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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : यौन-शोषण की शिकार छात्रा का निराशा में आत्मदाह, हर प्रदेश के जागने का मौका
सुनील कुमार ने लिखा है
14-Jul-2025 9:35 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : यौन-शोषण की शिकार छात्रा का निराशा में आत्मदाह, हर प्रदेश के जागने का मौका

ओडिशा के बालासोर में एक सरकारी कॉलेज की छात्रा ने कॉलेज कैम्पस में ही आत्मदाह की कोशिश की, और उसे 90 फीसदी जली हालत में अस्पताल में दाखिल कराया गया है। चिकित्सा विज्ञान का अब तक का अनुभव कहता है कि इस वक्त जब यह लिखा जा रहा है, तब तक हो सकता है कि वह चल भी बसी हो। उसने 30 जून को कॉलेज में एक शिक्षक पर अपना यौन-शोषण करने का आरोप लगाया था, लेकिन कॉलेज प्रशासन और पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, उससे निराश होकर उसने अपने आपको आग लगा ली। अब इस घटना के बाद सरकार ने इस सहायक प्रोफेसर, और प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया है, और जांच कमेटी बनाई है। स्थानीय भाजपा सांसद प्रताप चरण सारंगी का कहना है कि उन्हें भी यह शिकायत मिली थी, और तब कॉलेज ने उनसे कहा था कि पांच दिन में जांच रिपोर्ट तैयार हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आत्मदाह की खबर मिलने पर उन्होंने प्रिंसिपल को फोन किया, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। यह केन्द्र और ओडिशा, दोनों जगह सत्तारूढ़ भाजपा के सांसद का कहना है।

लेकिन हम इस एक घटना से परे भी पूरे देश के स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालयों में छात्राओं और शिक्षिकाओं के यौन-शोषण के मामलों पर बात करना चाहते हैं जो कि खबरों में तो बहुत कम आते हैं, लेकिन होते धड़ल्ले से हैं। किसी छात्रा को प्रैक्टिकल में अधिक नंबर देने के नाम पर, किसी को टीम में रखने के नाम पर नोंचा जाता है। विश्वविद्यालयों में शोध छात्राओं का शोषण एक बड़ी आम बात है, और अधिकतर छात्राएं इसकी शिकायत करने का हौसला भी नहीं कर पाती हैं, क्योंकि उससे या तो उनकी पीएचडी अधूरी रह जाएगी, या फिर हो चुकी पीएचडी की साख चौपट हो जाएगी कि उसने रिसर्च गाईड को उपकृत करके पीएचडी हासिल की है। कई मामलों में विश्वविद्यालय की बड़ी कुर्सियों पर जमे हुए मर्द एक-दूसरे को बचाने में लग जाते हैं, क्योंकि या तो वे खुद ऐसे धंधे में शामिल रहते हैं, या मुजरिम प्रोफेसर उन्हें भी इसी तरह उपकृत करने का वायदा करते हैं। इसके अलावा हिन्दुस्तान में धड़ल्ले से चलने वाले रूपयों के लेन-देन से भी मामले दबते ही होंगे।

यह देखना बहुत ही निराशा की बात है कि छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में भी जगह-जगह शिक्षक, हेडमास्टर, और प्रिंसिपल नाबालिग छात्राओं के देह-शोषण में शामिल मिले हैं, कई जगहों पर आदिवासी इलाकों की आश्रम शालाओं में रहने वाली छात्राओं का संगठित तरीके से शोषण हुआ है, कई जगहों पर छात्राएं गर्भवती हुई हैं, और कई मामलों में गिरफ्तारियां भी हुई हैं। कुल मिलाकर शैक्षणिक संस्थाओं में माहौल लडक़ी के लिए खतरे का ही रहता है, और जो लोग छात्राओं पर ऐसी नजर रखते हैं, वे सहकर्मी शिक्षिकाओं को अच्छी नजर से तो नहीं ही देखते होंगे। अभी कुछ हफ्ते पहले ही एक स्कूल में वहीं के प्रिंसिपल ने महिला शौचालय में अपने मोबाइल फोन को वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू करके छुपा रखा था, और वह इस काम को दो महीने से करते आ रहा था। जब शिक्षिकाओं ने उसके मोबाइल को पकड़ लिया, तब जाकर भांडा फूटा, और उसकी गिरफ्तारी हुई। अब ऐसा प्रिंसिपल छात्राओं के साथ क्या-क्या कोशिश नहीं करता होगा?

भारतीय समाज में यौन-शोषण की शिकार लडक़ी या महिला को ही सबसे बड़ा मुजरिम मानने की सोच बड़ी मजबूत है। नतीजा यह होता है कि दो-चार फीसदी मामले ही पुलिस तक पहुंचते होंगे, और बाकी मामले परिवार मन मारकर छुपा लेते होंगे। जब शोषण का एक मामला छुप जाता होगा, तो ऐसे हिंसक शिक्षक-प्राध्यापक, या खेल प्रशिक्षक-रिसर्च गाईड जैसे लोगों का हौसला बढ़ जाता होगा, और वे बाकी लोगों का शोषण करना अपना हक, और महफूज मान लेते होंगे। किसी एक जुर्म की शिकायत न होने पर वैसे ही और जुर्म होने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन शोषण की शिकायत करने वाली लडक़ी या महिला को जिस तरह की सामाजिक प्रताडऩा झेलनी पड़ती है, वह भी बहुत हिंसक रहती है। अभी फेसबुक पर एक महिला लेखिका के साथ एक बड़े चर्चित और विवादास्पद लेखक की यौन-छेड़छाड़ का मामला बहस का सामान बना हुआ है। इस मुद्दे पर लिखने वाले अधिकतर मर्द चुनौती के अंदाज में लेखिका को यह कह रहे हैं कि वह पुलिस में क्यों नहीं जा रही? मानो उन्हें यह अहसास नहीं है कि पुलिस में जाने का मतलब किसी महिला के लिए कई बरस का सुख-चैन खो देना होता है, और उसके बाद भी हमलावर मर्द को किसी सजा की गारंटी नहीं रहती। पंजाब की एक सीनियर आईएएस महिला के साथ वहां के डीजीपी रहे के.पी.एस.गिल ने शारीरिक छेडख़ानी की थी, लेकिन बरसों की मुकदमेबाजी के बाद सुप्रीम कोर्ट से गिल को महज अदालत उठने तक की सजा हुई थी, और इस महिला को चारों तरफ से तोहमतें मिलती रहीं कि पंजाब के आतंक से लडऩे वाले अफसर की एक हरकत को उसने बर्दाश्त नहीं किया। महिला बर्दाश्त करे तो हमलावर मर्द का हौसला और बढ़ता है, महिला बर्दाश्त न करे तो भी उसे ही तोहमत मिलती है।

अभी-अभी शिक्षक दिवस निकला ही है। बहुत से शिक्षकों के किस्से स्कूल-कॉलेज, और विश्वविद्यालयों में सब जानते हैं, लेकिन इस सिलसिले को रोकने की कोशिश कोई नहीं करते। जब तक शोषण की शिकार कोई हौसलामंद लडक़ी या महिला अपने सुख-चैन को खोकर सजा दिलवाने के लिए खड़ी हो जाए, तो ही यौन-शोषक पर आंच आती है, लेकिन ऐसे बहुत से लोग तो सिलसिलेवार-बलात्कारी होकर भी बने रहते हैं। भारत में सरकार से लेकर दूसरे दफ्तरों तक महिला के यौन-शोषण को लेकर समाज में गजब का बर्दाश्त है, और यही माहौल किसी महिला को अपने पर हुए जुल्म की रिपोर्ट करने से रोकता है। ओडिशा की छात्रा का यह आत्मदाह देश के हर प्रदेश के लिए एक चेतावनी रहना चाहिए। हर प्रदेश में ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें बलात्कार की शिकार लडक़ी की शिकायत पर जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो उसने खुदकुशी कर ली। कई मामलों में तो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी बलात्कारी-गुंडे-मवाली की छेडख़ानी जारी रहती है, और हताश लडक़ी के सामने जान दे देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रहता। जब कोई लडक़ी मर जाती है, तभी सरकार की नींद खुलती है। प्रदेशों में जो महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, या एसटीएससी आयोग रहते हैं, वे सत्ता के मनोनीत लोगों से भरे जाते हैं, और वे सत्ता के लिए कोई असुविधा खड़ी करने से कतराते हैं। लोकतंत्र में यह सब बहुत ही निराशा की नौबत है, न संवैधानिक संस्थाएं, और न ही पुलिस-अदालत कोई संवेदनशीलता दिखाते। फिलहाल तो हमारा यही कहना है कि ओडिशा की इस छात्रा को देखते हुए हर राज्य अपने-अपने दफ्तरों, और दूसरे संस्थानों को ठोक-बजा ले कि कहीं पर ऐसी शिकायतें तो दर्ज नहीं हैं। ऐसी हर मौत पूरे देश पर एक कलंक रहती है, अपने प्रदेश पर तो रहती ही है, हर सरकार अपना घर सुधार ले।

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