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राजपथ-जनपथ : जंगल पर नजरें
06-Sep-2025 6:21 PM
राजपथ-जनपथ : जंगल पर नजरें

जंगल पर नजरें

आखिरकार पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल के रिटायरमेंट के बाद वाइल्ड लाइफ का प्रभार 94 बैच के आईएफएस अरुण पाण्डेय को दे दिया गया है। पांडेय पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान) भी हैं। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स के बाद वन विभाग में वाइल्ड लाइफ के पद को काफी अहम माना जाता है।पिछले कुछ दिनों से सरकार में वन मुख्यालय में फेरबदल पर चर्चा हो रही है। दो पीसीसीएफ स्तर के अफसर सुधीर अग्रवाल, और आलोक कटियार रिटायर हो गए हैं। इसी महीने एक और पीसीसीएफ, वन विकास निगम के एमडी मॉरिस नंदी रिटायर हो रहे हैं। बावजूद इसके सरकार थोड़ा रूक कर फेरबदल करना चाह रही है। इसकी बड़ी वजह यह है कि 12 सितंबर को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की नियुक्ति के खिलाफ सुधीर अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई होनी है।हालांकि सुधीर रिटायर हो चुके हैं। मगर वन विभाग से जुड़े लोगों का मानना है कि याचिका पर कोई भी फैसला फेरबदल को प्रभावित कर सकता है। यही वजह है कि पाण्डेय को वाइल्ड लाइफ अतिरिक्त प्रभार के रूप में दिया गया है। इस पद के लिए 89 बैच के अफसर तपेश झा, और 94 बैच के अफसर प्रेम कुमार भी दौड़ में रहे हैं। बहरहाल, वन मुख्यालय में फेरबदल पर नजरें टिकी हुई हैं।

पुलिस मुख्यालय की कथा

आईजी स्तर पर दो अफसरों को दी गई संविदा नियुक्ति से पीएचक्यू में हलचल बढ़ गई है। कोई पक्ष में हैं कोई असहमत। लेकिन यह भी सच है कि ऐसी संविदा नियुक्तियां संबंधों पर ही दी या हासिल की जाती है। इन नियुक्तियों से असहमत अफसरों का कहना है कि पीएचक्यू में जो एडीजी,आईजी हैं उनके पास ही काम नहीं हैं। और कुछ के पास चार से छह विंग की जिम्मेदारी है।

जो सहमत हैं उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ पीएचक्यू में टॉप लेवल पर अफसरों की कमी है और आने वाले 4-5 वर्ष बनी रहेगी, क्योंकि काडर छोटा है। और अगले दो बरस कोई रिटायरमेंट भी नहीं। उत्तरवर्ती राज्य मप्रपु के काडर से तुलना कर बताया गया है कि वहां सीआईडी, आजाक, एनसीआरबी, बाल अपराध, तकनीकी सेवाएं, प्लानिंग के लिए अलग अलग एडीजी हैं। और यहां प्रदीप गुप्ता अकेले मोर्चा सम्हाले हुए हैं। छत्तीसगढ़ कैडर में 93 बैच खाली, 94 में दो, 95, 96, 97, 98 में 1-1 अफसर उपलब्ध हैं। 99, 2000 में एक भी नहीं, 01-1, 02 में एक भी आईपीएस नहीं।  03 के आईजी  मुख्यालय से बाहर, एक गृह सचिव के रूप में बाहर। तो पांच रेंज आईजी। यहां की कमी की इसी वजह से राज्य सरकार अब किसी को सेंट्रल डेपुटेशन मंजूर नहीं करना चाहती और जो गए हैं वो अन्यान्य कारणों से आना नहीं चाहते।

शिक्षकों का मान, या अपमान?

शिक्षक दिवस के मौके पर राजभवन में शिक्षक सम्मान समारोह को लेकर काफी बातें हो रही है। पहली बार ऐसा हुआ है जब शिक्षकों को कार्यक्रम से पहले स्मृति चिन्ह, और प्रमाण पत्र दे दिए गए। उनके साथ सिर्फ फोटोग्राफी ही हुई। शिक्षक सम्मान कार्यक्रम पर कांग्रेस को सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया, और शिक्षकों के अपमान का भी आरोप लगाया। भाजपा के अंदर खाने में भी इस कार्यक्रम को लेकर प्रतिक्रिया सुनने को मिल रही है। बताते हैं कि रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल, विधायक राजेश मूणत, मोतीलाल साहू का आमंत्रण पत्र में नाम नहीं था। लिहाजा, वो कार्यक्रम में नहीं आए।  रायपुर के अकेले उत्तर विधायक पुरंदर मिश्रा ही मौजूद थे। पुरंदर का राज्यपाल से व्यक्तिगत संबंध भी है। लिहाजा, राजभवन के ज्यादातर कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी रहती है। स्मृति चिन्ह कार्यक्रम से पहले दिए जाने से शिक्षक, और शिक्षा विभाग के अधिकारी नाखुश रहे। कुल मिलाकर इस तरह सम्मान की अपेक्षा शिक्षकों को नहीं थी।

रेल सेवा से वंचित बस्तर की एक कहानी

एक धार्मिक सभा में शामिल होने के लिए जगदलपुर के करीब 80 लोगों को नागपुर जाना था। इसके लिए उन्हें पहले रायपुर पहुंचना जरूरी था। जगदलपुर से रायपुर की दूरी करीब 300 किलोमीटर है। मगर उन्होंने जगदलपुर से विशाखापट्टनम चलने वाली ट्रेन पकड़ी। जनरल बोगी में बैठे और वहां से फिर जनरल डिब्बे में बैठकर रायपुर पहुंचे। उन्हें रायपुर पहुंचने में दो दिन लगे और करीब 850 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी। यह लंबा सफर था, लेकिन उन्होंने बताया कि ऐसा वे अक्सर करते हैं। वजह, बस का किराया 600 रुपये है। और उन्होंने जनरल डिब्बे में बैठकर करीब 200 रुपये में यह यात्रा पूरी कर ली। जब सत्संग से लौटेंगे, तब भी ट्रेन से ही पहले विशाखापट्टनम जाएंगे, फिर वहां से जगदलपुर। इस तरह से हर यात्री के करीब आठ सौ रुपये बच जाएंगे। 80 यात्री कितना बचा लेंगे, हिसाब लग जाएगा।  


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