कवर्धा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कवर्धा, 28 फरवरी। आंगनबाड़ी केंद्र खोलने का मुख्य उद्देश्य बच्चों का पोषण और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना , बच्चों का शारीरिक विकास सुनिश्चित करना , बच्चों का नामांकन और उपस्थिति सुनिश्चित करना , बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाना , बच्चों की स्वास्थ्य जांच करना , बच्चों को पूर्व-प्राथमिक शिक्षा देना , महिलाओं को स्वास्थ्य, पोषण, और विकास की ज़रूरतों के बारे में बताना , महिलाओं को गर्भनिरोधक परामर्श और आपूर्ति देना , महिलाओं में एनीमिया की रोकथाम करना , सामुदायिक चेतना, जागरूकता , बाल विवाह रोकना सहित अन्य कार्य किया जाता है लेकिन जब जिम्मेदार अपने मुख्यालय से दूर रहती है तो इन सब कार्यों पर अमल कैसा होगा इसकी उम्मीद करना बेइमानी है।
मुख्यालय का सफर 60 किलोमीटर
एकीकृत बाल विकास परियोजना तरेगांव में कुल 130 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं, जो चार सेक्टर मुख्यालय हैं, जिसमें तरेगांव , दलदली , बैजलपुर , मडमडा शामिल हैं।
दलदली सेक्टर की जिम्मेदारी माया बरगाह की है। जहां पर 34 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। जंगल और पहाड़ों में घिरे होने के कारण दलदली मुख्यालय से कुछ आंगनवाड़ी केंद्रों की दूरी 20 किलोमीटर से भी अधिक दूरी पर संचालित है। जिसका नियमित निरीक्षण, जांच करने का मुख्य जिम्मेदारी सेक्टर पर्यवेक्षक की है। हालांकि और सक्षम अधिकारी भी हैं लेकिन उनका दौरा कभी कभार विशेष परिस्थितियों में होता है।
सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी अनुसार सेक्टर पर्यवेक्षक मुख्यालय में निवास करने के बजाए वार्ड क्रमांक 03, बाजार चौक पुलिस चौकी के सामने ,ग्राम व पोस्ट बैजलपुर विकासखंड बोड़ला में किराया के मकान लुकेश उईके के मकान पर निवास करती हंै। बैजलपुर से मुख्यालय दलदली लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है। तरेगांव से दलदली जाने के लिए सडक़ का साधन तो है लेकिन पहाड़ी होने के कारण हमेशा परेशानी होती हैं। बैजलपुर से दलदली जाना 30 किलोमीटर और वापस आना भी 30 किलोमीटर मतलब 60 किलोमीटर आने और जाने का सफर है। मुख्यालय से निरीक्षण के लिए कोई भी केंद्र जाना और अतिरिक्त है ।
आखिर मुख्यालय में निवास करने में परहेज क्यों
दलदली में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है जहां पर मौजूद सभी चिकित्सक , नर्स और अन्य कर्मचारी मुख्यालय पर निवास करते है। आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रावास और आश्रम शाला भी हैं साथ ही उक्त क्षेत्र के शिक्षक भी किराया के मकान लेकर दलदली या आसपास के गांवों में निवास करते हैं लेकिन महिलाओं और बच्चों से जुड़ी विभाग के पर्यवेक्षक का मुख्यालय में निवास नहीं करना समझ से परे हैं। सक्षम अधिकारी के द्वारा भी उन्हें मुख्यालय में निवास करने से निर्देशित नहीं करना ये भी एक बड़ा सवाल है।
नियमित निरीक्षण का अभाव
आंगनबाड़ी पर्यवेक्षक की सर्वप्रथम भूमिका क्षेत्र में कई आंगनबाड़ी केंद्रों के कामकाज की निगरानी करना है। इसमें केंद्रों का नियमित दौरा करना शामिल है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे पोषण, स्वास्थ्य जांच और प्रारंभिक बचपन की शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान कर रहे हैं लेकिन मुख्यालय में निवास नहीं करने के कारण यह संभव नहीं है।
समय पर नहीं खुलते आंगनबाड़ी केंद्र
आंगनबाड़ी पर्यवेक्षक, कार्यकर्ता और सहायिकाओं के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि कार्यकर्ता आईसीडीएस कार्यक्रम के उद्देश्यों से अच्छी तरह वाकिफ हों और वे अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से पालन कर सकें लेकिन पर्यवेक्षक स्वयं अन्यत्र निवास करते है जिसकी जानकारी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को भी है जिसके चलते समय पर केंद्र नहीं खुलता है ।
आंगनबाड़ी केंद्र के हितग्राही लाभान्वित भी नहीं हो पाते। विभागीय जानकारी ऑनलाइन होने के कारण फर्जी तरीके से अपलोड कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं।
जांच की आवश्यकता
पर्यवेक्षक आंगनवाड़ी केंद्रों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए नियमित रूप से उनका मूल्यांकन करते हैं। वे बच्चों की वृद्धि और विकास, माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य और पूरक पोषण के वितरण पर डेटा एकत्र करते हैं। जो नहीं हो रहा है। मिली जानकारी अनुसार सारे कार्य फर्जी तरीके से किया जा रहा है जो जांच का विषय है। यदि मामले की सूक्ष्मता से जांच किया जाए तो तरह तरह की गड़बडिय़ां उजागर होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।