राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : ऐसे में यहां भी लाखों नाम कटेंगे!
23-Nov-2025 5:47 PM
राजपथ-जनपथ : ऐसे में यहां भी लाखों नाम कटेंगे!

ऐसे में यहां भी लाखों नाम कटेंगे!

आजकल हर घर में एक चर्चा चल रही है - मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण, यानी एसआईआर। 4 नवंबर से शुरू यह प्रक्रिया 4 दिसंबर तक चलेगी, लेकिन लाखों मतदाताओं को इसमें भारी परेशानी हो रही है। जशपुर से लेकर बस्तर तक की खबरें बताती हैं कि फॉर्म भरना हो या 2003 की पुरानी लिस्ट में नाम ढूंढना, सब कुछ जटिल लग रहा है। बिहार के फॉर्म से भी कठिन ये प्रपत्र, नाम न मिलना, ब्लैक एंड व्हाइट फोटो का भ्रम ये सब मिलकर लोगों को तनाव दे रहे हैं।

भारत निर्वाचन आयोग ने एसआईआर को मतदाता सूची को साफ-सुथरा बनाने के लिए शुरू किया है। छत्तीसगढ़ में 2.12 करोड़ से ज्यादा मतदाता हैं, और 99 फीसदी तक फॉर्म घर-घर पहुंच चुके हैं। जांजगीर का ही उदाहरण लें, यहां 7 लाख से ज्यादा फॉर्म बांटे गए, लेकिन सिर्फ 31 फीसदी ही डिजिटलाइज हो पाए हैं। ऑनलाइन आवेदन तो महज 1000 के आसपास ही हैं। बूथ लेवल अधिकारी फॉर्म तो दे जाते हैं, लेकिन नाम कैसे ढूंढें, फॉर्म कैसे भरें, उनको ये सिखाने का समय ही नहीं। वे खुद पूरी तरह नहीं सीखे हुए हैं। पोर्टल पर 2003 की लिस्ट डाउनलोड करने का लिंक है लेकिन नाम में जरा सा बदलाव  जैसे विवाह के बाद कुमारी से श्रीमती हो गया हो तो नाम गायब! कुछ दिलचस्प मामले हैं- एक महिला ने बताया, उनकी मां का वोटर आईडी गांव का है, 20 साल से शहर में हैं, लेकिन पुराना रिकॉर्ड ही नहीं मिल रहा। कोरबा के स्लम इलाकों से खबर है कि बीएलओ से लोग उल्टे सवाल पूछते हैं, महिला बीएलओ को अकेले जाना डरावना लगता है। शिविर लग रहे हैं, मितानिन और पार्षद मदद कर रहे, लेकिन समय कम है।

कहा गया है कि 1987 से पहले जन्मे लोगों के लिए कोई सरकारी आईडी चलेगी, लेकिन 1987-2004 वाले को जन्म प्रमाणपत्र या स्कूल सर्टिफिकेट देना होगा, उसके बाद वालों को सिर्फ जन्म प्रमाणपत्र। पहचान के लिए आधार, पैन, पासपोर्ट ठीक है लेकिन फोटो ब्लैक एंड व्हाइट ही हो या  कोई भी चलेगा इस पर भी भ्रम फैला है। आयोग ने कहा है कि पहले वाली फोटो धुंधली है तो ही नई लगेगी, वरना पुरानी ही चलेगी। गलत जानकारी पर जेल और जुर्माने का डर भी लोगों को रोक रहा। टोल-फ्री नंबर 1950 पर मदद मिल सकती है, मगर रोजमर्रा के कामकाज में उलझे लोग इसे मुसीबत समझ रहे हैं।

आधार न होने से आदिवासी समुदाय के लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। प्रवासी मजदूर छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में हैं- बिहार की तरह। छत्तीसगढ़ में भी यही आशंका है। अगर फॉर्म न भरा या नाम न मिला, तो वैध मतदाताओं के नाम कट सकते हैं। आयोग कहता है, कोई छूटेगा नहीं, लेकिन दिक्कतें साफ दिख रही हैं।

माथुर से मिलने का मौका

सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर के परिवार में राजस्थान के पाली में शनिवार को विवाह समारोह में सीएम विष्णुदेव साय, और सरकार के मंत्रियों ने शिरकत की। माथुर छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं। वो यहां के छोटे-बड़े नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर मिलते-जुलते रहे हैं। माथुर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद संगठन के प्रभार से मुक्त हुए, तब भी पार्टी के नेता उनके संपर्क में रहे हैं। 

और जब माथुर के भाई की बेटी की शादी हुई, तो छत्तीसगढ़ के भाजपा के नेता चार्टर्ड प्लेन से वहां पहुंचे थे। इनमें सरकार के मंत्री ओपी चौधरी, रामविचार नेताम, दयालदास बघेल, गजेन्द्र यादव, टंकराम वर्मा, गुरू खुशवंत साहेब के साथ ही सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी थे। धमतरी मेयर रामू रोहरा, और कारोबारी पप्पू भाटिया सहित कई उद्योगपतियों ने भी विवाह समारोह में शिरकत की। माथुर भले ही सक्रिय राजनीति से अलग हैं, और संवैधानिक पद पर हैं। लेकिन उनकी सिफारिशों को पार्टी तवज्जो देती है। इसकी झलक उनके यहां विवाह समारोह में भी नजर आई।

खुद के बनाए नियम बह गए..

सोशल मीडिया पर राजधानी रायपुर के एक समाज विशेष के मुखिया के यहां ‘कॉकटेल’ पार्टी  का वीडियो वायरल हुआ है। इसमें रशियन सुंदरियां मेहमानों को शराब परोसते दिखाई दे रही है। यह पार्टी चर्चा का विषय बना हुआ है। इसकी वजह यह है कि समाज के मुखिया ने बकायदा एक बैठक कर कुछ महीने पहले विवाह व अन्य कार्यक्रमों में शराब आदि के प्रचलन को रोकने के लिए 8 बिंदुओं पर फरमान जारी किया था। इसमें पूल पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के अलावा सगाई, और संगीत समारोह में शराब व हुक्का पिलाने पर पूरी तरह से रोक भी शामिल था। अब मुखियाजी ने खुद के यहां कॉकटेल पार्टी रखी, तो हडक़ंप मच गया। मुखियाजी के विरोधियों ने ‘पार्टी’ का वीडियो वायरल कर दिया। अब उन्होंने खुद के बनाए नियमों का उल्लंघन किया है, तो जवाब देना मुश्किल हो रहा है। मुखियाजी की कॉकटेल पार्टी का वीडियो कारोबारियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।

जंगल में पैदल चलतीं सरस्वती बेटियां

सरकार की सरस्वती साइकिल योजना का फायदा इन बच्चियों तक नहीं पहुंचा। बिलासपुर एटीआर के छपरवा गांव से आगे अमरकण्टक मार्ग पर केंवची के पास स्कूली बालिकाएं पैदल स्कूल जाती दिखीं। यहां करीब 100 से अधिक छात्राओं के पास एक भी साइकिल नहीं थी।

छात्राओं ने बताया कि योजना के तहत उन्हें साइकिलें जरूर मिली थीं, लेकिन उनकी गुणवत्ता बेहद खराब थी। साइकिलें दो-तीन महीने में ही टूट-फूट गईं, कई की चेन, ब्रेक और पैडल कुछ ही दिनों में जवाब दे गए। मरम्मत पर पैसा खर्च करना पड़ा, लेकिन फायदा नहीं हुआ। अब इन लड़कियों को रोजाना कई किलोमीटर पहाड़ी रास्ता पैदल तय करना पड़ रहा है। अभिभावकों का कहना है कि सरस्वती साइकिल योजना का हाल ‘बंदरबांट’ है। योजना का मकसद छात्राओं को शिक्षा से जोडऩा और दूरी की परेशानी कम करना था, पर साइकिलों की निम्न गुणवत्ता ने उद्देश्य को बेअसर कर दिया। यदि इस योजना की निष्पक्ष जांच हो, तो छत्तीसगढ़ में एक बड़ा स्कैंडल सामने आ सकता है।


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