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दुनिया में वायु प्रदूषण पर आने वाली सालाना ग्लोबल रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में वायु प्रदूषण से करीब 80 लाख लोग मारे गए। इनमें से आधे लोग तो भारत और चीन में मरे हैं, 20-20 लाख! दुनिया में होने वाली हर 8 में से एक मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई है। अमरीका और स्विटजरलैंड के प्रतिष्ठित संस्थानों की इस रिपोर्ट का हर बरस इंतजार रहता है, और भारत में जिस तरह किसी भी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट को पढऩे के भी पहले कचरे की टोकरी में डाल दिया जाता है, वैसा ही कुछ इसके साथ भी होगा, और यह कहा जाएगा कि यह हिन्दू त्यौहार, दीवाली के फटाखों को बदनाम करने की एक और कोशिश है। लेकिन हम किसी धर्म या देश की फिक्र किए बिना वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित इस रिपोर्ट पर फिक्र करना चाहते हैं क्योंकि इन करीब 80 लाख में 90 फीसदी मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुई हैं। भारत के अलावा बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी दो-दो लाख से अधिक मौतें वायु प्रदूषण से हुई हैं, और छोटे से म्यांमार में भी ऐसी एक लाख मौतें दर्ज हुई हैं। यह रिपोर्ट एक भयानक वैज्ञानिक पहलू भी सामने रखती है कि प्रदूषण का असर हवा साफ होने के बाद भी लंबे समय तक बने रहता है, और 2023 में दुनिया में 79 लाख मौतें तो हुई ही हैं, 23 करोड़ से अधिक स्वस्थ जीवन वर्ष भी बर्बाद हुए हैं, यानी लोगों की जिंदगी में इतने बरसों के बराबर की उम्र घट गई है।
भारत धार्मिक प्रदूषण को धार्मिक स्वतंत्रता मानकर चलता है। सडक़ों पर फटाखे और आतिशबाजी, वायु प्रदूषण से परे के ध्वनि प्रदूषण और अब रौशनी के प्रदूषण भी शहरों का जीना हलाकान कर रहे हैं। लोग धर्मोन्माद में डूबे हुए न अपने फेंफड़ों की फिक्र करते, और न ही अपने जाने वाले बुजुर्गों की, और अभी-अभी आए हुए बच्चों की। हालांकि राम के लौटने पर अयोध्या में जो पहली दीवाली मनाई गई थी, उस वक्त बारूद या फटाखे नहीं थे, और घी-तेल के दीयों ने अयोध्या को बहुत अच्छी तरह रौनक किया होगा, आज तो हाल यह कि किसी मोहल्ले या कॉलोनी में लोग घंटे भर की मेहनत के बाद अपने घर के चारों तरफ दीये जलाते हैं, और पड़ोस में कोई एक बड़े धमाके वाला बम पल भर में सारे दीये बुझा देता है। अब अगर चीनी झालरों की रौशनी है तब तो ठीक है, वरना अयोध्या की शैली के दीयों का जलना अब मुश्किल है क्योंकि जिनके पास जितना दम है, उनके पास उतना बड़ा बम है। सुप्रीम कोर्ट इस कदर बेफिक्र और बेअसर हो चुका है कि उसकी लगाई रोक को दिल्ली की गली-गली में पैरोंतले कुचला जाता है, और कोर्ट के बदन पर, उसके आत्मसम्मान और स्वाभिमान पर कोई खरोंच भी नहीं आती, क्योंकि उसे मालूम है कि खरोंचों के जख्म दिखाना धर्म के खिलाफ मान लिया जाएगा। इस बार के दिल्ली के आंकड़े बताते हैं कि बीते कई बरसों में कभी दीवाली पर इतना वायु प्रदूषण नहीं था।
कुछ लोगों को यह लगता है कि दीवाली के आसपास की बारूदी हवा एक-दो दिन फेंफड़ों को परेशान करती है, और उसके बाद उसका असर खत्म हो जाता है। ऐसे लापरवाह लोगों को चिकित्सा विज्ञान बताता है कि वायु प्रदूषण सिर्फ सांस की बीमारी तक सीमित नहीं है, बल्कि उससे डायबिटीज, हृदय रोग, और डिमेंशिया जैसी दिमागी बीमारी भी जुड़ी हुई हैं। 2023 की इस रिपोर्ट से पता लगता है कि दुनिया में इस बरस वायु प्रदूषण से हुए डिमेंशिया से ही सवा 6 लाख से अधिक लोग मरे, और एक करोड़ 16 लाख स्वस्थ जीवन-वर्ष खत्म हो गए। अब ऐसी बीमारियों की लिस्ट को कितना गिनाएं कि वायु प्रदूषण से सेहत का कैसा-कैसा नुकसान हो रहा है। हृदय रोग से होने वाली हर चौथी मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो रही है, और डायबिटीज की हर छह में से एक मौत भी इसी वजह से।
मोदी सरकार के नीति आयोग के मुखिया रहे अमिताभ कान्त ने अभी दीवाली पर दिल्ली के प्रदूषण को देखते हुए एक बड़ी तल्ख टिप्पणी की थी, और अपनी निराशा जाहिर की थी कि सुप्रीम कोर्ट ने सांस लेने और जीने के हक के ऊपर लोगों के फटाखे फोडऩे के हक को रखा। अब हालत यह है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार कृत्रिम वर्षा की तैयारी कर रही है, जिसके बारे में वैज्ञानिकों को गंभीर संदेह है कि इससे कोई भी फायदा होगा। यही दिल्ली सरकार, और यही केन्द्र सरकार फटाखों के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में लड़ती रहीं, और यह कैसी लोकतांत्रिक विसंगति है कि फेंफड़ों और फटाखों में से किसी एक को छांटने की नौबत आने पर इन सरकारों ने फटाखों को छांटा! और इन दिनों सुप्रीम कोर्ट के जज और मुख्य न्यायाधीशों में ईश्वरीय-दैवीय प्रेरणा से फैसले लिखने का चलन मान्यता पा चुका है, तो जज फेंफड़ों को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं, और ग्रीन फटाखों के नाम पर रईसों और कारोबारियों को मनमानी करने देते हैं। जजों को उनके बंद एसी-बंगलों से निकालकर दीवाली की रात दिल्ली की अलग-अलग संपन्न हिन्दू बस्तियों में सडक़ किनारे बैठाना चाहिए, तभी उन्हें हकीकत का अहसास होगा, और उनके फैसले दैवीय या अलौकिक होने के बजाय हकीकत पर टिके होंगे।
अब फटाखों और दीवाली से परे भी देखें, तो भारत प्रदूषण के मामले में पूरी तरह लापरवाह और गैरजिम्मेदार देश है। कहने के लिए गाडिय़ों के प्रदूषण की जांच करवाना जरूरी है, लेकिन शहरों में कारोबारी गाडिय़ों के साथ-साथ सरकारी बसें भी भयानक प्रदूषण फैलाते चलती हैं, जिससे यह जाहिर है कि ये सब नियम कागजों पर ही हैं। फिर कारखानों का भी बुरा हाल है, रिहायशी इलाकों में छोटी-छोटी फैक्ट्रियां प्रतिबंधित सामान बनाते चलती हैं, और बड़े कारखानों का बड़ा प्रदूषण तो सरकारी मेहरबानी पाता ही है। लोग कंस्ट्रक्शन से लेकर खदानों तक, ओवरलोड गाडिय़ों से लेकर खतरनाक कचरा फेंकने तक, हर मामले में गैरजिम्मेदार हैं, और प्रदूषण के नियम लागू करने की जिम्मेदारी जिन सरकारी विभागों या रेगुलेटरी एजेंसियों पर है, वे सबकी सब इस हद तक बेपरवाह हैं कि लगता है उन्हें परवाह के एवज में खासे दाम मिलते हैं। कुल मिलाकर भारत जैसा देश हर तरह की शहरी और कारोबारी गतिविधियों के चलते प्रदूषण का भयानक खतरा रखता है, और धार्मिक प्रदूषण इस खतरे को और आसमान तक ले जाते हैं। फिर भी आसमान तक पहुंचा यह प्रदूषण बादलों पर बैठे जजों को नहीं छू पाता, और वे फटाखों को इजाजत देना जरूरी समझते हैं। लंका से अयोध्या लौटे राम को अगर दिल्ली में दीवाली मनानी पड़ती, तो उनके मुंह से हे राम निकला रहता।


