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नयी दिल्ली, 23 नवंबर। निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने रविवार को कहा कि विधेयकों की मंजूरी के वास्ते राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा की व्यवस्था को समाप्त करने का उच्चतम न्यायालय का निर्णय एक संतुलित फैसला है, क्योंकि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता, लेकिन राज्यपाल भीविधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोककर नहीं रख सकते।
अपने सरकारी आवास पर मीडियाकर्मियों के साथ बातचीत में न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि संविधान शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित है और जहां समय-सीमा का उल्लेख नहीं है, वहां अदालत अपने स्तर पर समय-सीमा तय नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति 23 नवंबर (रविवार) को सेवानिवृत हो रहे हैं, जबकि शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में उनका आखिरी कार्यदिवस था।
निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमने न केवल समयसीमा हटाई है, बल्कि यह कहकर इसे संतुलित भी किया है कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक नहीं रोक सकते।’’
विधेयकों पर राज्यपालों की मंजूरी को लेकर समयसीमा हटाये जाने को लेकर हो रही आलोचना का जवाब देते हुए, उन्होंने कहा, ‘‘संविधान अदालत को उस स्थिति में समयसीमा तय करने की अनुमति नहीं देता जहां कोई समयसीमा मौजूद है ही नहीं, लेकिन हमने कहा है कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयक पर निर्णय नहीं टाल सकते। अत्यधिक विलंब की स्थिति में न्यायिक समीक्षा का विकल्प उपलब्ध है।’’
उन्होंने ‘‘शक्तियों के पृथक्करण’’ का हवाला दिया और कहा कि राज्यपाल ‘‘अनिश्चितकाल तक विधेयक को नहीं रोक सकते’’ और सीमित न्यायिक समीक्षा का विकल्प उपलब्ध है।
राष्ट्रपति द्वारा इस विषय पर परामर्श मांगे जाने पर, प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपनी सर्वसम्मति वाली राय में 20 नवंबर को कहा था कि राज्यपालों द्वारा ‘‘अनिश्चितकालीन विलंब’’ की सीमित न्यायिक समीक्षा का विकल्प खुला रहेगा।
न्यायमूर्ति गवई ने यशवंत वर्मा मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह मुद्दा फिलहाल संसदीय समिति के समक्ष विचाराधीन है।
न्यायमूर्ति वर्मा मार्च में राष्ट्रीय राजधानी स्थित अपने आवास पर आग लगने की घटना के बाद विवादों में आ गए थे। उस समय वह दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे। आग लगने की घटना के बाद उनके आवास से नकदी से भरी कई जली हुई बोरियां कथित तौर पर बरामद हुई थीं।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए यह महत्वपूर्ण है और इसे सुनिश्चित करने के लिए न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बनी रहनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि हमेशा कहा जाता रहा है, यदि आप चाहते हैं कि जनता का न्यायपालिका पर पूरा भरोसा हो तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखना होगा।’’
उन्होंने कहा कि समकालीन न्यायशास्त्र में एक न्यायाधीश को ‘‘स्वतंत्र तभी कहा जाता है जब निर्णय सरकार के खिलाफ दिया जाए’’, लेकिन उनकी नजर में यह गलत दृष्टिकोण है।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘जब तक आप सरकार के खिलाफ फैसला नहीं देते, आप स्वतंत्र न्यायाधीश नहीं कहलाते हैं, लेकिन एक न्यायाधीश के लिए यह सही नहीं है। आप यह तय नहीं कर सकते कि वादी सरकार है या कोई आम नागरिक। आप अपने सामने मौजूद कागजात के आधार पर फैसला करते हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘किसी भी स्थिति में सरकार सफल हो सकती है या हार सकती है, लेकिन कुछ हलकों में यह सोच कि जब तक आप हर चीज सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसला नहीं देते, तब तक आप स्वतंत्र न्यायाधीश नहीं हैं, सही दृष्टिकोण नहीं है।" (भाषा)


