राजनांदगांव

दीयों से दूसरों के घरों को रौशन कर रहे कुम्हारों की जिंदगी में अंधेरा
25-Oct-2024 2:46 PM
दीयों से दूसरों के घरों को रौशन कर रहे कुम्हारों की जिंदगी में अंधेरा

 पीढ़ी-दर-पीढ़ी मिट्टी को आकार दे रहे कुम्हारों का जीवन संघर्षभरा 

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 25 अक्टूबर।
पीढ़ी-दर-पीढ़ी मिट्टी को आकार दे रहे शहर से सटे मोहारा वार्ड के कुम्हारों की जिंदगी में अब भी अंधेरा छाया हुआ है। दीयों से दूसरों के घरों को रौशनी देने वाला यह वर्ग संघर्ष से घिरा हुआ है। वजह यह है कि एक वर्ग लगातार आर्थिक ऊंचाईयों की ओर बढ़ रहा है। जबकि कुम्हारों द्वारा तैयार किए गए मिट्टी से निर्मित घरेलू सामानों के बगैर लोगों की जरूरतें अधूरी रहती है। तेज धूप व बारिश और विपरीत मौसम की मार झेलकर यह वर्ग पेशेवर जरूर हैं, लेकिन उचित दाम नहीं मिलने से कुम्हारों को आर्थिक फायदा नाममात्र का होता है। ऐसी स्थिति में कुम्हारों की जिंदगी में कोई अहम बदलाव नहीं हुए हैं। सप्ताहभर बाद दिवाली से हर घर रौशन होगा। कुम्हारों का कुनबा दीया तैयार कर थोड़ी कमाई होने की उम्मीद लगाए हुए हैं। मोहारा वार्ड में कुम्हारों की एक बड़ी आबादी है। शिवनाथ नदी के तट से बरसों से कुम्हार मिट्टी लेकर घड़े, दीये, जाता, बैल, खिलौने व अन्य सामान तैयार करते हैं। मेहनतकश यह वर्ग अब भी प्रशासनिक और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार है। 

इस संबंध में कुम्हार महेश प्रजापति का कहना है कि परंपरागत रूप से काम को आगे ले जा रहे हैं, लेकिन आर्थिक फायदा नहीं मिल रहा है। महंगाई के कारण कुम्हारों को अपने परंपरागत कार्यों को सुचारू रूप से चलाने में चिंता भी हो रही है। महेश प्रजापति आर्थिक रूप से प्रशासन से मदद की भी उम्मीद रखे हुए हैं।

इसी तरह एक और कुम्हार संजू प्रजापति ने बताया कि बुजुर्गों के द्वारा दिए गए हुनर को वह आगे ले जा रहे हैं। उनका कहना है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह काम सभी कर रहे हैं। दिवाली पर्व में अच्छी कमाई होने की उम्मीद लेकर दीये और मूर्तियां तैयार कर रहे हैं। उम्मीद है कि उन्हें इसका लाभ मिलेगा। इस बीच कुम्हारों की बस्ती में हर परिवार मिट्टी को आकार देकर दिवाली पर्व में मोटी कमाई करने की जुगत में है, लेकिन कीमतें सही नहीं मिलने पर उन्हें घाटा होने का भी खतरा रहता है। कुम्हारों का कहना है कि मेहनत में उनकी कोई कमी नहीं है, लेकिन बेहतर दाम नहीं मिलने से मायूसी भी होती है। बहरहाल दिवाली पर्व पर बाजार में एक ओर हलचल बढ़ी है। वहीं कुम्हार अपने हुनर से तैयार किए गए सामानों को बेचकर दिवाली मनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं।

आकर्षक लाईटों से घटी दीयों की मांग
परंपरागत रूप से घरों को रौशन करने के लिए दीयों की मांग हाल के वर्षों में आकर्षक विद्युत लाईटों की जगह लेने से घट गई है। परंपरागत दीयों से घरों को रौशन करने का रिवाज रहा है, लेकिन कुछ सालों में विद्युत लाईटों से घरों को आकर्षक रूप देने के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है। जिसका असर सीधे कुम्हारों के कारोबार पर पड़ा है। घरों में दीया जलाने की परंपरा अब एक औपचारिक मात्र रह गई है। कुछ साल पहले घरों को दीयों से ही रौशन किया जाता था। बदलते दौर और आधुनिकीकरण के प्रभाव से दीयों की मांग घटने लगी है।


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