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जर्मनी , 19 नवंबर | बुधवार को जर्मन संसद में संक्रमण सुरक्षा कानून में बदलाव पर दो घंटे तक गर्मागर्म बहस हुई. वहीं संसद के पास ही ब्रांडेनबुर्ग गेट पर हजारों लोग अपनी आवाज संसद तक पहुंचाने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. वे महामारी को रोकने के लिए लगाई गई पाबंदियों का विरोध कर रहे थे और संसद पर धावा बोलने के लिए कह रहे थे. प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिए पुलिस को पानी की बौछारों का इस्तेमाल करना पड़ा. ऐसा नजारा जर्मनी में कई दशकों से नहीं देखा गया है.
दुनिया की सभी सरकारों की तरह जर्मन सरकार भी मार्च से महामारी से जूझ रही है. उसने वायरस की रोकथान के लिए कई ठोस उपाय लागू किए हैं जिनके तहत लोगों से मास्क पहनने को कहा जा रहा है और सार्वजनिक स्थानों पर लोगों के जमा होने पर रोक लगा दी गई है. सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी पाबंदियां लगाई गई हैं. बाहर खाने, कैटरिंग उद्योग, होटलों और यहां तक कि पूजा स्थलों पर भी पाबंदियां हैं.
हर कोई इन उपायों को लेकर नाराज है और इनसे परेशान है. कुछ लोग तो इन उपायों को अपने मौलिक अधिकारों का हनन मान रहे हैं. बुधवार को प्रदर्शन कर रहे लोगों में कोविड-19 को झुठलाने वाले और धुर दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी के समर्थक भी शामिल थे. उन्होंने तो सरकार के प्रस्तावित कदमों की तुलना 1933 के इनैबलिंग एक्ट से कर दी जिससे हिटलर की तानाशाही का रास्ता तैयार हुआ था.
इस तरह की तुलना घोर अपमानजनक है. इनैबलिंग एक्ट ने चांसलर को इतनी शक्तियां दे दी थीं कि वह सरकार की परवाह किए बिना अपनी मर्जी से कानून बना सके. यह कानून जर्मनी के लोकतंत्र से तानाशाही की तरफ जाने का प्रतीक था. इस कानून का विरोध करने वाले सोशल डेमोक्रैट्स और वामपंथी राजनेताओं का दमन किया गया और कुछ की तो हत्या भी कर दी गई.
घिनौनी बयानबाजी
पेत्र बिस्ट्रोन जैसे एएफडी के कुछ सासंद भी संसद के बाहर होने वाले प्रदर्शनों में शामिल हुए. बिस्ट्रोन ने भी इनैबलिंग एक्ट का जिक्र किया और कहा कि 1933 से "तुलना ठीक" है. उन्होंने चेहरे पर मास्क लगाने के लिए जर्मन कानून की तुलना नाजियों के उन कानूनों से की जिनके तहत नाजियों ने कुछ निश्चित स्टोर्स में यहूदी लोगों पर खरीदारी करने पर रोक लगा दी थी. उन्होंने कहा कि इस तरह की तुलनाएं बिल्कुल मुनासिब हैं.
यह बयानबाजी घिनौनी है और उन लोगों का अपमान है जिन्होंने नाजी तानाशाही के दौरान कष्ट झेले हैं. यह उन सभी यहूदियों का अपमान है जिन्होंने दमन और हत्याएं झेलीं. यह उस सहमति का तिरस्कार है जिस पर हमारा लोकतंत्र खड़ा है और लोकतांत्रिक रूप से चुने गए उन सभी राजनेताओं का अपमान है जो महामारी की स्थिति से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
बिस्ट्रोन का रवैया दिखाता है कि दक्षिणपंथी पॉपुलिस्टों की लोकतंत्र में दिलचस्पी कम है, बल्कि वे तो बस धुर दक्षिणपंथियों, षडयंत्रकारी कहानियां रचने वालों और तकलीफें झेल रहे लोगों को मिलाकर स्थिति का राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं.
लोकतंत्र में विपक्ष जरूरी
संसदीय बहस लोकतंत्र का हिस्सा हैं और बुधवार को जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग की बहस इस साल की सबसे अहम बहसों में से एक थी, हालांकि एएफडी ने मुनासिब तर्क पेश करने की बजाय शोर ही ज्यादा किया. लेकिन सबसे मजबूत भाषण सरकार चला रहे गठबंधन की तरफ से नहीं आए. यह जिम्मेदारी कारोबार समर्थक पार्टी एफडीपी के नेता क्रिस्टियान लिंडनर और वामपंथी पार्टी के संसदीय नेता यान कोर्टे ने निभाई. उन्होंने कहा कि सांसदों को बहस में शामिल होने के लिए ज्यादा आजादी दी जानी चाहिए.
दोनों नेताओं ने विभिन्न ब्यौरे दिए कि कानून में कौन से बदलाव चर्चा के लिए निर्धारित छोटे से समय में हासिल कर लिए गए और अगर ज्यादा समय होता तो और क्या क्या हासिल हो सकता था. दोनों ही नेताओं ने राजनीति में विपक्ष की अहमियत पर भी जोर दिया. इस समय सत्ताधारी गठबंधन संकट में घिरा हो सकता है, लेकिन इस देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है.
बहस के बाद कानून को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया और फिर इसे हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया. लेकिन इन बदलावों के बाद भी जर्मनी का लोकतंत्र वैसा ही रहेगा: वहीं महामारी से थक चुके लोग होंगे, इस बात को लेकर बेचैनी बनी रहेगी कि वायरस के फैलाव को रोकने के लिए कौन से कदम उठाए जाएं. देश का स्वास्थ्य देखभाल सिस्टम वही रहेगा, जहां अब भी चिकित्साकर्मी काम के बोझ तले दबे होंगे.
मंगलवार को ही जर्मनी में कोरोना वायरस के 14,419 नए मामले सामने आए जबकि कम से कम 247 लोगों की मौत हुई. स्थिति गंभीर है, और इसीलिए उस पर इतनी राजनीति हो रही है.
सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी और संसद में धुर दक्षिणपंथी पार्टी के सांसद जो कुछ कह रहे हैं, वह निराशाजनक है. कोविड-19 महामारी से निपटने पर जारी बयानबाजी बद से बदतर होती जा रही है. हमारा लोकतंत्र दांव पर लगा है. लेकिन वह इस स्थिति से पार पा लेगा.(DW.COM)