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चेन्नई, 11 जुलाई। महीनों तक जारी अभियान और आंध्र प्रदेश व कर्नाटक पुलिस के साथ समन्वय से तमिलनाडु आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने पिछले कुछ दिनों में तीन संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया है। तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) शंकर जिवाल ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने यहां संवाददाता सम्मेलन में बताया कि गिरफ्तार किए गए अबूबकर सिद्दीकी, मोहम्मद अली और सादिक उर्फ टेलर राजा लगभग तीन दशक से फरार थे और पुलिस लगातार उनका पीछा कर रही थी। इन अभियानों को ‘एराम’ और ‘आगाज़ी’ नाम दिया गया था।
तीनों व्यक्ति 1998 के कोयंबटूर सिलसिलेवार बम धमाकों और 2013 में बेंगलुरु के मल्लेश्वरम बम विस्फोट सहित कई मामलों में वांछित हैं। कोयंबटूर सिलसिलेवार बम धमाका मामले में 58 लोग मारे गए थे और 250 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
उन्होंने बताया कि संदिग्धों को पकड़ने के लिए पिछले लगभग छह महीने में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के पुलिस बलों के साथ मिलकर दो अभियान चलाए गए।
सिद्दीकी और अली को आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले से पकड़ा गया जबकि सादिक को कर्नाटक के विजयपुरा से गिरफ्तार किया गया।
पुलिस प्रमुख ने कहा, ‘‘आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने बहुत ही पेशेवर और सफल अभियान चलाया है... जांच जारी है।’’
गिरफ्तार किए गए लोग किराना दुकान, दर्जी की दुकान चलाने और रियल एस्टेट जैसे व्यवसायों से जुड़े थे।
चूंकि उन्हें इतने साल के बाद गिरफ्तार किया जा रहा था इसलिए पुलिस ने उनकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए ‘‘कुछ मापदंडों’’ का इस्तेमाल किया। जिवाल ने कहा, ‘‘हिरासत के 24 घंटे के भीतर उनकी पहचान की पुष्टि हो गई।’’
उन्होंने कहा कि सिद्दीकी और अली किसी प्रतिबंधित संगठन से जुड़े प्रतीत नहीं होते, लेकिन सादिक के प्रतिबंधित अल-उम्मा समूह का हिस्सा होने का संदेह है।
उनकी संभावित विदेश यात्राओं सहित विभिन्न विवरणों का पता लगाने के लिए जांच जारी है।
एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सिद्दीकी को पकड़ने के लिए कोयंबटूर पुलिस के सहयोग से तमिलनाडु खुफिया विभाग ने एटीएस के साथ मिलकर कई महीने पहले ‘ऑपरेशन एराम’ शुरू किया था।
विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘कई केंद्रीय एजेंसियों और केरल, कर्नाटक आदि राज्यों के राज्य पुलिस बल उसकी लगातार तलाश कर रहे थे। वह कई बम विस्फोटों और सांप्रदायिक हत्याओं के मामलों में वांछित था।’’
विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘वह 30 साल से फरार था, लेकिन दक्षिण भारत में आपराधिक गतिविधियों में शामिल भी था। उसके ठिकाने के बारे में बहुत कम सुराग उपलब्ध थे क्योंकि उसकी युवावस्था की तस्वीरों के अलावा कोई अन्य तस्वीर उपलब्ध नहीं थी।’’
विज्ञप्ति में कहा गया है कि ऐसा माना जाता है कि वह कई छद्म नामों से काम कर रहा था और ‘अकेला’ शख्स था जो अपना ठिकाना बदलता रहता था और कई तरह के काम करने में सक्षम था।
विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘उसे उच्च क्षमता वाली आईईडी (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) बनाने में महारत हासिल थी।’’
पुलिस टीम ने सावधानीपूर्वक तैयार की गई ‘ह्यूमिंट’ (ह्यूमन इंटेलिजेंस) और ‘टेकनिट’ (टेक्निकल इंटेलिजेंस) का इस्तेमाल करते हुए उसे आंध्र प्रदेश के अन्नामय्या जिले में कडप्पा के पास रायचोटी से दबोचा।
बाद में अली को पकड़ा गया और दोनों को यहां की एक स्थानीय अदालत ने हिरासत में भेज दिया।
इसके बाद तमिलनाडु पुलिस ने सिद्दीकी द्वारा दी गई जानकारी अपने आंध्र प्रदेश समकक्षों को दी, जिसके आधार पर उन्होंने गिरफ्तार व्यक्ति के घर की तलाशी ली और ‘‘विस्फोटक उपं अन्य आपत्तिजनक सामग्री बरामद की।’’
सादिक अली उर्फ दर्जी राजा, जिसे ‘वलर्नथा’ राजा उर्फ शाहजगन शेख के नाम से भी जाना जाता है, को पकड़ने के लिए ऑपरेशन ‘आग़ाजी’ शुरू किया गया।
विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘वह 1998 के कोयंबटूर सिलसिलेवार बम विस्फोट समेत चार संवेदनशील मामलों में वांछित है। वह 1996 से 29 वर्षों से फरार है। उसकी किशोरावस्था के बाद की कोई तस्वीर उपलब्ध नहीं थी और वह अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों से पूरी तरह से कटा हुआ था।’’
विशेष टीम ने कुछ राज्यों के सूत्रों से ‘‘सावधानीपूर्वक जानकारी’’ प्राप्त करके ‘ह्यूमिंट’ और ‘टेकनिट’ का उपयोग करके उस तक पहुंचने में सफलता हासिल की।
उसे नौ जुलाई को कर्नाटक के विजयपुरा से पकड़ा गया और बाद में कोयंबटूर लाया गया। (भाषा)