राम कहत चलु राम कहत चलु राम कहत चलु  भाई रे। नाहि त भव बेगारी मंह परिहैं छुटत अति कठिनाई रे। राम कहत चलु राम कहत चलु राम कहत चलू भाई रे।
देवीजी ने कथा सुनाती हुई आगे और बताई कि जो भगवान का हो जाए वही भागवत है। भगवान के निवास का नाम भागवत है। भगवान के उपदेश का नाम भागवत है। इसलिए जो भगवान से संबंध जोड़ ले वह भागवत हो जाता है। देवीजी ने और बोली कि सभी प्राणी भगवान के हैं। (सब मम प्रिय सब मम उपजाये) इसलिए किसी प्राणी चाहे चींटी हो या हाथी हो, किसी के भी प्रति क्रूरता का बर्ताव नहीं करना चाहिए। जब हम किसी का हित नहीं कर सकते हैं, तो बिना कारण के किसी को कष्ट पहुंचाने का अधिकार भी नहीं है ।अपने स्वार्थ एवं उदरपूर्ति के लिए किसी निरीह प्राणी को कष्ट पहुंचाना, मारना मनुष्यता नहीं है। यह कार्य कुरूरकर्मी, अधम राक्षसों का है। हम लोग मानव हैं, मनुष्यता का आचरण, बात व्यवहार करने में हमारी सोभा है। मनुष्यता का आचरण करने से भगवान भी प्रसन्न होते हैं एवं हमारी सहायता करते हैं। अधम कर्म करने का परिणाम भी अधम होता है। नीच काम करने पर नीच योनि में जन्म एवं कष्ट उठाना ही पड़ेगा क्योंकि यह संसार कर्म प्रधान है। गलत कार्य करने का फल भी गलत ही होगा। जो जैसा कर्म करता है उसे उसका वैसा फल भी मिलता है। इसलिए मानव देह मिला है तो बुरे कर्मों को त्याग कर मानवीय मूल्यो सत्य, तप, दया, दान, अहिंसा आदि का पालन हम मनुष्यों को करना ही चाहिए।
श्रीमद्भागवत के कथा सुनाती हुई देवीजी ने भगवान के अवतारों की कथा, सुकदेवजी, परीक्षित जी के जन्म की कथा, पांडवों के स्वर्गारोहण की कथा को संक्षेप में कहकर सुनाई। उन्होंने बताई कि वर्तमान समय में, जिस समाज में हम लोग जी रहे हैं, उसमें इन कथाओं का क्या उपयोगिता एवं सार्थकता है ,उसे हम किस रूप में स्वीकार करें कि वह हमारे परिवार, समाज व देश के हित में हो अपने सारगर्भित प्रवचन में कह करके  बताई। आगे उन्होंने और बताई कि आज के लोग बड़े स्वार्थी हो गए हैं। गाय बैल जो हमारे कृषि के आधार हैं, इसकी सेवा, देखभाल नहीं कर रहे हैं। जबकि भगवान कृष्ण स्वयं गोचरण करते हैं। उन्होंने गोचरण एवं गोपालन कर हमें एक आदर्श सिखाया है। उनका गोपाल नाम प्रसिद्ध है। गाय हर परिस्थिति में मानव समाज के लिए उपयोगी है । उन्हें कष्ट पहुंचा कर मानव समाज सुखी कभी नहीं हो सकता। गाय का हर पदार्थ उपयोगी है। गाय बैल के बिना कृषि अधूरा है। 
आज रसायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाइयों के प्रभाव से कृषि उत्पाद दूषित हो गए हैं। इनमें सुधार जैविक खेती से ही संभव है। गाय का गोबर कृषि के लिए उपयुक्त खाद है। आज बड़े-बड़े डॉक्टर भी गो अर्क को उपचार के लिये लिख रहे हैं। गौमाता हर काल में उपयोगी रही है एवं सदैव उपयोगी बनी रहेगी। स्वार्थ को त्याग कर गोपालन, गो सेवा हम लोगों को करना चाहिए। दुर्बल असहाय गायों को सडक़ में खुले नहीं छोडऩा चाहिए, उसे भी घर का एक सदस्य मानकर उसकी सेवा करना चाहिए इसी में  मनुष्यता है।

 


अन्य पोस्ट