राजनांदगांव

प्रेम सहनशक्ति बढ़ाता है-संवेग रतन सागर
21-Jan-2022 5:55 PM
प्रेम सहनशक्ति बढ़ाता है-संवेग रतन सागर

प्रेम से ही परमात्मा की प्राप्ति और मुक्ति संभव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 21 जनवरी।
जैन मुनि संवेग रतन सागर जी ने कहा कि प्रेम सहन शक्ति बढ़ाता है और प्रेम से ही हमें परमात्मा की प्राप्ति और मुक्ति होती है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को स्व प्रिय होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक जीव स्व का प्रिय नहीं होता, तब तक उसका उद्धार नहीं होता।

मुनिश्री ने कहा कि स्व प्रिय होने के साथ-साथ व्यक्ति को परिवार प्रिय और फिर लोकप्रिय होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि क्या हम अपने परिवार के प्रिय हैं, क्या हमारे परिवार के लोग हमारे साथ समय व्यतीत करना चाहते हैं, ऐसा कार्य करें कि परिवार के लोग हमें प्रेम करें। यही नहीं हम लोकप्रिय भी हों। मुनिश्री ने गुलाब और कांटे के बीच की वार्ता का दृष्टांत देते कहा कि कांटा गुलाब से कहता है कि वह सबसे जल्दी आता है और सबसे देर से जाता है। जबकि गुलाब सबसे बाद में आता है और सबसे पहले चले जाता है । कभी-कभी तो चाहने वाले कुचल भी देते हैं। इस पर गुलाब जवाब देते कहता है कि मैं सबसे पहले स्व का प्रिय हूं। इसके बाद अपने परिवार का भी प्रिय हूं। इसके अलावा मैं लोकप्रिय भी हूं । यदि मुझे कोई कुचलता है तो भी मैं उसके पैरों को सुगंधित कर देती हूं। मैं लोगों से प्रेम करती हूं, इसलिए ईश्वर के करीब हूं । उन्होंने कहा कि गुलाब की तरह ही अपने जीवन में प्रेम लाओ, कांटों की तरह लोगों को दुख मत दो और सबसे कटे कटे से मत रहो।

मुनिश्री ने कहा कि पुण्य की यदि चाहत है तो प्रेम करो, क्योंकि पुण्य शक्ति देता है। पुण्य रहा तो आप एक अच्छे लेखक हो सकते हैं, गायक हो सकते हैं या कुछ और हो सकते हैं, किन्तु प्रेम, पुण्य को शक्ति देता है। उन्होंने कहा कि जिसके केंद्र में पुण्य होता है उसे शक्ति की प्राप्ति होती है और जिसके केंद्र में प्रेम होता हैए उसे परमात्मा की प्राप्ति होती है। मोक्ष की प्राप्ति होती है, जो स्वयं को संभाले वह पुण्य हैं और जो स्वयं के साथ-साथ दूसरों को भी संभाले वह प्रेम है। हम प्रेम को हृदय में स्थान देकर सद्गति प्राप्त करें एपरम गति प्राप्त करें।

मनुष्य जन्म मोक्ष का प्लेटफार्म -अभिषेक
अभिषेक मुनि ने कहा कि मनुष्य का जन्म मोक्ष का प्लेटफार्म होता है और इस प्लेटफार्म में आने के बाद भी यदि कोई मोक्ष से दूर हो जाए तो यह मूर्खता ही है। जीवन में सुख को प्राप्त करना है, मुक्ति को प्राप्त करना है तो पुरुषार्थ करना होगा। इसके लिए सब कुछ न कुछ त्याग करें। उन्होंने कहा कि हम अपने स्वभाव में परिवर्तन लाएं, जो स्वभाव परमात्मा को पसंद नहीं है, उसे बदले। द्वेष, क्रोध एवं पूर्वाग्रह को त्यागें। पूर्वाग्रह मन में मैत्री का भाव आने नहीं देता। हर व्यक्ति अच्छा होता है, वह कर्मों से खराब कार्य करता है। किसी व्यक्ति के प्रति द्वेषभाव नहीं रखना चाहिए।
 


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