राजनांदगांव
चुनावी साल में बढ़ रहे अंर्तद्वंद से बढ़ी खेमेबाजी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 17 मार्च। सूबे में सत्ता वापसी के लिए बेताब भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के गढ़ माने जाने वाले राजनांदगांव क्षेत्र में खेमेबाजी को लेकर हलाकान है। चुनावी साल में पार्टी के भीतर अंर्तद्वंद से गुटीय लड़ाई ने संगठन की ताकत को ताक में रख दिया है। पूर्व सीएम के राजनीतिक प्रभाव वाले जिले में स्थानीय नेताओं की आपस में पटरी नहीं बैठ रही है। कहा जा रहा है कि प्रदेश नेतृत्व वस्तु स्थिति से अवगत है, और जल्द ही इस पर अकुंश लगाने के लिए ठोस कदम उठा सकता है।
बताया गया कि राजनांदगांव में पार्टी में समन्वय और संवाद की स्पष्ट कमी से कार्यकर्ता पेशोपेश में है। इसलिए भाजपा की सांगठनिक स्थिति ऊपरी तौर पर मजबूत दिख रही है, लेकिन अंदरखाने सियासी मतभेद ने संगठन को कमजोर कर दिया है। पिछले कुछ महीनों के भीतर गुटीय लड़ाई चरम पर पहुंची है। मौजूदा जिलाध्यक्ष रमेश पटेल ने पदभार सम्हालने के बाद संगठन को दुरूस्थ करने का बीड़ा उठाया, पर उनकी ताजपोशी से दीगर नेताओं ने संगठन से दूरी बढ़ा ली है। अध्यक्ष बनने के बाद पटेल का एक नया गुट तैयार हो गया है। पुराने नेता उनके साथ समन्वय और तालमेल बिठाने तैयार नहीं है।
इस बात से प्रदेश नेतृत्व भी अच्छी तरह वाकिफ है। बताया जा रहा है कि भाजपा के भीतर आधा दर्जन से ज्यादा नेताओं ने अपने गुट बना लिए हैं। राजनांदगांव लोकसभा में शामिल चारों जिलों में मौजूदा सांसद संतोष पांडे भी एक गुट का नेतृत्व कर रहे हैं। पांडे राजनीतिक तौर पर कवर्धा में सक्रिय हैं। उनकी स्थानीय संगठन नेताओं और कार्यकर्ताओं से दूरी जगजाहिर है। पूर्व सांसद श्री यादव भी संगठन से दूरी बनाकर चल रहे हैं। यादव भी अपने समर्थकों वाली एक गुट का नेतृत्व कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से जुड़े नेता आज भी उनसे संपर्क में जरूर हैं, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते कुछ नेताओं ने अपनी राह चुन ली है।
बताया जा रहा है कि भाजपा में शिकवा-शिकायतों का दौर चरम पर है। भाजपा सूत्रों की माने तो गुटीय लड़ाई के कारण पार्टी में कई गुट अस्तित्व में आ गए हैं। आपसी खंीचतान के चलते पार्टी में एका गायब हो गई है। राजनीतिक तौर पर इसके पीछे ज्यादातर नेता संगठन में एकाधिकार हासिल करने की कार्यशैली को अपना चुके हैं। राजनांदगांव में पुराने दिग्गज नेताओं की पूछपरख कम हुई है। पूर्व सांसद अशोक शर्मा, पूर्व मंत्री लीलाराम भोजवानी, और सीनियर नेता खूबचंद परख, पूर्व जिलाध्यक्ष सुरेश एच. लाल व सुरेश डुलानी भी मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों से एडजस्ट नहीं करने के कारण संगठन की गतिविधियों से दूर हैं। दूसरी पंक्तियों के नेता पूर्व जिलाध्यक्ष संतोष अग्रवाल, सचिन बघेल, दिनेश गांधी व अन्य भी संगठन में चल रही सियासी दांव-पेंच के चलते किनारे हो गए हैं।
बताया जा रहा है कि आने वाले महीनों में भाजपा की लड़ाई भी खुलकर सामने आ सकती है। कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री के क्षेत्र में चुनावी वर्ष में बढ़ रही खींचतान से कांग्रेस से मुकाबला करने की पार्टी की रणनीति पर प्रतिकूल असर पडऩा तय है। पिछले कुछ महीनों से हो रहे धरना प्रदर्शन और अन्य राजनीतिक गतिविधियों में दिग्गजों और अन्य नेताओं की दिलचस्पी घट गई है। पार्टी के भीतर बेलगाम होती गुटीय लड़ाई से प्रदेश नेतृत्व भी त्रस्त हो गया है। ऐसे में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की भाजपा की कोशिशों को उनके ही पार्टी की गुटबाजी से गहरा नुकसान हो सकता है। प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव, और सह प्रभारी नितिन नबीन जिले की गुटबाजी से अवगत है। चर्चा है कि जल्द ही पूर्व मुख्यमंत्री से मिलकर कोई ठोस कदम उठा सकते हैं।


