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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 10 जुलाई। कोटा विकासखंड के करई कछार गांव की सादगी से भरी महिलाएं अब ईंट-पत्थर जोड़ने का हुनर सीख रही हैं और वह भी अपने ही गांव में। खास बात यह है कि यह महिलाएं विशेष पिछड़ी जनजातियों, बैगा और बिरहोर समुदाय से आती हैं, जिनकी आजीविका अब तक जंगल और दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर रही है। लेकिन अब ये महिलाएं ‘रानी मिस्त्री’ बन आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रही हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की बिहान योजना के तहत, जिला पंचायत और आरसेटी ( आर एस ई टी आई) की मदद से करई कछार की 35 महिलाओं को मिस्त्री प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण की खासियत ये है कि यह गांव में ही चल रहा है, जिससे महिलाओं को घर छोड़कर बाहर जाने की परेशानी नहीं हो रही।
महिलाओं को पीएम आवास योजना के तहत बन रहे घरों में ही फील्ड पर जाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि उन्हें सीधे निर्माण स्थल का अनुभव मिले। ईंट जोड़ना, माप-नाप, प्लास्टर, लेवलिंग से लेकर छज्जा बनाने तक सभी जरूरी कार्य सिखाए जा रहे हैं।
प्रशिक्षण हासिल करने वाली तुलसी बैगा कहती हैं-अब तक हम सिर्फ मजदूरी करते थे, लेकिन अब हमें मिस्त्री का काम आ रहा है। इससे हम अपने गांव में ही कमाई कर सकेंगे और पीएम आवास योजना में काम भी मिलेगा।
सिया बाई बैगा बताती हैं कि गांव में ही प्रशिक्षण मिलने से हमें बहुत राहत है। अब हम सिर्फ जंगल पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि अन्य कामों से भी पैसे कमा सकते हैं।
प्रशिक्षण से जुड़ी महिलाएं अब लखपति दीदी योजना का हिस्सा भी बन रही हैं। यह पहल खासकर पीवी जीटी यानी विशेष पिछड़ी जनजातियों की महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए की गई है। शासन की योजना है कि इन महिलाओं को प्रशिक्षण के बाद सीधे निर्माण कार्यों में लगाया जाए ताकि उनकी नियमित आय शुरू हो सके।
महिलाओं ने गांव में ही प्रशिक्षण देने की पहल के लिए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का आभार जताया। उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रशिक्षण के बाद उन्हें काम मिलेगा और वे अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधार सकेंगी।