महासमुन्द
एक ही जीवन में तीन विषयों के प्रोफेसर होने का रिकॉर्ड भी डा.कर के नाम से दर्ज
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,9नवंबर। अपनी गोद में बड़े होकर भाषाविद्-साहित्यकार-संगीतकार डॉ. चित्तरंजन कर का उपराष्ट्रपति के हाथों सम्मान से भावविभोर है महासमुंद का पैकिन गांव। ग्रामीण बेहद खुश हैं कि उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने 5 नवंबर राज्योत्सव के समापन पर महासमुंद के डॉ.चित्तरंजन कर को हिंदी व अंग्रेजी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पं. सुंदरलाल शर्मा सम्मान से सम्मानित किया।
भारत के इस प्रख्यात भाषाविद, साहित्यकार, संस्कृतिविद, शिक्षाविद व संगीतकार डॉ. चित्तरंजन कर का जन्म महासमुंद जिले के सरायपाली तहसील में स्थित ग्राम पैकिन में हुआ। उनके पिता स्व.दिवाकर कर शासकीय शिक्षक थे। डॉ.कर ने अपनी संपूर्ण स्कूली शिक्षा ग्राम से ही प्राप्त की। वे सरायपाली तहसील के विभिन्न शासकीय प्राथमिक शालाओं में 6 साल तक शिक्षक थे।
कुल तीन विषयों में एमए, पीएचडी, डिलीट् डा. कर ने राजीवलोचन महाविद्यालय राजिम में रहते हुए पं. सुंदरलाल शर्मा के साहित्य पर कार्य किया। बाद में वे पं.सुंदरलाल शर्मा शोधपीठ रायपुर के अध्यक्ष रहे। इस दौरान अनेक गोष्ठियों का उन्होंने आयोजन किया और पं.सुंदरलाल शर्मा पर केंद्रित एक पुस्तक का संपादन भी किया। कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ी दानलीला का हिंदी अनुरचना करके उन्होंने पं. सुंदरलाल शर्मा साहित्य को राष्ट्रीय ख्याति दिलाई।
छत्तीसगढ़ राजभाषा विधेयक - 28 नवंबर 2007 के लिए डॉ.कर छत्तीसगढ़ विधानसभा में विशेषज्ञ सलाहकार थे। वर्तमान में डॉ.कर को केंद्रीय गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के रेल मंत्रालय रेल बोर्ड की हिंदी सलाहकार समिति का सदस्य नामित किया गया है। उल्लेखनीय है कि एक ही जीवन में तीन विषयों के प्रोफेसर होने का रिकॉर्ड भी डॉ.कर के नाम से दर्ज है। वे पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में साहित्य भाषा अध्ययनशाला में हिंदी, अंग्रेजी व भाषाविज्ञान विषयों के प्रोफेसर, अध्यक्ष, व अधिष्ठाता कला संकाय के पद से निवृत हुए।
फिर उन्होंने गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर में अंग्रेजी व विदेशी भाषा विभाग के मानद् प्रोफेसर रहे और उसके बाद ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय कोरापुट में अंग्रेजी विभाग के कंसल्टेंट प्रोफेसर और कला संकाय के अधिष्ठाता रह चुके हैं। डॉ.कर कामधेनु विश्वविद्यालय अंजोरा एवं भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलगीतों के रचनाकार भी हैं। हिंदी, संस्कृत, छत्तीसगढ़ी, अंग्रेजी, और उडिय़ा भाषा पर उनकी समान पकड़ है।
अंग्रेजी व छत्तीसगढ़ी में 28 पीएचडी, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के साहित्य व भाषा अध्ययनशाला में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, कला संकायाध्यक्ष रहते हुए डॉ. कर ने भाषाविज्ञान, संस्कृत, हिंदी, छत्तीसगढ़ी और अंग्रेजी में कुल 28 पीएचडी, 1 डिलिट हिंदी शोध निर्देशन किया। उन्होंने कुल 37 पुस्तकों व 250 शोध पत्रों का लेखन किया।
श्री कर ने छत्तीसगढ़ी भाषा पर महत्वपूर्ण कार्य किया। भारत में आजादी के बाद हुए पहले भाषा सर्वेक्षण का छत्तीसगढ़ी और आदिवासी भाषाओं वाला खंड डॉ.कर ने ही तैयार किया। इसका विमोचन नई दिल्ली में राष्ट्रपति ने किया था। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ी भाषा पर यह महत्वपूर्ण कार्य है। इसके पहले भी छत्तीसगढ़ी की व्याकरणिक कोटियां,बोलचाल की छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़ी व्याकरण पर उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं।
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