राजनांदगांव

कोमल की किस्मत उपचुनाव से थी बदली
24-Mar-2022 12:04 PM
कोमल की किस्मत उपचुनाव से थी बदली

  देवव्रत सिंह के निधन से खाली सीट पर आजमा रहे किस्मत  

प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 24 मार्च (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। खैरागढ़ सीट के लिए कोमल जंघेल एक बार फिर से मैदान पर है। खैरागढ़ की राजनीति में कोमल की करीब डेढ़ दशक पहले 2007 में हुए उपचुनाव किस्मत बदल दी। यह संयोग है कि कोमल जंघेल ने उस वक्त भी दिवगंत देवव्रत सिंह  के लोकसभा सांसद निर्वाचित होने से छोड़े खैरागढ़ सीट से चुनाव लड़ा था। अब सिंह के निधन से रिक्त हुए सीट पर हो रहे उपचुनाव में कोमल जंघेल पर भाजपा ने दांव लगाया है।

जंघेल के लिए यह उपचुनाव कितना फलकारी होगा यह गर्भ में है, लेकिन कोमल को उपचुनाव से ही राजनीति में नए मुकाम मिले। 2007 के उपचुनाव में कोमल के पक्ष में ‘महल से हल टकराएगा’ के नारे ने जीत के द्वार खोल दिए। कोमल ने उपचुनाव में देवव्रत की पूर्व पत्नी पदमा सिंह को बड़े अंतर से मात दी। यहीं से कोमल की सियासी पारी परवान चढ़ी।

करीब डेढ़ साल बाद हुए 2008 के विस चुनाव में कोमल ने फिर से जीत का परचम लहराकर पार्टी नेतृत्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। इस चुनाव में मिली जीत के एवज में उन्हें संसदीय सचिव का दर्जा दिया गया। कोमल ने इस ओहदे पर रहते जमीनी राजनीति मे अपनी पकड़ बनाए रखा।


हालांकि वह 2013 और 2018 के विस चुनाव में लगातार दो बार परास्त हो गए। पिछले विस चुनाव में वह मात्र 782 वोटों से हारे, लेकिन वह भाजपा की राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब हुए। संगठन में उन्हें भाजपा के पिछड़ा वर्ग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। वर्तमान के उपचुनाव में कोमल ने पांच बार भाजपा की टिकट लेकर इतिहास रच दिया।

राजनांदगांव की सियासत में यह याद नहीं पड़ता कि किसी दल ने बतौर प्रत्याशी किसी को पांच मर्तबा मौका दिया। कोमल जंघेल को अधिकृत प्रत्याशी बनाए जाने के ऐलान के साथ यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि क्या कोमल की राजनीति फिर से उपचुनाव में बाजी मारने के साथ पटरी पर लौटेगी।

कोमल ने मैदान में उतारने के साथ कांग्रेस के लिए मुकाबला कठिन हो गया है। वैसे भी कोमल लोधी समाज के बड़े और चर्चित चेहरे है। सियासी दांव-पेंच में वह माहिर भी है। पिछले 15 साल से खैरागढ़ की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमती रही है। सत्ता-संगठन का उन्हें खासा अनुभव भी है।


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