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-डेविड कॉक्स
नए रिसर्च से पता चला है कि अमेरिका में लड़कियों का पहला पीरियड्स जल्दी आ रहा है. इसके लिए कुछ हद तक ज़हरीली हवा को ज़िम्मेदार बताया जा रहा है.
कई दशकों से दुनिया के अलग-अलग देशों में वैज्ञानिक इस बात पर चिंता जता रहे हैं कि लड़कियां पिछली पीढ़ियों की तुलना में बहुत कम उम्र में ही यौवनावस्था में प्रवेश कर रही हैं.
लड़कियों को जब पहली बार पीरियड्स आता है, जिसे वैज्ञानिक मिनार्की की उम्र कहते हैं, उसके बाद से किशोरावस्था को दिखाने वाले दूसरे परिवर्तन जल्दी होने लगते हैं.
एक अनुमान, के मुताबिक़ मौजूदा दौर की अमेरिकी लड़कियों में एक सदी पहले की लड़कियों की तुलना में पीरियड्स चार साल पहले ही शुरू हो जाता है.
मई में आए नए आँकड़ों से पता चलता है कि 1950 और 1969 के बीच पैदा हुई लड़कियों में पीरियड्स आमतौर पर 12.5 साल की उम्र में शुरू होता था लेकिन 2000 के दशक की शुरुआत में पैदा हुई पीढ़ी के लिए ये घटकर औसतन 11.9 साल हो गया है.
जल्दी पीरियड्स के मायने
दुनियाभर में भी ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला है. दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने चिंता जताते हुए बताया है कि कैसे समय से पहले यौवनावस्था के लक्षण लड़कियों में दिखने लगे हैं.
इन वैज्ञानिकों का कहना है कि जल्दी किशोरावस्था या आठ साल की उम्र से पहले पीरियड्स आना 2008 और 2020 के बीच 16 गुना बढ़ गया है.
अमेरिका के अटलांटा में एमरी यूनिवर्सिटी में असोसिएट प्रोफ़ेसर ऑड्रे गैस्किंस कहती हैं, ''हम ये भी देख रहे हैं कि कम उम्र में यौवनावस्था में प्रवेश करना निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों और जातीय अल्पसंख्यक समूहों में अधिक है.'' वो कहती हैं, ''लंबे समय में सेहत पर इसका बड़ा असर पड़ता है.''
गैस्किंस जैसे रिसर्चर मुख्य रूप से इस बात से चिंतित हैं कि यौवनावस्था के पहले आने से कई दूसरी चीज़ों में भी बदलाव होता है और वयस्क होने पर इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.
आंकड़ों से पता चलता है कि इससे न केवल प्रजनन क्षमता कम हो सकती है, साथ ही मेनोपॉज़ भी पहले आ सकता है और इसका असर उम्र पर भी पड़ सकता है.
समय से पहले यौवनावस्था में प्रवेश को अक्सर कई बीमारियों से जोड़कर देखा जाता है, जैसे ब्रेस्ट और ओवरिएन कैंसर, मोटापा, टाइप-2 डायबिटीज़ और हृदय से जुड़ी दूसरी बीमारियां.
वैज्ञानिक अब भी ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आख़िर ऐसा क्यों होता है.
लेकिन कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी में पब्लिक हेल्थ की प्रोफ़ेसर ब्रेंडा स्केनाज़ी एक कारण बताती हैं.
इसके मुताबिक़, अगर शरीर की कोशिकाएं एस्ट्रोजेन जैसे सेक्स हॉर्मोंस के संपर्क में ज़्यादा समय तक रहती हैं, तो इससे ट्यूमर के बढ़ने का ख़तरा बढ़ सकता है क्योंकि इस हार्मोन से कोशिकाओं में वृद्धि होती है.
वो कहती हैं, ''इसके अलावा कुछ सिद्धांतों के मुताबिक़, हार्मोंस के संपर्क में अधिक समय तक रहने से रिप्रोडेक्टिव कैंसर का ख़तरा बढ़ सकता है.''
इसके अलावा सामाजिक तौर पर भी चीज़ें दिखती हैं. स्केनाज़ी बताती हैं कि जो लड़कियां जल्दी यौन अवस्था में प्रवेश करती हैं, उनके यौन रूप से सक्रिय होने की संभावना भी जल्दी होती है.
वो कहती हैं, ''अमेरिका में अवैध तौर पर गर्भपात कराया जा रहा है और गर्भनिरोधक उपलब्ध नहीं है, ये डरावनी स्थिति है. इससे किशोर लड़कियों में अनचाहे गर्भधारण की संख्या बढ़ेगी, स्थिति डराने वाली है.''
यौवनावस्था, शरीर में दो अहम कम्युनिकेशन नेटवर्क के कारण शुरू होता है, जिन्हें हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-एड्रेनल (एचपीए) और हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-गोनाडल (एचपीजी) एक्सिस कहते हैं.
ये मस्तिष्क के एक हिस्से जिसे हाइपोथैलेमस कहते हैं, उन्हें जोड़ते हैं. हाइपोथैलेमस भूख से लेकर तापमान के नियंत्रण और शरीर के दूसरे कार्यों को अलग-अलग हार्मोन-स्त्रावी ग्लैंड के साथ नियंत्रित करता है.
गैस्किंस का कहना है कि 10 से 20 साल पहले तक, वैज्ञानिक ये मानते थे कि समय से पहले यौवन का इकलौता कारण बचपन में मोटापा है. लेकिन हाल ही में लोगों को पता चला है कि ये बस एक कारण नहीं हो सकता, इसके पीछे कई दूसरे कारक भी शामिल हैं.
वायु प्रदूषण हो सकता है अहम कारण
पिछले तीन साल में किए गए कई दूसरे स्टडीज़ एक हैरान करने वाले कारण की ओर इशारा करते हैं, जो है- वायु प्रदूषण.
इस रिसर्च का ज़्यादातर हिस्सा दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने किया है. सोल, बुसान और इंचियोन IQAir इंडेक्स के अनुसार, दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं.
सोल स्थित इवा वीमंस यूनिवर्सिटी ने हाल ही में एक समीक्षा प्रकाशित की, जिसमें प्रदूषकों और यौवनावस्था के जल्दी आने के बीच के संबंध के बारे में लिखा गया था.
इसकी कुछ अहम वजहें ज़हरीली गैसें जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और ओज़ोन हैं. ये गैसें गाड़ियों से निकलने वाले धुएं और मैन्युफेक्चरिंग प्लांट से निकलने वाले कचरे के जरिए वातावरण में आते हैं.
साल 2022 में पोलैंड में एक स्टडी की गई. पोलैंड कोयला जलाने वाली फैक्ट्रियों की वजह से ख़राब वायु गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है.
इस स्टडी में 1,257 महिलाओं के आंकड़ों की जांच की गई और ये पाया गया कि नाइट्रोजन गैस के अधिक संपर्क और 11 साल की उम्र से पहले आने वाले पीरियड के बीच एक संबंध है.
शायद इससे भी बड़ी समस्या पार्टिकुलैट मैटर कण (पीएम पार्टिकल) हैं. जो इतने छोटे होते हैं कि दिखते नहीं हैं.
ये पीएम कण निर्माण स्थलों से लेकर जंगल की आग, बिजली उत्पादन संयंत्रों, वाहनों के इंजन और यहां तक कि धूल भरी, कच्ची सड़कों तक की वजह से हवा में आकर मिल जाते हैं.
अक्टूबर 2023 में गैस्किंस और उनके सहयोगियों ने पाया कि ऐसी अमेरिकी लड़कियां जो अपनी मां के गर्भ में या अपने बचपन में पीएम 2.5 और पीएम 10 पार्टिकल्स के संपर्क में आती हैं, उनका पहला पीरियड कम उम्र में आने की आशंका बढ़ जाती है.
बता दें कि पीएम 2.5 या पीएम 10 हवा में कण के साइज़ को बताता है.
कहीं भी पहुंच सकते हैं पीएम 2.5 कण
गैस्किंस कहती हैं, ''पीएम 2.5 कण खून में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं. आप उन्हें सांस के ज़रिए फेफड़ों में लेते हैं और वो बड़े कणों की तरफ़ फ़िल्टर नहीं होते हैं और फिर वो दूसरे अंगों तक पहुंच सकते हैं. हमने कुछ पीएम 2.5 कणों को प्लेसेंटा, भ्रूण के उत्तकों और अंडाशय में जमा होते देखा है, वो हर जगह पहुंच सकते हैं.''
घर के भीतर हवा से लिए गए सैंपल्स के अध्ययनों से पता चला है कि इन कणों में मौजूद रसायन, शरीर के विकास के लिए ज़रूरी हार्मोंस को प्रभावित कर सकते हैं, जिसकी वजह से यौवन की जल्द शुरुआत हो सकती है.
गास्किंस कहती हैं, “ये हमारा शुरुआती आकलन है कि जो लड़कियां पीएम-2.5 कणों के अधिक संपर्क में थीं, उन पर और भी रसायनों का असर पड़ा, जिन्होंने शरीर में ऐसे बदलाव किए जिससे यौवन की शुरुआत जल्दी हो गई.”
गास्किंस कहती हैं कि कम उम्र में ही लड़कियों के शरीर में आने वाले बदलावों के पीछे कई कारक हो सकते हैं. उनका मानना है कि पीएम-2.5 और अन्य प्रदूषकों की भूमिका एक उदाहरण भर है.
वहीं प्रोफ़ेसर ब्रेंडा स्केनाज़ी का कहना है कि हमारी बदलती दुनिया और उसका बच्चों के विकास पर असर के बारे में हमें अभी भी बहुत अधिक नहीं पता है. उनका ये भी मानना है कि माइक्रो-प्लास्टिक्स और क्लाइमेट चेंज जैसे कारकों की भूमिका के बारे में हम काफ़ी हद तक अनभिज्ञ हैं.
वो कहती हैं, “मुझे लगता है कि हमें अभी भी बहुत कम पता है. हमें नहीं पता कि गर्म होता जलवायु किस तरह पीरियड्स को प्रभावित कर रहा है. ये रुझान पर्यावरण में रसायनों के मिश्रण, मोटापे और मनोवैज्ञानिक वजहों से हो सकते हैं, जिससे जवानी की दहलीज पर क़दम जल्दी पड़ रहे हैं.” (bbc.com/hindi)