राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : घर लौटे, मगर बेघर ही रह गए
09-Nov-2025 5:29 PM
राजपथ-जनपथ : घर लौटे, मगर बेघर ही रह गए

घर लौटे, मगर बेघर ही रह गए

करीब दो दशक पहले बस्तर के बीजापुर जिले से शुरू हुआ सलवा जुडूम आंदोलन अपने साथ ऐसी हिंसा लाया, जिसने सैकड़ों गांवों को उजाड़ दिया। लगभग 600 गांवों के करीब एक लाख से अधिक लोग अपने घरों से बेघर हो गए और पड़ोसी राज्यों में शरण लेने को मजबूर हुए।

अब वर्षों बाद, इनमें से कई लोग अपने गांवों की ओर लौटने लगे हैं। उन्हें लगता है कि सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई और नक्सली धड़ों के आत्मसमर्पण से माओवादी हिंसा का दौर अब खत्म होने की कगार पर है। मगर, घर लौटने वालों को यह उम्मीद जब हकीकत से टकरा रही है, तो पता चल रहा है कि उनके अपने घर, खेत और बाड़ी अब उनके नहीं रहे।

पड़ोसी राज्यों से लौटे भैरमगढ़ ब्लॉक के कई ग्रामीणों को यहां आने पर पता चला कि उनकी जमीनें बेच दी गई हैं। ये जमीनें रायपुर के कुछ उद्योगपतियों के नाम दर्ज हो चुकी हैं। पता चला है कि रायपुर की तीन कंपनियां, जो इंफ्रास्ट्रक्चर और इस्पात कारोबार से जुड़ी हैं-के डायरेक्टर्स के नाम पर करीब 120 एकड़ जमीन का नामांतरण कर दिया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने न कोई सौदा किया, न कोई रजिस्ट्री कराई। इनमें से ज्यादातर भूमि तो आदिवासी लैंड है, जिसे कानूनन गैर-आदिवासियों को बेचा ही नहीं जा सकता। अब ये ग्रामीण तहसीलदार और एसडीएम के दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। यह जानने के लिए कि उनकी जमीन कब और कैसे बिक गई?

अधिकारियों का भी कहना है कि कुछ न कुछ गड़बड़ी जरूर हुई है, क्योंकि जब मालिक स्वयं मौजूद नहीं थे, तो भूमि नामांतरण संभव ही नहीं होना चाहिए था। जांच के आदेश दिए गए हैं, लेकिन फिलहाल इन लोगों के लिए हकीकत यही है कि वे घर लौटे जरूर, पर अब भी बेघर हैं।

यह मामला एक बड़ा संकेत है कि बस्तर में नक्सल हिंसा समाप्त होने का अर्थ हर किसी के लिए अलग है। जहां स्थानीय समुदाय शांति, शिक्षा, स्वास्थ्य, सडक़ और पुल जैसी मूलभूत सुविधाओं की उम्मीद कर रहा है, वहीं बाहरी निवेशक यहां की कीमती जमीन, जंगल और खनिज संसाधनों के दोहन का अवसर देख रहा है।

बृहस्पति के हमले के आगे-पीछे

कांग्रेस के पूर्व विधायक बृहस्पति सिंह ने जिलाध्यक्ष बनाने के लिए प्रभारी सचिव जरिता लैटफलांग पर पैसे मांगने का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी है। इससे कांग्रेस में नाराजगी देखी गई है। अंबिकापुर में तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बृहस्पति सिंह के खिलाफ थाने में शिकायत भी दर्ज कराई है। जहां तक बृहस्पति सिंह का सवाल है, तो वो फिलहाल कांग्रेस से निष्कासित हैं, और माफीनामा देने के बाद भी उनकी पार्टी में वापसी नहीं हो पाई है। और अब उनके ताजा आरोप के बाद पार्टी में वापसी की संभावना फिलहाल खत्म होते दिख रही है।

इससे परे बृहस्पति सिंह के आरोपों को लेकर पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है। जरिता लैटफलांग, जिलाध्यक्षों के चयन में सीधा कोई रोल नहीं है। बावजूद इसके उन पर आरोप लगाए जाने पर कई तरह की चर्चा चल रही है। दरअसल, पार्टी ने तीनों प्रभारी सचिव जरिता लैटफलांग, सुरेश कुमार, और विजय जांगिड़ को अलग-अलग संभागों का प्रभारी बनाया है। जरिता सरगुजा संभाग में पार्टी संगठन का काम देख रही हैं। वो काफी मेहनत भी कर रही हैं।

पिछले महीने पार्टी ने सरगुजा के अलग-अलग जिलाध्यक्षों के चयन के लिए झारखंड के पूर्व पीसीसी अध्यक्ष राजेश ठाकुर, और विकास ठाकरे को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। जरिता, पूरे समय पर्यवेक्षक के साथ रहीं। पर्यवेक्षक ने अंबिकापुर, सूरजपुर, और बलरामपुर जिलाध्यक्षों के लिए पैनल हाईकमान को भेज दिया है। चर्चा है कि पार्टी पर्यवेक्षक की राय पर पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव की पसंद को तवज्जो दे सकती है। यानी अंबिकापुर से बालकृष्ण पाठक, और बलरामपुर जिले से के पी सिंहदेव का नाम फाइनल कर सकती है। ये सभी बृहस्पति सिंह के विरोधी माने जाते हैं।

 

बृहस्पति सिंह को इस बात का अंदाजा है कि टीएस सिंहदेव समर्थक जिलाध्यक्ष बन जाते हैं, तो उनकी पार्टी में वापसी मुश्किल हो सकती है। बृहस्पति सिंह की नाराजगी इस बात को लेकर रही है कि जरिता, जिलाध्यक्षों के चयन में  टीएस सिंहदेव कैम्प को मदद कर रही हैं। ऐसे में उन्होंने सूची जारी होने से पहले ही नियुक्तियों को लेकर कटघरे पर खड़ा करने की कोशिश की है। ये अलग बात है कि बृहस्पति सिंह के बयान का उल्टा असर हुआ है। पार्टी की गुटीय राजनीति में सिंहदेव विरोधी माने जाने वाले बड़े नेता भी बृहस्पति सिंह से नाखुश बताए जाते हैं।

पार्टी के कुछ लोगों का अंदाजा है कि बृहस्पति सिंह, कुछ हद तक अरविंद नेताम की राह पर चल रहे हैं। पार्टी में वापसी न होने पर वो नई पार्टी खड़ा कर सकते हैं। कुछ मिलाकर सरगुजा में भाजपा के लिए बृहस्पति सिंह की वजह से आने वाले समय में राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल हो सकती है। फिलहाल तो विधानसभा, लोकसभा, और स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा का दबदबा है। विधानसभा चुनाव में तीन साल बाकी है। ऐसे में बृहस्पति सिंह के तेवर को देखकर आगे क्या करेंगे, इसका अंदाजा लगाना कठिन है।

भूख मिटाने के लिए भटकते हाथी

सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक के साल्ही मोड़ पर नेशनल हाइवे 130 पर कोयला भरने के इंतजार में कई ट्रेलर खड़े थे। रात के अंधेरे में एक हाथी जंगल से निकलकर बाहर आया और गाडिय़ों के आसपास मंडराने लगा। एक ट्रेलर के केबिन का दरवाजा खुला था। हाथी ने सूंड डालकर भीतर रखा खाने का सामान निकाल लिया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। कुछ दिन पहले भी एक हाथी ट्रेलर के चक्कर लगाते हुए पाया था, उसका भी वीडियो प्रसारित हुआ था। कोयला उत्खनन के चलते सरगुजा-कोरबा में जंगल का दायरा लगातार घट रहा है। हाथियों के ठिकाने पर संकट गहराता जा रहा है। आए दिन हाथियों के हमले से लोगों के हताहत होने की खबर आ रही है।  हसदेव अरण्य को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे लोगों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि ऐसी स्थिति पैदा होगी।


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