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मूलत: कवि और चित्रकार भोपाल के रूस्तम सिंह और तेजी ग्रोवर
भोपाल बैठे चारों तरफ लोगों को जोड़ा
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 20 जून। कोरोना लॉकडाउन के दौरान गांव वापसी की उत्कट लालसा लिए लहुलुहान मजदूरों की पीड़ा ने मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रखा दिया। मूलत: कवि और चित्रकार भोपाल के रूस्तम सिंह और तेजी ग्रोवर ने चुनौती की इस घड़ी में कलम और कूची को दरकिनार कर मजदूरों को घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया।
एकला चलो रे की तर्ज पर इन्होंने गिने-चुने मजदूरों को घर पहुंचाने का लक्ष्य तय किया लेकिन इनके भागीरथी प्रयास की कड़ी से लोग जुड़ते गए। इनकी पहल और समवेत प्रयास से विगत दिनों लगभग 3 सौ मजदूरों की ट्रेन से वापसी हुई। इसके अलावा हाल में गाजियाबाद से 26 मजदूर छत्तीसगढ़ पहुंचे। छत्तीसगढ़ के अलावा देश के अलग-अलग इसाकों के प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की।
तेजी ग्रोवर ने मजदूरों की घर वापसी के मुहिम के अनुभवों को 'छत्तीसगढ़' से साझा किया। उन्होंने बताया भोपाल सलैया गांव में आकृति ईको सिटी के आसपास काफी मजदूर रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान जब मजदूरों की बेवसी उन्हें करीब से देखने को मिली तब उन्होंने उनकी मदद का फैसला किया। तेजी कहती हैं मजदूरों की घर वापसी की हमने मुहिम शुरू की। इस दौरान गाजियाबाद में रह रहे दुकलहा कोसले ने हमें फोन पर वहां छत्तीसगढ़ के 61 मजदूरों के फंसने की जानकारी दी।
सोशल मीडिया के जरिए हमारी मुहिम की जानकारी मिलने पर देश के घर शहर से मजदूरों के फोन आने लगे। इन बेबस मजदूरों की बस एक ही गुहार थी, हमें किसी तरह घर पहुंचा दीजिए। हमने बस, ट्रेन से उनके घर वापसी के बंदोबस्त के पहले उनकी आर्थिक मदद का जिम्मा भी लिया। सोशल मीडिया के जरिए हमारे मुहिम से लोग जुड़ते गए और 2 लाख 20 हजार की सहायता राशि इकट्ठा हो गई।
मुहिम के तहत हमने मजदूरों से संपर्क करने के लिए सबसे पहले उनके मोबाइल फोन रिचार्ज करवाए। उन्हें राशन उपलब्ध कराया और साथ ही साथ उनकी काउंसिलिंग का इंतजाम किया। उनके खाते में पैसे जमा करवाए। गाजियाबाद की पुष्पा राउत से हमारा संपर्क हुआ और पता चला 18 मई को गाजियाबाद से कुछ मजदूर छत्तीसगढ़ वापसी के लिए पैदल निकल गए थे लेकिन पुलिस ने उन्हें वापस भेज दिया।
गाजियाबाद में फंसे मजदूरों की छत्तीसगढ़ वापसी के लिए राज्यों की सीमागत पाबंदी की ढेरों अड़चनें आई लेकिन कैप्टन रूपिन्दर सिंह जैसे लोगों की मदद से गाजियाबाद में फंसे छत्तीसगढ़ के मजदूरों को टे्रन से हम उनके घर पहुंचा पाए। इस दौरान सामाजिक विडम्बनाओं से भी हमारा वास्ता पड़ा।
छत्तीसगढ़ की ऐसी बुजुर्ग महिलाओं से हमारा मिलना हुआ जो 16 सौ किमी दूर गाजियाबाद में भीख मांगकर गुजारा करती हैं। गाजियाबाद से लौट रहे इन मजदूरों को हमने मदद के रूप में 3-3 हजार रूपए भी दिए। गाजियाबाद में फंसे 7 और मजदूरों की वापसी का हमने बंदोबस्त कर दिया है।
पूरे मुहिम के दौरान हमने यही जाना कि समन्वयक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। हमारे मुहिम से जुड़कर कई लोगों ने न सिर्फ हमारी मदद की बल्कि हमारा मनोबल भी बढ़ाया।
राशन साझा करने में भारतीय ज्ञान विज्ञान समिति की टीम, आशा मिश्रा, पवन सुनील, रिनचिन और महीन शामिल रहे। भोपाल से ट्रेन चलवाने में सबसे उल्लेनीय भूमिका नर्मदा बचाओ आंदोलन की चित्तरूपा पालित की रही। इसी आंदोलन के आलोक अग्रवाल पूरे समय कठिन समस्याएं सुलझाते रहे। पुलिस ऑफिसर पल्लवी त्रिवेदी, हिंदी कथाकार रूपा सिंह, ऑफिसर माधवी कटारिया, हिंदी लेखक बाबुषा कोहली, शुभम अग्रवाल, आदित्य शुक्ला भी एक तरह से हमारी टीम में ही शामिल रहे। गाजियाबाद में हमारी टीम में पुष्पा रावत, सुनीता रावत, कान्हा शामिल रहे। छत्तीसगढ़ बिलासपुर की समर्थ संस्था की टीम और रायपुर के प्रथमेश मिश्रा, सभी काम इनके साथ सहयोग से हुए और आगे भी होते रहेंगे।