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नयी दिल्ली, 17 नवंबर। सोलहवें वित्त आयोग के चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया ने सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को समिति की रिपोर्ट सौंपी। यह रिपोर्ट केंद्र और राज्यों के बीच करों के हस्तांतरण का फॉमूला प्रदान करेगी।
आयोग को पहले 31 अक्टूबर तक अपनी रिपोर्ट देनी थी। हालांकि, उसे 30 नवंबर तक एक महीने का विस्तार दिया गया था।
राष्ट्रपति भवन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘16वें वित्त आयोग के चेयरमैन डॉ. अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में आयोग के सदस्यों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और 2026-31 के लिए आयोग की रिपोर्ट सौंपी।’’
नियम एवं शर्तों के अनुसार, 16वें वित्त आयोग को 2026-27 से शुरू होने वाले पांच वर्षों के लिए केंद्रीय करों में राज्यों के हिस्से और अनुदान सहायता का फॉर्मूला तय करने का अधिकार मिला हुआ है।
आयोग ने अनुदान सहायता और करों में राज्यों के हिस्से पर अपने विचारों को पुष्ट करने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का दौरा किया है।
आयोग में चार सदस्य हैं... सेवानिवृत्त नौकरशाह एनी जॉर्ज मैथ्यू और अर्थशास्त्री मनोज पांडा इसके पूर्णकालिक सदस्य हैं, जबकि एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष और आरबीआई के डिप्टी गवर्नर टी रबी शंकर अंशकालिक सदस्य हैं।
केंद्र और राज्यों के बीच कर हस्तांतरण और राजस्व वृद्धि के उपायों का सुझाव देने के अलावा, आयोग ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गठित निधियों के संदर्भ में आपदा प्रबंधन पहल के वित्तपोषण की वर्तमान व्यवस्था की भी समीक्षा की है।
वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है जो केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों पर सुझाव देता है। 16वें वित्त आयोग की स्थापना 31 दिसंबर, 2023 को हुई थी।
एन के सिंह के नेतृत्व में 15वें वित्त आयोग ने सिफारिश की थी कि राज्यों को 2021-22 से 2025-26 की पांच वर्ष की अवधि के दौरान केंद्र के विभाजन योग्य कर राशि का 41 प्रतिशत दिया जाए, जो वाईवी रेड्डी के नेतृत्व में 14वें वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिश के समान ही है।
उल्लेखनीय है कि 2025-26 के बजट दस्तावेजों के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष में एकत्रित किये जाने वाले कुल 42.70 लाख करोड़ रुपये के कर में से, राज्यों को करों में उनके हिस्से के रूप में 14.22 लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित किये जाने का अनुमान है।
ऐतिहासिक रूप से, वित्त आयोग जनसंख्या, क्षेत्रफल, जनसांख्यिकीय प्रदर्शन, राजकोषीय प्रयास, आय अंतर और वन की स्थिति के भारित योग के आधार पर केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी निर्धारित करते रहे हैं।
यह मुद्दा लंबे समय से केंद्र और राज्यों, खासकर विपक्षी दल शासित राज्यों के बीच टकराव का विषय रहा है, जिनका कहना है कि उन्हें उनका उचित हिस्सा नहीं मिला है। दक्षिणी राज्यों ने भी कर हस्तांतरण के मानदंड के रूप में जनसंख्या के उपयोग पर आपत्ति जताई है, उनका तर्क है कि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में उनकी सफलता के बावजूद यह उन्हें दंडित करता है।
पंद्रहवें वित्त आयोग ने जनसंख्या को 15 प्रतिशत, क्षेत्रफल को 15 प्रतिशत, जनसांख्यिकीय प्रदर्शन को 12.5 प्रतिशत, वन कवर और पारिस्थितिकी को 10 प्रतिशत और कर एवं राजकोषीय प्रयासों को 2.5 प्रतिशत महत्व दिया था। (भाषा)


