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भाई ने रिक्शा चलाकर पढ़ाया और झोपड़ी से निकलकर डिप्टी कलेक्टर बन गईं वसीमा !
28-Jun-2020 9:30 AM
भाई ने रिक्शा चलाकर पढ़ाया और झोपड़ी से निकलकर डिप्टी कलेक्टर बन गईं वसीमा !

अगर भाई मुझे नहीं पढ़ाते तो मैं इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती

इस जहान में जहाँ लोग मुसीबतों और अभावों का रोना रोते रहते हैं, वहीं उसने अपने हौसले से बीमार पिता, मज़दूर माँ व रिक्शा चलाते भाई वाले घर से यह मुक़ाम पाया है. असम्भव को संभव बनाने वाली शख्सियत है वसीमा शेख

इस जहान में जहाँ लोग मुसीबतों और अभावों का रोना रोते रहते हैं, वहीं उसने अपने हौसले से बीमार पिता, मज़दूर माँ व रिक्शा चलाते भाई वाले घर से यह मुक़ाम पाया है. असम्भव को संभव बनाने वाली शख्सियत है वसीमा शेख.

इन्होने ने केवल सफलता पायी बल्कि महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन (एमपीएससी) में महिला टॉपर्स की लिस्ट में तीसरा स्थान भी पाया. इस परीक्षा में सफलता के बाद वसीमा शेख अब डिप्टी कलेक्टर बनेंगी. आपको बता दे कि वो अभी सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर के पद पर काम कर रहीं.

वसीमा ने अपनी पढ़ाई पूरी करने में वो तमाम तकलीफें देखीं, जो हम गईं सकते है. मुफलिसी में गुजारा कर रहे उनके परिवार ने पढ़ाई पर जोर दिया और आज नतीजा है कि वह टॉपर्स की लिस्ट में शामिल हुई हैं.

वसीमा की पढ़ाई के लिए उनके परिवार का भी ख़ास योगदान रहा. भाई खुद भी एमपीएससी की तैयारी कर चुके पर घर संभालने और बहन के सपने पुरे करने के लिए रिक्शा चलाना शुरू किया. महाराष्ट्र के नांदेड़ के सांगवी नाम के छोटे से गांव की रहने वाली वसीमा के पिता मानसिक रूप से बीमार हैं. मां दूसरों के खेत में काम करके घर चलाती थीं. वसीमा के भाई पैसों की कमी के चलते एमपीएससी की परीक्षा नहीं दे पाए.

वसीमा अपनी कामयाबी का सारा श्रेय भाई और मां को देती हैं. उन्होंने कहा कि अगर भाई मुझे नहीं पढ़ाते तो मैं इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती. मां ने बहुत मेहनत की. वसीमा नांदेड़ से लगभग 5 किलोमीटर दूर जोशी सख वी नामक गांव में पैदल पढ़ने जाती थीं.

अपने परिवार के साथ वसीमा शेख़

वसीमा 4 बहनों और 2 भाइयों में चौथे नंबर की हैं. वसीमा का एक अन्य भाई आर्टिफिशियल ज्वेलरी की छोटी-सी दुकान चलाता है. परिवार में पहली ग्रेजुएट वसीमा ने 2018 में भी एमपीएससी की परीक्षा पास की थी. वसीमा कहती हैं कि अगर आपको कुछ बनना है, तो अमीरी-गरीबी कोई मायने नहीं रखती.

वसीमा शेख बताती हैं ‘मैंने अपने आसपास, परिवार में और अपने इलाके में गरीबी और तकलीफ को बहुत पास से देखा है. एक तरफ सरकार और उसके साधन थे, दूसरी तरफ गरीब जनता. बीच में एक मीडिएटर की जरूरत थी, मैं वही मीडिएटर बनना चाहती हूं.’

वसीमा शेख़ तुम्हारी कामयाबी एक उम्मीद है, एक रोशनी है बहुत से उन युवाओं के लिए जिनके पास बहाने तो हैं मगर शिद्दत और जुनूँ नहीं है. आपको सलाम !

( मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित )

(www.bepositiveindia.in)
 


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