महासमुन्द

आधुनिक होली में विलुप्त हो रही है डंडा नृत्य की प्राचीन परंपरा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 31 मार्च। होलिका दहन के दिन आधुनिकता के नाम से सिर्फ रंग रोगन लगा कर उत्सव मनाते हैं। लेकिन होली के अवसर पर नृत्य की वर्षों पुरानी डंडा नृत्य परंपरा अब विलुप्त होती जा रही है। इसे कुहकी अथवा रहस नृत्य भी कहते हैं। ग्राम बिरकोनी में 70 से 75 वर्ष के बुजुर्ग इस परम्परा का अब भी निर्वाह कर रहे हैं। हालांकि कुछ गिने चुने बुजुर्ग ही इस में आगे हैं। ये कलाकार गांवों में अपनी वैभव को जिंंदा रखने वाले कलाकार हैं और अभी भी इस विधा से जुड़े हुए हैं।
ग्राम बिरकोनी में परम्परा के अनुसार यहंां कई दशकों से ये बुजुग होलिका दहन के बााद गांव में डंडा नृत्य करते हैं। इस नृत्यमें के समय से डंडा नृत्य की परंपरा को आज भी कायम रखे हुए हैं। इस गांव में फागुन मास आते ही परम्परागत डंडा नृत्य की गूंज सुनाई देने लगती है,जो होली के दिन तक कृष्ण राधा के लीला मंचन संगम कार्य क्रम के साथ किया जाता है। ग्राम के बालक बालिकाएंं त्यौहार के पहले से ही जैसे ही शाम होती है,समूह एकत्रित हो जाते है। ग्राम में यह डंडा नृत्य की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। जब ये बच्चे थे तभी गांव के तब के सियानों ने शुरुआत की थी यह परम्परा। वर्तमान में बच्चों की टोलियां होलिका दहन के पूर्व रामायण मण्डलियों के साथ चौक चौराहे द्वार-द्वार जाकर कृष्णा राधा वेश भूषा में नृत्य करते हैं। इस नृत्य से कृष्ण राधा होलिका परम्पराओं से जुड़े गीत गा कर दर्शकों का मन मोहते हंै। आज की पीढ़ी को इस परम्परा से जोडऩे राम मंदिर, दुर्गा मंदिर, शीतला, महामाया में श्री कृष्ण लीला मंचन किया जााता है।