राजपथ - जनपथ

मोदी मंत्रिमंडल में कौन?
मोदी कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा है। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का अंदाजा है कि अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है। फिलहाल छत्तीसगढ़ से एकमात्र रेणुका सिंह ही राज्यमंत्री हैं। फेरबदल की सुगबुगाहट के बीच रेणुका सिंह दिल्ली रवाना हो गई हैं।
पार्टी के भीतर रेणुका सिंह की जगह किसी दूसरे सांसद को मंत्री बनाने की मांग उठ रही है। रेणुका सिंह के विरोधियों का कहना है कि वे सिर्फ सरगुजा तक ही सीमित रही हैं, और उनके मंत्री बनने से छत्तीसगढ़ में भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ है। हालांकि आदिवासी महिला नेत्री होने की वजह से उन्हें मंत्री पद से हटाए जाने की संभावना कम ही दिख रही है। अलबत्ता, एक और सांसद को मंत्री बनने का मौका मिल सकता है।
पार्टी के भीतर बिलासपुर के सांसद अरूण साव के नाम की प्रमुखता से चर्चा है। वे साहू समाज से आते हैं, और प्रदेश में पिछड़ा वर्ग में सबसे ज्यादा आबादी इसी समाज के लोगों की है।
एक बड़ी अफवाह यह भी है कि भाजपा कांग्रेस के एक बहुत बड़े साहू नेता को अगले चुनाव के पहले कभी पार्टी में लाकर एक भूचाल की तैयारी में है।
लेकिन फिलहाल केंद्र में मंत्री बनने के लिए राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय का नाम भी चर्चा में है। देखना है कि फेरबदल में छत्तीसगढ़ को महत्व मिलता है, अथवा नहीं।
रेत में से तेल
कांग्रेस संगठन के एक बड़े नेता के बेटे की सक्रियता चर्चा में है। नेताजी तो प्रदेश के बाहर के हैं, और यदा-कदा ही बैठकों में हिस्सा लेने आते हैं। मगर उनके बेटे ने पिता के रसूख का फायदा उठाकर यहां अच्छा खासा कारोबार जमा लिया है। सुनते हैं कि यूपी से सटे जिलों में रेत खनन को लेकर काफी उठा पटक होती है, और इसमें दोनों राज्यों के नेताओं का दखल रहता है।
रेत खनन के चलते संसदीय सचिव चिंतामणि महाराज, और बलरामपुर-रामानुजगंज के कांग्रेस जिलाध्यक्ष के बीच खुली जंग भी चल रही है। मगर नेताजी के बेटे के हस्तक्षेप पर कोई खुलकर कुछ नहीं कह रहा है। अब तो बेटे ने रायपुर के बाहरी इलाके में स्थित रईसों की कॉलोनी में बंगला भी बुक करा लिया है। कुछ लोगों ने नेताजी के बढ़ते हस्तक्षेप की शिकायत हाईकमान से भी की है, और यदि बेटे के चक्कर में नेताजी पर गाज गिर जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
अब टीके के सर्टिफिकेट पर वापस मोदी
छत्तीसगढ़ सहित उन सभी राज्य सरकारों ने कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस भाषण के बाद राहत की सांस ली, जिसमें कोविड टीके के प्रबंधन केन्द्र सरकार ने पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया। छत्तीसगढ़ के अलावा पश्चिम बंगाल भी ऐसा राज्य था जहां 18 प्लस वालों को टीका लगाने का खर्च चूंकि राज्य सरकार को उठाया जाना था, सर्टिफिकेट में मुख्यमंत्रियों की फोटो लाई जा रही थी। इसके अलावा उन्होंने अपने राज्य के लिये अलग ऐप भी तैयार कर लिया था। छत्तीसगढ़ में यह सीजी टीका के नाम से लांच हो चुका है।
केन्द्र ने वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया था कि दिसम्बर महीने तक सबको कोरोना वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा गया है। अलग-अलग कीमतों को लेकर भी याचिका दायर है। भाजपा के नेता इस फैसले को मोदी सरकार की जबरदस्त उपलब्धि के रूप में प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस कह रही है मजबूरी में लिया गया फैसला है। जो भी हो, अब सब के लिये टीका छत्तीसगढ़ में केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध होगा। यह पर्याप्त मात्रा में पहुंचा, समय पर सबको लग गया तो श्रेय, किसी और को नहीं प्रधानमंत्री को जायेगा। नहीं लग पाया, टीके नहीं मिल पाये तब भी सवाल केन्द्र पर ही उठेगा। लोग मोदी के भाषण का अपनी-अपनी तरह से सार निकाल रहे हैं। लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि यह मांग कई महीनों से राहुल गाँधी ट्विटर पर करते आ रहे थे, मोदी सरकार कांग्रेस की सलाह कई हफ्ते देर से मानती है।
सिलगेर का संकट हर कोई देख रहा
सिलगेर मामले में जिस तरह से सरकार के पास जवाब देने के लिये तर्क कम होते जा रहे हैं और आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, पता चलता है कि नक्सल समस्या के खात्मे को लेकर उनके अब तक के प्रयास फीके हैं। इधर राज्यपाल भी सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं। पहले तीन और बाद में आई चार मौतों का गुस्सा, फिर पुलिस के कैम्प का भी हजारों ग्रामीण विरोध कर रहे हैं। आज की खबर है, लगातार आंदोलन के बीच दूर दराज के ग्रामीण भी राशन पानी लेकर धरने के लिये सिलगेर पहुंच रहे हैं। यानि आंदोलन तेज होगा। पुलिस कह रही है कि इसके पीछे नक्सलियों का हाथ है।
पुलिस और सुरक्षा बलों को अक्सर ग्रामीणों के बीच तालमेल बनाने के लिये दवा बांटते, उनके उत्सवों में भाग लेते, शिक्षा पर काम करते देखा गया है। पर लगता है काम कम प्रचार ज्यादा हुआ है। और अन्य विभागों के वे अफसर जिनके कामकाज के चलते नक्सलियों में सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ता है वे तो इस आपसी समझ बढ़ाने वाली प्रक्रिया से दूर ही हैं। अब साफ है कि आपस में भरोसा मजबूत नहीं हो पा रहा बल्कि खाई बढ़ रही है।
छत्तीसगढ़ के बाकी हिस्सों के लोग बस्तर कम जाते हैं। जो जाते हैं पर्यटन और व्यापार के काम से बड़े शहरों में, नक्सल समस्या को समझने के लिये तो बिल्कुल नहीं जाते। पर वे नक्सल समस्या का खात्मा होते देखना चाहते हैं। बाहर अब भी बहुत से लोग पूछा करते हैं, वही छत्तीसगढ़ जहां नक्सलियों का राज है?
राहुल का छत्तीसगढ़ कांग्रेस से जुडऩा
अब ये भी एक बड़ी खबर बन गई है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस को ट्विटर पर फॉलो करना शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने राहुल गांधी के फॉलो करने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा है कि इससे हम सबका हौसला बढ़ा। हम विश्वास दिलाते हैं कि कमल..खाकी... को जनता के बीच बेनकाब करके रहेंगे। देश को टूटने नहीं देंगे।
वैसे खबर तो यह होनी चाहिये कि राहुल गांधी अब तक फॉलो क्यों नहीं करते थे। आखिर उनकी पार्टी की सरकार छत्तीसगढ़ जैसे गिने-चुने राज्यों में ही तो बच गई है।