महासमुन्द

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 9 अक्टूबर। जिला मुख्यालय से लगभग 24 किमी दूर खल्लारी मंदिर में इन दिनों श्रद्धालुओं की अपार भीड़ है। यहां हर साल क्वार और चैत्र में भव्य नवरात्र पर्व का आयोजन किया जाता है। मनोकामना कलश की स्थापना के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
ग्राम खल्लारी को पुरातनकाल में मृतकागढ़ के नाम से जाना जाता था। फिर बाद में इसे खल्लवाटिका के नाम से जाना गया, किंतु अब यह स्थान ग्राम खल्लारी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां माता के दर्शन के लिए 981 सीढिय़ां बनी हुई हैं। इस पहाड़ी का क्षेत्रफल लगभग 280 एकड़ है। सडक़ मार्ग से खल्लारी मंदिर की दूरी लगभग 1672 फीट है। खल्लारी का कुल क्षेत्रफल लगभग 20 हजार 137 एकड़ है। अब तो करोड़ों की लागत से पहाड़ी वाली माता तक पहुंचने के लिए डोंगरगढ़ की तर्ज पर यहां भी रोप-वे (उडऩखटोला, लिफ्ट) शुरू हो गई है।
यह स्थल राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-353 में महासमुंद और बागबाहरा के मध्य सडक़ मार्ग से महज 2 किमी की दूरी पर है और रेल मार्ग से भी जुड़ा है। यहां खल्लारी माता का दो प्रमुख मंदिर है। पहला मंदिर गांव की पहाड़ी और दूसरा मंदिर यहां गांव में ही है। यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। खल्लारी मातेश्वरी पहाड़ हरे-भरे वृक्ष व लताओं से आच्छादित 355 फीट ऊंची सुरम्य पहाड़ी पर है। जिसकी मनोहारी दृश्य काफ ी आकर्षक है।
खल्लारी के इतिहास के बारे में बुुजुर्ग कहते हैं कि द्वापर युग में पांडव इस अंचल से गुजरे और अपना कुछ समय खल्लारी में बिताया। यही वह स्थान है, जहां हिडिम्बा प्रसन्न हो गई और माता खल्लारी के समक्ष ही उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया। आज भी पहाड़ी में भीम से संबंधित अनेक चिह्न देखने को मिलते हैं। वहीं गांव के एक खेत में लाक्षागृह के अवशेष भी है।
खल्लारी मातेश्वरी मंदिर से धार्मिक मान्यता भी जुड़ी हुई है कि यहां संतान प्राप्ति की मन्नत पूरी जरूर होती है। नि:संतान दंपत्ति की मनोकामना लेकर पहुंचती है। इस साल यहां पहाड़ी वाले मंदिर में 1635 एवं नीचे स्थित मंदिर में 686 ज्योत कुल 2321 ज्योत दोनों मंदिरों में श्रद्धालुओं ने प्रज्वलित है।