कोरिया

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुंठपुर (कोरिया) 18 जुलाई। कोरोना संक्रमण काल खत्म हुए कई महीने बीत चुके हैं। इसके बाद भी बस संचालक एक-एक सीट पर तीन से चार गुना किराया वसूल रहे हैं। यही हाल ऑटो रिक्शा भी है, सिर्फ 5 किमी का किराया 50 रूपए वसूल रहे हंै, सबसे बड़ी बात यह है कि आरटीओ जनता के मुद्दों पर आखों मूंदे बैठा हुआ है। जिससे लोगों में काफी नाराजगी देखी जा रही है।
बस और ऑटो रिक्शा में यात्रियों से आरटीओ विभाग के नाक के नीचे मनमाना किराया वसूल किया जा रहा है। इन बसों में सीनियर सिटीजन से एक लोवर स्लीपर के लिए चार सीटों का किराया वसूल किया जा रहा है। ऑटो रिक्शा के लिए तोआरटीओ के द्वारा किसी भी तरह की दर फिक्स नही की गई है जबकि बसों में छत्तीसगढ़ शासन का किराया लिस्ट भी नहीं लगाया गया है।
लॉकडाउन के बाद अचानक ही ऑटो चालकों ने किराया दो से तीन गुना कर दिया है। तब से किराया कम नही किया, अब उनका कहना कि पेट्रोल डीजल के दामों में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है उन्हें इससे कम से नही हो पाता है। 15 से 17 किलोमीटर तक के जिन रूटों पर पहले 10 रुपए किराया था, वहां सीधे 50 रुपए वसूला जा रहा है। हैरानी की बात ये है कि ऑटो में सफर के लिए मनमर्जी की किराया स्लैब तैयार कर ली है। अब यदि सवारी 4-5 किलोमीटर तक के लिए भी ऑटो में बैठती है तो उसे 50 रुपए ही देने होंगे। इतना किराया बसों में भी नहीं है।
मनमाना बढ़ोतरी
कोरोना महामारी में डीजल के दामों में इतनी भी बढ़ोतरी नहीं हुई थी उन दिनों जो यात्री किराया भाड़ा में चौगुनी बढ़ोतरी की गई वो आज भी लागू है। मनमाना किराया वसूल कर आमजन की जेब पर डाका डाला जा रहा है। सबसे ज्यादा ऑटो रिक्शा चालकों द्वारा चरचा स्टेशन से बैकुंठपुर तक का किराया 50 से 60 रूपए प्रति यात्री के हिसाब से वसूली की जा रही है, जबकि कोरोना कॉल से पहले इसका किराया मात्र 10 रूपए था। आटो रिक्शा और बस मालिकों द्वारा यात्रियों से मनमाना किराया वसूल कर जेब पर डाका डाला जा रहा है।
ऑटो चालकों के तर्क सवारी कम बैठाते हैं, पेट्रोल खर्च कैसे निकालें
किराया वृद्धि पर ऑटो चालकों से पूछा तो उन्होंने तर्क दिया कि पेट्रोल का खर्च भी निकल नहीं रहा, ऐसे में किराया नहीं बढ़ाएं तो क्या करें। लॉकडाउन से पहले खूब सवारियां मिलती थीं तो 10 रुपए लेकर सवारी बैठा लेते थे। अब सवारियां तो दो-चार बैठती हैं। और सवारियों का इंतजार करें तो वो सवारी भी चली जाती हैं। सवारी उतनी आ ही नहीं रही। अब एक-दो सवारी लेकर खाली ऑटो चलेगा पेट कैसे पालेंगे।
सुविधा और सुरक्षा भी नाकाफी
बसों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत सीट आरक्षित हैं। इसके उलट बसों में भीड़ के वक्त ऐसा नहीं लगता न ही महिलाओं को सीट दिए जाने को लेकर कंडक्टर या स्टाफ गंभीर होते हैं। जिसके कारण महिलाओं को दिक्कत झेलनी पड़ती है। नियमों के अनुसार उन्हें सुविधा, सहूलियत नहीं मिल रही, जिसका बेजा इस्तेमाल संचालक करते हैं। इसके एवज में अधिक रुपए वसूले जाते हैं।