महासमुन्द

तेंदू पेड़-पौधों को संरक्षित करने की जरूरत-पाणिग्रही
27-Dec-2021 6:14 PM
तेंदू पेड़-पौधों को संरक्षित करने की जरूरत-पाणिग्रही

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 27 दिसंबर। ग्रीन केयर सोसाइटी ने तेंदू पेड़ पौधों को संरक्षित करने की जरूरत पर बल दिया है। उनका कहना है कि इसमें खनिज पोषक तत्व की अच्छी मात्रा होती है। इसमें विटामिन ए, सी,  फ ास्फ ोरस एवं फ ाइबर प्रचुर मात्रा में होता है। यह बलवर्धक माना जाता है। यह पाचन क्रिया को सुगम बनाता है। शरीर में सोडियम के प्रभाव को कम करता है तथा इम्यूनिटी बढ़ाता है। साथ ही एंटीआक्सीडेंट गुणों से भी भरपूर माना जाता है। ऐसा बहुगुणकारी तेंदूफल अब एक नई पहचान प्राप्त कर रहा है।

शोधार्थियों के शोध के आधार पर पर्यावरण संरक्षण से जुड़े तथा 50 वर्षों से अधिक समय से तेंदूपत्ता व्यापार में कार्यरत डा.  विश्वनाथ पाणिग्रही ने कहा कि तेंदू फल जिसका संग्रहण नहीं होता था, अब संग्रहण होगा। इससे अब स्वादिष्ट स्वास्थ्य वर्धक पेय मिलेगा।

साथ ही छत्तीसगढ़ को एक नई पहचान दिलाएगा। यह वनवासियों एवं तेंदू संग्रहण करने वालों के लिए ठीक तेंदूपत्ते की तरह आर्थिक संसाधन का एक बड़ा जरिया साबित होगा। छत्तीसगढ़ शासन को भी राजस्व की बड़ी प्राप्ति होगी।  डा. पाणिग्रही ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बस्तर, सरगुजा एवं कुछ क्षेत्रों को छोड़ बाकी वन क्षेत्रों से तेंदूफल के नैसर्गिक वृक्ष समाप्त होते जा रहे हैं। मानव रोपित तेंदू पौधा तकनीकी कारणों से सफल नहीं हो पाता। इसके प्रयास पूर्व में हुए लेकिन सफल नहीं हुए। ऐसा माना जाता है कि तेंदू का फल वन्यप्राणी भालू खाता है और बीज जब उसके पाचन तंत्र से होकर गुजरता है तो जहां पर बीज गिरता है वहीं प्राकृतिक रूप से तेंदू पौधा उग जाता है।

यही बड़ा होकर वृक्ष बनता है, जिससे तेंदू फल प्राप्त होता है। वृक्षों की अवैज्ञानिक कटाई, मैदानी क्षेत्रों में बुलडोजर जैसे भारी भरकम वाहनों से खोदाई कर खेत बनाने की प्रक्रिया में तेंदू के नैसर्गिक जड़ें भूमि के गर्भ से बाहर आकर सूख जाती है। पुन: उससे पौधे नहीं हो पाते। इस संदर्भ में तीन सुझाव शासन के समक्ष रखना चाहते हैं जैसे तेंदू वृक्षों की कटाई पूर्णत: प्रतिबंध हो, साथ ही संरक्षण हो जैसे सुझाव शामिल हैं।


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