राजनांदगांव

लीलाराम भोजवानी सियासत के महारथी के तौर पर अविस्मरणीय यादें छोड़ गए
17-Aug-2023 11:34 AM
लीलाराम भोजवानी सियासत के महारथी के तौर पर अविस्मरणीय यादें छोड़ गए

 साइकिल मरम्मत से लेकर राजनीति के ऊंचे ओहदे तक सफर रहा शानदार 

'छत्तीसगढ़' संवाददाता
राजनांदगांव, 17 अगस्त।
अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री लीलाराम भोजवानी अब हमारे बीच नहीं रहे। बुधवार देर शाम को राजधानी रायपुर के एक निजी अस्पताल में उपचारार्थ दाखिल भोजवानी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। पिछले दिनों किडनी में संक्रमण की शिकायत पर उन्हें गंभीर हालत में रायपुर में भर्ती किया गया था। लगभग 82 वर्ष की उम्र में उन्होंने कल अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से राजनीतिक व सामाजिक जगत में शोक व्याप्त है।

भाजपा और गैर भाजपा दल उनके निधन की खबर से स्तब्ध है। राजनीति को अपना कैरियर बनाने वाले भोजवानी का सियासी सफरनामा संघर्षभरा रहा है। साइकिल की एक छोटी दुकान से लेकर सियासत के ऊंचे ओहदे तक पहुंचे भोजवानी ने जीवन पर्यंत संघर्ष के बदौलत अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। 1965 में राजनीतिक सफर पर निकले भोजवानी ने जनसंघ के जमाने से सक्रियता मृत्यु पर्यंत बनाए रखी। बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर भोजवानी  हर राजनीतिक, गैर राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल होने आतुर रहे। उनका यही व्यवहार आम लोगों के बीच विशेष पहचान बनाने का आधार रहा।

भाजपा के अस्तित्व में आने के बाद से पार्टी के लिए भोजवानी  हमेशा समर्पित रहे। उनकी इसी निष्ठा के मद्देनजर संगठन ने 1984 में विधानसभा का टिकिट दिया। कांग्रेस के उस वक्त के दबंग व लोकप्रिय उम्मीदवार बलबीर खनूजा के हाथों भले ही वह पहले चुनाव में पराजित हुए, लेकिन 1990 में मिली दूसरी बार की टिकट से भोजवानी ने श्रीकिशन खंडेलवाल को मात दिया। इस शानदार जीत के फलस्वरूप मध्यप्रदेश में सुंदरलाल पटवा की सरकार में उन्हें श्रम मंत्री के पद से नवाजा गया। 1993 में वह स्व. उदय मुदलियार से पराजित हुए। 1998 में उन्होंने पिछली हार का बदला लेते हुए मुदलियार को शिकस्त दी। 2003 के विधानसभा चुनाव में भोजवानी फिर मुदलियार से महज 40 वोटों के अंतर से पराजित हुए। इस तरह भोजवानी दो बार राजनांदगांव से विधायक निर्वाचित हुए। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में भोजवानी को नागरिक आपूर्ति चेयरमेन बनाया गया। न सिर्फ उन्होंने सत्ता में बल्कि भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष के जरिये संगठन की सेवा की। वैसे भोजवानी का सिंधी समाज में भी काफी मान रहा। सादगीपूर्वक राजनीति करने वाले भोजवानी की 'हंसी ठिठोली' भी यादगार रही। उनके ठहाके देखकर  हर कोई प्रभावित रहता था।

भोजवानी की राष्ट्रीय नेताओं से भी काफी नजदीकियां रही। वह हमेशा पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, मुरलीमनोहर जोशी, सुंदरलाल पटवा के करीबी रहे।  यही कारण है कि उन्होंने अपने हंसमुख व्यवहार के दम पर राष्ट्रीय राजनीति में भी मजबूत संबंध बनाए रखे। ताउम्र भोजवानी का गैर भाजपा नेताओं से भी मधुर संबंध रहे। भले ही विरोधी दल के नेता सियासी मजबूरी के चलते उनके खिलाफ रहे, पर व्यक्तिगत तौर पर हमेशा भोजवानी से रिश्ते सौहाद्र्रपूर्ण रहे। सियासत के महारथी के तौर पर भोजवानी ने अविस्मरणीय याद को पीछे छोड़ दिया है।  
 


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