राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जग्गी हत्याकांड का भूत फिर जोगी पर
08-Nov-2025 6:42 PM
राजपथ-जनपथ : जग्गी हत्याकांड का भूत फिर जोगी पर

जग्गी हत्याकांड का भूत फिर जोगी पर

बहुचर्चित रामअवतार जग्गी हत्याकांड पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। कोर्ट ने पूर्व सीएम अजीत जोगी के बेटे अमित को बरी करने के खिलाफ सीबीआई की अपील स्वीकार कर ली है, और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट जाने की अनुमति दे दी है। हाईकोर्ट इस पर सुनवाई करेगा, और इसमें अमित जोगी को पक्ष रखने का भी मौका होगा।

एनसीपी के तत्कालीन कोषाध्यक्ष रामअवतार जग्गी की वर्ष-2003 में हत्या हुई थी। पुलिस ने पहले प्रकरण दर्ज किया, और फिर सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई ने प्रकरण की जांच की। इस प्रकरण पर अमित जोगी व अन्य 28 लोगों को आरोपी बनाया गया। उनके खिलाफ हत्या, और साजिश रचने का आरोप लगा।

सीबीआई की टीम जम्मू-कश्मीर कैडर के आईपीएस अफसर जावेद गिलानी की अगुवाई में यहां डटी रही। उनके साथ सीबीआई के एडिशनल एसपी ए.पी.कौल ने भी भूमिका निभाई, और अमित जोगी व अन्य 28 लोगों को आरोपी बनाया। हालांकि सेशन कोर्ट ने अमित जोगी के खिलाफ  सुबूतों की कमी मानते हुए बरी कर दिया, मगर बाकियों को सजा हुई। ये अलग बात है सीबीआई ने उस समय भी मीडिया से चर्चा मेें अमित जोगी को बरी करने के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने की बात कही थी, लेकिन इसके लिए अनुमति मिलने में देरी होती गई। इधर, अमित जोगी को बरी करने के खिलाफ रामअवतार जग्गी के पुत्र सतीश जग्गी लगातार कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते रहे। अब सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की तो उन्हें हाईकोर्ट में जाने की अनुमति मिल गई। खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की 1373 दिन की देरी को माफ कर दिया। अब 22 साल पुराने रामअवतार जग्गी हत्याकांड की हाईकोर्ट में सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है। जग्गी परिवार को न्याय मिलने की उम्मीद है। वो अमित को मुख्य साजिशकर्ता मानते रहे हैं। ऐसे में यह प्रकरण एक बार फिर सुर्खियों में आ गया।

रेलवे का मुआवजा इतना कम क्यों लग रहा है?

बिलासपुर में हुई रेल दुर्घटना में मृतकों के परिजनों के लिए रेलवे ने 10 लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की, तो कांग्रेस नेताओं और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुआवजा बढ़ाने की मांग उठाई। किसी ने एक करोड़ रुपये, तो किसी ने 50 लाख रुपये तक देने की मांग की। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने आरोप लगाया कि मुआवजा राशि न देनी पड़े, इसलिए रेलवे ने मृतकों की वास्तविक संख्या छिपाई है।

इस दुर्घटना में कई परिवारों ने अपने कमाने-खाने वाले सदस्यों को खो दिया। कुछ युवा थे, जिनसे परिवार को आने वाले वर्षों में सहारे की उम्मीद थी। कुछ गृहिणियां और बच्चे भी मारे गए। बावजूद इसके, सभी मृतकों के लिए समान 10 लाख रुपये का मुआवजा घोषित किया गया। गंभीर रूप से घायलों के लिए 5 लाख और सामान्य घायलों के लिए 1 लाख रुपये की सहायता राशि तय की गई है। यह राशि आज के दौर में बेहद कम मानी जा रही है, विशेषकर उन परिवारों के लिए जो इस हादसे के बाद पूरी तरह बेसहारा हो गए।

यह मुआवजा राशि रेलवे अधिनियम 1989 की धारा 124 के तहत दी जाती है। साल 1990 में मृत्यु के मामलों के लिए 4 लाख रुपये का प्रावधान किया गया था, और यह राशि लगभग 19 वर्षों तक वही रही। बाद में दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मुआवजा बढ़ाने की मांग की गई। उस समय एक एयरक्रैश हुआ था, जिसमें मृतकों के परिवारों को 75-75 लाख रुपये का मुआवजा मिला था। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने सरकार को रेलवे का मुआवजा बढ़ाने का निर्देश दिया। वर्ष 2016 में, जब सुषमा स्वराज रेल मंत्री थीं, तब मुआवजा बढ़ाकर 8 लाख रुपये किया गया। यही दर आज भी लागू है, हालांकि रेलवे अपनी ओर से कुछ एक्स-ग्रेशिया जोडक़र प्राय: कुल 10 लाख रुपये देती है।

स्थायी विकलांगता के मामलों में भी मृतकों के बराबर मुआवजे का प्रावधान है, लेकिन बिलासपुर हादसे में ऐसा कोई मामला रेलवे को नहीं मिला। गंभीर घायलों को 5 लाख रुपये और मामूली घायलों को 64 हजार रुपये निर्धारित हैं, जिन्हें इस मामले में एक लाख रुपये दिए गए। चार नवंबर को ट्रेन पर सवार कई यात्रियों को चोटें आईं, लेकिन घबराहट और बदहवाली के कारण वे अस्पताल में भर्ती न होकर घर की ओर निकल गए। रेल प्रशासन के लिए यह भी एक प्रकार की सुविधा साबित हुई, क्योंकि इससे मुआवजे के दावे घट गए। रेलवे नियमों के अनुसार, अगर दुर्घटना पटरियों को पार करने, अनमैन फाटक पार करने या नियम उल्लंघन के कारण होती है, तो रेलवे की कोई जवाबदेही नहीं होती। इसी तरह, अगर कोई यात्री ट्रेन से चढ़ते या उतरते समय घायल होता है, तो मुआवजा पाने में उसे लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। कई मामलों में यह मुकदमे अदालतों में 3-4 साल तक चलते हैं।

आरक्षित टिकट से यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए टिकट के साथ वैकल्पिक बीमा सुविधा उपलब्ध होती है। लेकिन बिलासपुर की इस पैसेंजर ट्रेन में लगभग सभी यात्री जनरल टिकट से सफर कर रहे थे, जिनके लिए कोई बीमा प्रावधान नहीं होता है। रेलवे ने अपने कर्मचारियों के लिए एसबीआई जनरल इंश्योरेंस के साथ अलग से एमओयू किया है, जिसके तहत मृत्यु या स्थायी विकलांगता पर एक करोड़ रुपये तक का मुआवजा दिया जाता है।

रेलवे ने मुआवजा दरें तब बढ़ाईं जब दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया। हवाई दुर्घटनाओं के मामलों में मुआवजा मॉन्ट्रियल कन्वेंशन 1999 के अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार तय किया जाता है। इसीलिए हाल में हुए एयर इंडिया विमान हादसे में प्रत्येक मृतक के परिवार को लगभग 1.25 करोड़ रुपये मुआवजा मिला।

रेलवे से मुआवजा बढ़ाने की मांग भले राजनीतिक दिखाई दे, पर यह न्यायसंगत तो है। रेलवे की वर्तमान प्रणाली में आय, उम्र, पारिवारिक जिम्मेदारी और वास्तविक नुकसान की परवाह किए बिना सभी को एक समान मुआवजा दिया जा रहा है। शायद छत्तीसगढ़ के सांसद इस रेल दुर्घटना के बहाने दिल्ली में इस मुद्दे को उठाएं।

पिछड़े वर्ग पर नजरें 

भाजपा के रणनीतिकारों की नजर पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर है। भूपेश सरकार ने पिछड़ा वर्ग कल्याण के लिए अलग विभाग बनाया था, लेकिन साय सरकार ने एक कदम आगे जाकर स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया है। जायसवाल खुद पिछड़ा वर्ग की कलार बिरादरी से आते हैं। उन्होंने समीक्षा बैठक कर पिछड़ा वर्ग संचालनालय अलग कर संचालक नियुक्त करने की अनुशंसा की है।

प्रदेश में आधे से ज्यादा आबादी पिछड़ा वर्ग की है। पार्टी के रणनीतिकार पिछड़ा वर्ग के अलग-अलग समाजों के नेताओं को प्रमोट भी कर रही है। सरकारी स्तर पर पिछड़ा वोटरों पर पकड़ बनाने के लिए लंबित समस्याओं को पूरा करने की दिशा में कदम भी उठा रही है। जायसवाल ने पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों को मिलने वाले छात्रवृत्ति को बढ़ाने की भी कोशिश में जुटे हैं। यही नहीं, पिछड़ा वर्ग का बड़ा सम्मेलन बुलाने की योजना पर भी काम चल रहा है। इसमें कई घोषणाएं हो सकती हैं। देखना है कि पार्टी और सरकार के प्रयासों का कितना फायदा मिलता है।


अन्य पोस्ट