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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भारत और चीन को अधिक तैयारी के बजाय साथ बैठ अधिक सोचने की जरूरत
सुनील कुमार ने लिखा है
17-Jul-2025 3:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : भारत और चीन को अधिक तैयारी के बजाय साथ बैठ अधिक सोचने की जरूरत

भारतीय फौज के सबसे बड़े अफसर, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि हाल ही में दुनिया में चल रही कुछ जंग यह साबित कर चुकी हैं कि किस तरह मानवरहित ड्रोन और मानवरहित दूसरी हवाई प्रणालियां फौजी संतुलन बदल सकती हैं। अभी रूस और यूक्रेन के बीच तीन बरस से चल रही जंग में यह साबित हो गया है कि सैनिकों के मुकाबले जंग में अब कई किस्म के ड्रोन अधिक इस्तेमाल हो रहे हैं, और उनकी क्षमता दुनिया की किसी भी जंग में पहली बार इस तरह खुलकर पहचानी जा रही है। अब यह माना जा रहा है कि दुनिया के आगे बहुत से फौजी संघर्ष ड्रोन पर आधारित रहेंगे। हमने इस अखबार में और अपने यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल पर भी पिछले कुछ महीनों में इस बात को उठाया है कि भारतीय फौज में जो एक लाख सैनिकों के पद खाली होने की बात कही जा रही है, हो सकता है कि उसे भरने की जरूरत न पड़े, और भारतीय फौज को अपनी बहुत कुछ क्षमता ड्रोन तकनीक में लगानी पड़े। हमने कई हफ्ते पहले यह बात कही थी, और कल सीडीएस ने यह कहा है कि ड्रोन सामरिक संतुलन बदल सकते हैं, और इस क्षेत्र में भारत में आत्मनिर्भरता जरूरी है। रूस के खिलाफ बहुत ही सस्ते और मामूली ड्रोन की पूरी फौज को टिड्डी दल की तरह रूसी वायुसेना ठिकानों पर भेजकर यूक्रेन ने जो ऐतिहासिक हमला किया, उससे भी अब जंग के तौर-तरीके हमेशा के लिए पूरी तरह बदल गए हैं। और तो और भारत और पाकिस्तान के बीच भी हाल के छोटे से संघर्ष में ड्रोन का इस्तेमाल किया गया।

लेकिन हम ड्रोन-चर्चा से बाहर निकलकर यह देखना चाहते हैं कि क्या फौज पर हर देश के हो रहे भारी-भरकम खर्च को बचाने का भी कोई तरीका हो सकता है? आज भारत, चीन, और पाकिस्तान का खासा फौजी खर्च है। इन तीनों देशों में भारत अकेला है जिसे दो देशों के मुकाबले फौजी तैयारी करनी पड़ती है। पाकिस्तान और चीन को एक-दूसरे से कोई खतरा नहीं है, और इन दोनों को सिर्फ भारत के साथ जंग की तैयारी रखनी पड़ती है। आज अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की सनकी-मनमानी के चलते हुए पूरी दुनिया जिस तरह आर्थिक अस्थिरता का शिकार है, उसमें भारत और चीन, रूस और ईरान, जैसे कई देशों पर तो और अधिक अस्थिरता का खतरा मंडरा ही रहा है, इनके साथ-साथ अब यूरोपीय यूनियन की ताजा चेतावनी भी आ गई है कि रूस से लेन-देन रखने वाले देशों पर ईयू सौ फीसदी टैरिफ लगाएगा। अब न तो दुनिया की जंग दो देशों के बीच रह गई, और न ही टैक्स व्यवस्था दो देशों के परंपरागत कारोबार पर निर्भर है। आज जंग और कारोबार इन दोनों का जबर्दस्त घालमेल इस हद तक देखने मिल रहा है, जिस हद की कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। अब चूंकि ईयू के देशों को नाटो की छतरीतले यूक्रेन की फौजी मदद जारी रखनी है, और रूस के हाथ-पैर काटने है, इसलिए भारत और चीन सरीखे रूस के बड़े कारोबारी भागीदारों पर भी ईयू हमला कर रहा है। अभी ट्रम्प नाम की सुनामी से भारत अपने उखड़े हुए पैरों को ठीक से जमा भी नहीं पाया है कि ईयू का यह नया हमला सामने आया है। इसलिए भारत और चीन को बैठकर अपने फौजी तनाव दूर करके खर्च को कम करना चाहिए ताकि वे अमरीका और ईयू के आर्थिक हमलों का सामना करने के लिए बेहतर तैयार रह सकें। चूंकि चीन के सामने भारत से परे अमरीका और ताइवान तक जंग की नौबत बनी हुई है, इसलिए उसकी फौजी तैयारियां भारत से दुश्मनी घटने पर भी जारी रहेंगी, लेकिन इन दोनों देशों को उसी तरह साथ रहना सीखना होगा जिस तरह योरप के देश ईयू की छतरीतले साथ रह रहे हैं, बिना एक-दूसरे के खिलाफ किसी फौजी तैयारी के।

बहुत से लोगों को चीन और पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह के तालमेल की बात नहीं सुहाएगी, उन्हें लगेगा कि इन दोनों से बातचीत आस्तीन में सांप पालने सरीखा काम होगा, लेकिन अब इस बात को समझ लेने की जरूरत है कि नई विश्व व्यवस्था को देखते हुए लोग जंग के बजाय कारोबार के मोर्चे पर अपनी क्षमता बढ़ाकर रखें क्योंकि आज इन दोनों में कोई फर्क भी नहीं रह गया है। लड़ाई के मोर्चे को जिस तरह आर्थिक प्रतिबंधों से जोडक़र रखा गया है, उससे समझ पड़ता है कि आर्थिक रणनीतियां एक सबसे बड़ा हथियार हैं, और जंग एक सबसे बड़ा कारोबार है। हालांकि जिस खबर से हमने आज की बात शुरू की है उसने सीडीएस जनरल चौहान ने भारत की फौजी आत्मनिर्भरता के बारे में बहुत कुछ कहा है, और कल-परसों ही भारत के एक दूसरे बड़े फौजी अफसर ने यह कहा था कि फौजी तैयारियां शांतिकाल में ही हो सकती हैं, जंग के बीच नहीं। इस तरह की बातों के बीच हम जब फौजी तनाव, और आखिरकार तैयारियों, को घटाने की बात करते हैं, तो वह एक अलोकप्रिय बात हो सकती है, और युद्धोन्मादियों को खटक सकती है। लेकिन आज तमाम दूरदर्शी लोगों को यह समझ पड़ रहा है कि कारोबार ही असली जंग है, और दुनिया के देश बिना गठबंधनों के नहीं चल सकते। यह देखते हुए भारत, चीन, रूस, ईरान जैसे बहुत से देशों को एक-दूसरे के प्रति अपनी फौजी और आर्थिक नीतियों के बारे में एक बार फिर से सोचना होगा। और आज की विश्व व्यवस्था में चीन के साथ पाकिस्तान उसी तरह स्टेपनी जैसा जुड़ा हुआ है जैसा स्कूलें खुलने के मौसम में बाल भारती के साथ पहाड़े की किताब जुड़ जाती है। चीन से परे पाकिस्तान का आज कोई अस्तित्व नहीं है, और भारत और चीन के बीच जब बात होगी, तो यह जवाबदेही चीन पर रहेगी कि वह क्षेत्रीय संतुलन और फायदे के लिए पाकिस्तान को साथ चलने को तैयार करे, और रखे। इंसान के बच्चे को पैदा होने में 9 महीने लग जाते हैं, लेकिन ट्रम्प ने उससे भी कम समय में एक नई विश्व-व्यवस्था को जन्म दे दिया है, जो कि अब हकीकत बन चुकी है। ऐसे में दुनिया के सारे देशों को अपने हर तरह के हित, और हर तरह के गठबंधनों के बारे में सोचना चाहिए, और एक-दूसरे के खिलाफ सरहद पर खड़े भारत, चीन, और पाकिस्तान दुनिया में कमजोर ही गिने जाएंगे। ऐसी नौबत में भारत और चीन की अधिक समझदारी की जरूरत है, क्योंकि अब आर्थिक हमला सिर्फ ट्रम्प की तरफ से नहीं है, कल ईयू की तरफ से हुआ टैरिफ-हमला उससे कहीं भी कम नहीं है।   

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