रायपुर

जमाएत का अभियान-नैतिकता ही स्वतंत्रता
14-Sep-2024 4:45 PM
जमाएत का अभियान-नैतिकता ही स्वतंत्रता

रायपुर, 14 सितंबर। जमायएते इस्लामी हिंद के रायपुर शाखा के मो. रजा कुरैशी और महिला सदस्यों ने बताया कि राष्ट्रव्यापी अभियान नैतिकता ही स्वतंत्रता का आधार विषय पर एक महीने का अभियान आरंभ कर रहे हैं। इस अभियान का उद्देश्य वास्तविक स्वतंत्रता क्या है? और यह नैतिकता से किस प्रकार जुड़ी है, इस बारे में जागरूकता लाना। केवल नैतिक मूल्यों का पालन करके ही व्यक्ति जीवन में वास्तविक और स्थायी स्वतंत्रता और पूर्णता प्राप्त कर सकता है। इस अभियान का उद्देश्य जाति, रंग, लिंग, धर्म या क्षेत्र के भेद के बिना सभी के लिए अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और मौलिक अधिकारों का लाभ उठाने के लिए आवश्यक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है। हमारा मानना है कि इसे केवल कुछ नियमों का पालन करके ही प्राप्त किया जा सकता है जिन्हें हम नैतिक मूल्य कहते हैं। राष्ट्रीय, राज्य, जिला और जमीनी स्तर पर शिक्षाविदों, परामर्शदाताओं, वकीलों, धार्मिक विद्वानों और सामुदायिक नेताओं को शामिल करते हुए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। स्थायी हर्ष और स्वतंत्रता के लिए नैतिक मूल्यों का पालन करने के महत्व पर छात्रों और युवाओं को शिक्षित करने के लिए कॉलेज कैम्पसों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और उन्हें छद्म उदारवादी विचारधाराओं के चंगुल से मुक्त कराया जाएगा जो व्यक्तियों को स्वतंत्रता की झूठी धारणाओं में फंसाते हैं और उन्हें अनैतिक व्यवहार का गुलाम बनाते हैं। प्रत्येक धर्म और संस्कृति में समान नैतिक मूल्यों पर सार्वजनिक चर्चा के लिए विभिन्न धर्मों के विद्वानों को शामिल करते हुए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

आंशिक रूप से जारी हेमा समिति की रिपोर्ट से पता चलता है कि मनारजन उद्याग जस अत्यत उदार कायस्थला पर भी महिलाओं की सुरक्षा में कमी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराध साल दर साल बढ़ रहे हैं। हालाँकि, ये संख्याएँ तो केवल एक झलक है, क्योंकि ये दर्ज मामलों पर आधारित हैं। जानबूझकर या अन्यथा दबाए गए या अनदेखा किए गए मामलों की संख्या काफी अधिक है। इस चिंतनीय प्रवृत्ति का एक और उल्लेखनीय पहलू बिलकिस बानो (जिनके साथ 2002 के गुजरात दंगे में सामूहिक बलात्कार हुआ था) द्वारा न्याय के लिए किया गया कठिन संघर्ष है। उसका (बिलकिस) मामला हमारी संस्थाओं में व्याप्त प्रणालीगत पूर्वाग्रह और असंवेदनशीलता का स्पष्ट प्रमाण है। ऐसे जघन्य कृत्यों में अपराधियों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठानों के प्रयास राजनेताओं की परेशान करने वाली जटिलता को और उजागर करते हैं। हाल ही में एडीआर की रिपोर्ट जिसमें चौंकाने वाली बात यह है कि वर्तमान में 151 मौजूदा सांसदों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोप हैं, इस तथ्य को और मज़बूती देता है।

 


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