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पंजाब विधानसभा चुनाव को नए राजनीतिक समीकरण बना सकते हैं कांटे की टक्कर
09-Jan-2022 11:12 AM
पंजाब विधानसभा चुनाव को नए राजनीतिक समीकरण बना सकते हैं कांटे की टक्कर

इमेज स्रोत,ANI


-राघवेंद्र राव

जहां एक तरफ सत्तारूढ़ कांग्रेस चुनावों से कुछ ही महीने पहले एक नया मुख्यमंत्री बना कर सत्ता में लौटने की फ़िराक़ में है.

वहीं दूसरी तरफ अकाली दल को उम्मीद है कि बहुजन समाज पार्टी के साथ हाल ही में हुआ गठबंधन उसके लिए सत्ता हासिल करने का एक नया रास्ता बना देगा.

पिछले विधान सभा चुनावों में मुख्य विपक्षीय पार्टी के तौर पर उभरी आम आदमी पार्टी इस बार विपक्ष से सत्ता का सफर तय करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है.

इसी सब के बीच निगाहें कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई राजनीतिक पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस पर भी है जो भारतीय जनता पार्टी और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा की शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ मिल कर चुनावी मैदान में उतर रही है.

साथ ही ध्यान खींच रही एक नई पार्टी जिसे किसान आंदोलन में शामिल 22 किसान संगठनों ने मिलकर बनाया है और जो वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल की अगुवाई में चुनावी मैदान में कूद गई है.

पंजाब विधान सभा में कुल 117 सीटें हैं. 2017 में हुए विधान सभा चुनावों में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस ने इन 117 सीटों में से 77 सीटें जीत कर सरकार बनाई थी.

लगातार 10 साल सत्ता में रहने के बाद अकाली दल 2017 के चुनावों में मात्र 15 सीटें ही जीत पाया था. इस हार के बावजूद अकाली दल का वोट-शेयर 25.24 प्रतिशत रहा था.

20 सीटें जीत कर आम आदमी पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. 2017 के चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 23.72 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था.

कांग्रेस सरकार की मुश्किलें
भारी बहुमत से जीतने के बावजूद कैप्टन अमरिंदर सिंह की अध्यक्षता वाली कांग्रेस सरकार पर ये आरोप लगता रहा कि उसने अपने चुनावी वादे पूरे नहीं किए.

इन आरोपों को लगाने में एक बड़ी भूमिका नवजोत सिंह सिद्धू की रही जो कैप्टन सरकार में मंत्री रह चुके थे लेकिन समय के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह के एक बड़े आलोचक के रूप में उभरे.

कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिद्धू के बीच कई महीनों तक चली रस्साकशी का नतीजा ये हुआ कि जहाँ सिद्धू को चुनावों से कुछ महीने पहले पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से एक नई पार्टी बना ली.

इसी घटनाक्रम के चलते चमकौर साहिब से कांग्रेस विधायक चरणजीत सिंह चन्नी सितम्बर 2021 में पंजाब के नए मुख्यमंत्री बन गए.

चन्नी के लिए काँटों का ताज?
प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं और पंजाब की राजनीति पर पैनी नज़र रखते हैं.

वह कहते हैं, "चन्नी दलित समुदाय से आते हैं. तो निश्चित तौर पर पहली बार ऐसा लग रहा है कि कहीं न कहीं एक दलित चेहरा आया है और दलितों का सशक्तिकरण हुआ है."

पंजाब विधान सभा में 34 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित है. पिछले चुनावों में कांग्रेस ने इन 34 सीटों में से 21 सीटें जीती थीं.

इस बार पार्टी को उम्मीद है कि एक दलित मुख्यमंत्री होने का फ़ायदा उसे इन सीटों पर मिलेगा. चरणजीत सिंह चन्नी का चेहरा इस वक़्त पूरे पंजाब में बड़े बड़े होर्डिंग्स पर देखा जा सकता है.

लेकिन जानकारों की मानें तो चुनावों से कुछ ही महीने पहले चन्नी को मिला ये ताज काँटों भरा ही है.

डॉ. प्रमोद कुमार चंडीगढ़ स्थित इंस्टिट्यूट फ़ॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के निदेशक और पंजाब के मसलों के जानकार हैं. उनका कहना है कि भले ही चन्नी को आख़िरी कुछ महीनों के लिए मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने एक दांव खेला है लेकिन साढ़े चार साल में कांग्रेस सरकार का ख़राब प्रदर्शन पार्टी को आगामी चुनाव में भारी पड़ सकता है.

वे कहते हैं, "ये देखा गया है कि चुनावों में राजनीतिक मैनेजर पार्टियों से बड़े बड़े वादे करवा लेते हैं. इन वादों के दम पर पार्टियां चुनाव तो जीत जाती हैं लेकिन वो वादे पूरे करने की स्थिति में नहीं होतीं. पंजाब में कांग्रेस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. कांग्रेस ने सरकार बनने के चार हफ़्तों के भीतर ड्रग्स की समस्या को ख़त्म करने का वादा किया था. वो वादा पूरा नहीं हुआ. इसी तरह हर घर में नौकरियां देने का वादा किया था. लेकिन लोगों को नौकरियां नहीं मिलीं."

चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद के सफर पर नज़र डालें तो ये साफ़ है कि उनके और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच किसी किस्म का तालमेल नहीं बन पाया है.

राज्य के डीजीपी और एडवोकेट जनरल की नियुक्ति को लेकर दोनों के बीच खींचतान हुई और आख़िरकार चन्नी को इन पदों से उन अधिकारियों को हटाना पड़ा जिनकी नियुक्ति से सिद्धू नाराज़ थे.

जहां चन्नी पंजाब के युवाओं को हर साल एक लाख नौकरियां देने और स्टार्टअप शुरू करने वाले लोगों के लिए ब्याज-मुक्त ऋण देने जैसे वादे कर रहे हैं वहीं सिद्धू गृहिणियों के लिये हर महीने दो हज़ार रुपये और आठ मुफ्त गैस सिलिंडर देने का वादा कर रहे हैं. सिद्धू ने हाल ही में ये भी कहा कि अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेजों में प्रवेश लेने वाली लड़कियों को दोपहिया वाहन, 12 वीं कक्षा पास करने वाली लड़कियों को 20,000 रुपये, 10 वीं कक्षा पास करने वाली लड़कियों को 15,000 रुपये और पांचवीं कक्षा पास करने वाली लड़कियों को 5,000 रुपये दिए जाएंगे.

2022 की शुरुआत में ही कांग्रेस पार्टी मोगा में एक बड़ी चुनावी रैली करने के योजना बना रही थी और ये उम्मीद कर रही थी कि चन्नी और सिद्धू एक ही मंच से कांग्रेस का एक संयुक्त चेहरा पेश करेंगे. इस रैली का नेतृत्व राहुल गाँधी को करना था लेकिन उनके अचानक विदेश चले जाने की वजह से कांग्रेस को इस रैली को टालना पड़ा.

कांग्रेस नए चुनावी वादे करने में कोई कमी नहीं छोड़ रही लेकिन पार्टी का अपने पिछले चुनावी वादों पर ख़राब प्रदर्शन एक बड़ी चर्चा का विषय है जिससे निपटना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा.

केजरीवाल का दांव
वादों और चुनावों का पुराना रिश्ता है. और आम आदमी पार्टी भी ढेर सारे चुनावी वादों के साथ लोगों को लुभाने की कोशिश कर रही है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पंजाब के लोगों को मुफ्त बिजली और सभी वयस्क महिलाओं को हर महीने एक हज़ार रूपए देने जैसे वादे कर रहे हैं.

अपने चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल पंजाब के लोगों को दिल्ली के वो लाखों बिजली बिल दिखाना नहीं भूलते जिनमें बिल की राशि शून्य है.

डॉ. प्रमोद कुमार कहते हैं, "आजकल तो पंजाब में दौर चला हुआ है वादे करने का. हर पार्टी वादा कर रही है. आम आदमी पार्टी दिल्ली से आयी है. इन्होने पंजाब में जो कल्चर शुरू किया है उसे मैं कहता हूँ मेन्यु-फेस्टो. ये मेन्यु कार्ड लाते हैं--किसान के लिए, युवाओं के लिए ये, औरतों के लिए ये. जैसे रेस्टोरेंट में आप जाते हैं तो आप को मेन्यु कार्ड मिलता है."

केजरीवाल पंजाब में कई जन सभाएं कर चुके हैं लेकिन अभी तक ये साफ़ नहीं है कि उनकी पार्टी का मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार कौन होगा.

वहीं प्रोफेसर आशुतोष कुमार का मानना है कि आम आदमी पार्टी ने पंजाब में संगठन बनाने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं किया है और वे केवल दिल्ली मॉडल की ही बात करके लोगों को लुभाने की कोशिश कर रहे है.

वे कहते हैं, "केजरीवाल अपने बल पर चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. पोस्टरों पर सब जगह केजरीवाल का चेहरा आ रहा है. केजरीवाल के नाम पर अगर चुनाव लड़ेंगे तो वो देख चुके हैं कि 2017 में इसका फ़ायदा नहीं मिला था."

अकाली दल की योजना
पंजाब में अगली सरकार बनाने की दावेदारी शिरोमणि अकाली दल की भी है.

2007 से 2017 तक लगातार सत्ता में रहने के बाद अकाली दल को पिछले चुनावों में भारी हार का सामना करना पड़ा था.

पार्टी के वरिष्ठतम नेता और पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रकाश सिंह बादल अब 94 साल के हो चुके हैं और ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या वो इस बार चुनाव लड़ते हैं या नहीं.

हाल ही में अकाली दल ने मोगा में एक भव्य रैली करके अपना शताब्दी दिवस मनाया और अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की.

विवादित कृषि कानूनों की वजह से अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन साल 2020 में टूट गया था. तीन नए कृषि क़ानून भले ही रद्द कर दिए गए हों लेकिन जानकारों के अनुसार अकाली दल की चिंताएं कम नहीं हुई हैं.

प्रोफेसर आशुतोष कुमार कहते हैं कि अकाली दल ने अपनी छवि को साफ़ करने की बहुत कोशिश की है लेकिन फिर भी आगामी चुनाव उनके लिए आसान नहीं होगा.

वह कहते हैं, "अकाली दल खुद को किसानों की पार्टी कहती है. तो उन्हें लग रहा है कि उन्हें बहुत बड़ा नुकसान होगा क्योंकि पारम्परिक तौर पर उन्हें ग्रामीण इलाकों और जमींदार किसानों से समर्थन मिलता था. वो पूरी कोशिश कर रहे है कि उनकी छवि जो धूमिल हुई थी वो ठीक हो जाये. लेकिन लोगों को ये भी याद है कि वो सरकार में शामिल थे और संसद में भी उन्होंने कृषि कानूनों का समर्थन किया था. इस बात से पीछा छुड़ाना और अपनी छवि सुधारना अकाली दल के लिए मुश्किल होगा."

इस बार अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया है. अकाली दल की एक बड़ी चिंता ये है कि बीजेपी से उसका गठबंधन टूटने की वजह से हिन्दू वोटर कहीं उससे मुंह न मोड़ ले.

शायद इसी वजह से पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने ये एलान किया है कि अगर शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी तो उसमें दो उप-मुख्यमंत्री होंगे जिनमें से एक दलित होगा और दुसरा पंजाबी हिन्दू.

बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह की जोड़ी
कई साल पंजाब में अकाली दल की जूनियर पार्टनर रही बीजेपी ने इस बार पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी से चुनावी गठबंधन कर लिया है.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई पार्टी भले ही कोई करिश्मा न दिखा पाए लेकिन बाकी पार्टियों के लिए एक सिरदर्द बन सकती है.

प्रोफेसर आशुतोष कुमार कहते हैं, "ये कहना मुश्किल है कि अमरिंदर सिंह किसका नुकसान करेंगे. और क्या अमरिंदर सिंह कुछ नुकसान कर भी पाएंगे या नहीं. पर एक चीज़ अमरिंदर सिंह ज़रूर करेंगे. जिन राजनेताओं को टिकट नहीं मिलेगी उनको इकठ्ठा करने में वो एक भूमिका निभा सकते हैं."

साढ़े चार साल मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह की सबसे ज़्यादा आलोचना इसी बात पर रही है कि उन्होंने अपने वादे पूरे नहीं किए और न ही उनकी सरकार का प्रदर्शन अच्छा रहा. जानकारों के मुताबिक कैप्टन अमरिंदर अब उतने प्रभावशाली नहीं हैं जितने वे 2017 में थे.

लेकिन पंजाब में कथित बेअदबी की घटनाओं के बाद पंजाबी हिंदू, जिन्होंने पहले कैप्टन अमरिंदर पर विश्वास जताया था. अब बीजेपी एक ऐसी पार्टी के रूप में देख रहे हैं जो उनके हितों की रक्षा कर सकती है. बीजेपी और अमरिंदर का एक साथ आना पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यकों के मूड से तालमेल बिठाता दिख रहा है.

किसानों की नई पार्टी भी चुनावी मैदान में
वहीं एक ताज़ा घटनाक्रम में किसान आंदोलन में शामिल कुल 32 किसान संगठनों में से 22 संगठनों ने संयुक्त समाज मोर्चा के नाम से एक नई राजनीतिक पार्टी बना ली है.

ये पार्टी किसान आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा रहे वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल की अध्यक्षता में आगामी पंजाब चुनाव लड़ने जा रही है.

किसान आंदोलन को पंजाब के लोगों, ख़ासकर ग्रामीण सिख किसानों का भरपूर समर्थन मिला था. लेकिन क्या किसानों की राजनीतिक पार्टी चुनावों में अन्य पार्टियों को टक्कर दे पायेगी?

डॉ प्रमोद कुमार कहते हैं, "किसान एक किसान पार्टी बना कर नहीं जीत सकते. किसान अगर एक ऐसी पार्टी बना लें जिसमें हर तरह के हितों का प्रतिनिधित्व हो चाहे वो व्यापारी हों, उद्योगपति हों. सर्विस सेक्टर हों, औरतें हो तो वो एक रीजनल चुनौती दे सकते हैं."

डॉ प्रमोद कुमार कहते हैं कि किसानों का चुनावों में अपने दम पर जीतना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि पंजाब एक्सक्लूसिव नहीं है और पंजाब में कोई ऐसा चुनाव क्षेत्र नहीं है जिसमें हर तरह के लोग आपको न मिलें या कोई ऐसा राजनीतिक दल नहीं है जिसमें हर तरह के लोगों का प्रतिनिधित्व न हो.


किन मुद्दों की है चर्चा?
चुनावों के समय पंजाब में जिन मुद्दों पर चर्चा हो रही है उनमें बेरोज़गारी और किसानों के कर्ज़ों की माफ़ी सबसे ऊपर हैं. राज्य में जगह जगह सरकारी कर्मचारी वेतन में बढ़ोतरी, रेगुलराइसेशन और पेंडिंग भत्तों जैसे मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

हाल ही राज्य में हुई कथित बेअदबी की घटनाएं भी आगामी चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकती हैं. (bbc.com)


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