कवर्धा

किसानों में उम्मीद, मछलियों के बहने का खतरा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बोड़ला, 27 जुलाई। कबीरधाम जिले के बोड़ला ब्लॉक के चर्चित छीरपानी डैम में इस साल भी उलट प्रवाह शुरू हो गया है। पिछले 3-4 वर्षों से लगातार हो रही अच्छी बारिश के कारण जंगलों और पहाड़ों से होकर बड़ी मात्रा में पानी बहकर सीधे छीरपानी डैम में पहुंच रहा है। इस प्राकृतिक प्रवाह से डैम का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है।
ग्रामीणों का कहना है कि यह दृश्य हर साल बरसात के मौसम में देखने को मिलता है। उलट चालू होने से जहां एक ओर खेती-किसानी के लिए राहत की उम्मीद जगी है, वहीं दूसरी ओर डैम में चल रहे मछली पालन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
किसानों में खुशी की लहर
मैदानी क्षेत्रों के किसान इस जलभराव को सकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं। भीरा गांव के किसान अशोक ने कहा, डैम में जितना ज्यादा पानी भरेगा, उतना ही हमारे खेतों में सिंचाई की सुविधा बढ़ेगी। रबी फसल के लिए अब हमें नहरों और कुओं पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
वहीं विसर्जन धुर्वे ने बताया कि पिछले कुछ सालों से डैम में पानी भरने से क्षेत्र में दोहरी फसल ली जा रही है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है। कुसुमघटा के किसान शिव वर्मा का कहना है कि उलट प्रवाह से तालाब और कुएं भी रिचार्ज होते हैं, जिसका फायदा गांव के हर किसान को होता है।
फिशरी विभाग की चिंता
हालांकि, मछली पालन को लेकर स्थिति थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। फिशरी विभाग के निरीक्षक नीलेश चन्द्रवंशी, जो मौके पर मछली पालन की गतिविधियों का निरीक्षण कर रहे थे, ने बताया, जब उलट प्रवाह शुरू होता है तो मछलियों के बह जाने का खतरा बढ़ जाता है। इससे मछली पालन करने वाले लोगों को नुकसान हो सकता है। हम इसे नियंत्रित करने के लिए अस्थायी जाल और रोकथाम के उपाय कर रहे हैं।
मछली पकडऩे की होड़
उलट चालू होते ही भीरा, अक्लघरिया, भोंदा और बोड़ला गांवों के लोग मछली पकडऩे के लिए डैम क्षेत्र में पहुंचने लगते हैं। पानी का तेज बहाव मछलियों को किनारे की ओर ले आता है, जिससे ग्रामीणों में मछली पकडऩे की होड़ मच जाती है। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक इस मौके को गंवाना नहीं चाहते और डैम किनारे चहल-पहल बढ़ जाती है।
ग्रामीणों के लिए उत्सव जैसा माहौल
ग्रामीण इस पूरे घटनाक्रम को न केवल खेती के लिहाज से बल्कि सामाजिक रूप से भी शुभ मानते हैं। उनके मुताबिक, उलट प्रवाह से डैम भर जाने पर गर्मियों में भी पानी की किल्लत नहीं रहती, तालाब और नलजल योजना सुचारु रहती है। साथ ही खेतों की सिंचाई और पशुओं के लिए भी पानी की पर्याप्त व्यवस्था हो जाती है।
प्राकृतिक जलसंचयन का लाभ
डैम के ऊपरी हिस्सों में फैले घने जंगल और पहाड़ बरसात के दौरान जलसंचयन का बड़ा माध्यम बन जाते हैं। पहाड़ों से बहकर आया पानी सीधे डैम में जमा होता है, जिससे प्राकृतिक जलसंरक्षण होता है। यही कारण है कि बीते कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में सूखे जैसी स्थिति नहीं बनी।
ग्रामीणों ने प्रशासन और सिंचाई विभाग से मांग की है कि डैम क्षेत्र में मछली पालन को सुरक्षित रखने के उपाय किए जाएं, साथ ही उलट प्रवाह के दौरान किसी तरह की अनहोनी न हो इसके लिए चेतावनी बोर्ड और सुरक्षा इंतजाम लगाए जाएं।
कुल मिलाकर, छीरपानी डैम का उलट प्रवाह किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण लेकर आया है, जबकि मछली पालन करने वालों के लिए यह चुनौती भी बन रहा है।