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अमेरिकी चुनाव: भारतीय मूल के ‘समोसा कॉकस’ ने फिर जीत हासिल की
05-Nov-2020 7:28 PM
अमेरिकी चुनाव: भारतीय मूल के ‘समोसा कॉकस’ ने फिर जीत हासिल की

रो खन्ना


अमेरिकी चुनाव में डेमोक्रैटिक पार्टी की ओर से भारतीय मूल के चार नेताओं ने एक बार फिर से अपनी जीत दर्ज कर ली है. इन चार नेताओं के नाम हैं- डॉक्टर एमी बेरा, रो खन्ना, प्रमिला जयपाल और राजा कृष्णमूर्ति.

वहीं मुंबई में जन्मीं 52 साल की डॉक्टर हीरल तिपिर्नेनी और रिपब्लिकन उम्मीदवार डेबी सेल्को के बीच एरिज़ोना में कांटे की टक्कर चल रही है. अभी यहाँ गिनती जारी है. अगर वो चुनाव जीत जाती हैं तो वो प्रमिला जयपाल के बाद दूसरी भारतीय-अमेरिकी महिला होंगी जो हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव यानी अमरीकी संसद के निचले सदन के लिए चुनी जाएंगी. इससे पहले प्रमिला जयपाल 2016 में पहली भारतीय महिला बनी थीं जिन्हें हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव के लिए चुना गया था.

अमेरिका में 6 नंवबर, 2018 को कुछ सीटों के लिए मध्यावधि चुनाव हुए थे. उस वक़्त भी एरिज़ोना प्रांत में हीरल तिपिर्नेनी डिस्ट्रिक्ट आठ से डेमोक्रैटिक पार्टी की उम्मीदवार थीं और रिपब्लिकन पार्टी की मौजूदा सांसद डेबी सेल्को को कड़ी टक्कर दे रही थीं लेकिन वो चुनाव हार गई थीं.

इससे पहले भारतीय मूल के रिकॉर्ड पाँच नेताओं ने अमेरिकी कांग्रेस (जिसमें सीनेट और हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव दोनों शामिल है) में सदस्य के तौर पर जनवरी 2017 में शपथ ग्रहण किया था. उस वक़्त इन चार के अलावा कमला हैरिस सीनेट के सदस्य के तौर पर चुनी गईं थीं जबकि बाक़ी के चारों ने हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव के सदस्य के तौर पर शपथ ग्रहण किया था. इस बार भी ये चारों हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव के लिए ही चुने गए हैं.

राजा कृष्णमूर्ति ने इन पाँच सदस्यों के दल को अनौपचारिक रूप से ‘समोसा कॉकस’ का नाम दिया हुआ है.

अमेरिकी संसद में हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव को निचला सदन कहते हैं और सीनेट ऊपरी सदन होता है.

कमला हैरिस इस बार उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं. वो भारतीय-अफ्रीकी मूल की पहली ऐसी शख़्स हैं जो उप-राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनी हैं.

इस बार के चुनाव में भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं की अहम भूमिका मानी जा रही थी. चुनाव प्रचार के दौरान डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकन दोनों ही भारतीय मतदाताओं को अपनी ओर करने में लगे हुए थे. हालांकि परंपरागत रूप से भारतीय-अमेरिकी डेमोक्रैट्स को ही समर्थन देते आए हैं. 2016 में केवल 16 फ़ीसद भारतीय अमेरिकियों ने ही ट्रंप को वोट दिया था.

भारतीय मूल के क़रीब 45 लाख लोग अमेरिका में रहते हैं. दलीप सिंह सौंध साठ साल अमेरिका में सांसद निर्वाचित होने वाले पहले भारतीय-अमेरिकी थे. आइए अब जानते हैं इस बार फिर से जीते गए भारतीय-अमेरिकी मूल के इन चार हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव के सदस्यों के व्यक्तिगत-राजनीतिक जीवन और उनके चुनावी प्रदर्शन के बारे में.

डॉक्टर एमी बेरा – 55 साल के एमी बेरा ने कैलिफ़ोर्निया के सातवें कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट से रिकॉर्ड पाँचवी बार जीत दर्ज की है.

भारतीय सांसदों में वो सबसे सीनियर हैं. इस बार उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार बज़ पैटर्सन को हराया है. इस बार उन्हें कुल मतों का 61 फ़ीसद मत प्राप्त हुआ है.

2016 में उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार स्कॉट जोंस को हराया था.

जब उन्होंने तीसरी बार जीत दर्ज की थी तब उन्होंने दलीप सिंह सौंध के रिकॉर्ड की बराबरी की थी.

एमी बेरा पेशे से एक डॉक्टर हैं. 2012 में उन्होंने पहली बार चुनाव जीता था.

राजा कृष्णमूर्ति - 47 साल के राजा कृष्णमूर्ति ने इस बार के चुनाव में लिबरटेरियन पार्टी के प्रिस्टन नील्सन को इलिनोय में आसानी से हरा दिया है. उन्हें कुल मतों का क़रीब 71 फ़ीसद प्राप्त हुआ है.

2016 में उन्होंने रिपब्लिक पार्टी के उम्मीदवार पीटर डिकिनानी को हराया था.

पिछली बार जब वो चुनाव जीते थे तो उन्होंने गीता की शपथ लेकर अमेरिकी संसद की सदस्यता ग्रहण की थी. वो तुलसी गबार्ड के बाद गीता की शपथ लेने वाले दूसरे सांसद हैं. तुलसी गबार्ड अमेरिका में सांसद बनने वाली पहली हिंदू हैं.

1973 में दिल्ली में जन्मे राज कृष्णमूर्ति के माता-पिता तब न्यूयार्क में जाकर बस गए थे, जब राज महज़ तीन महीने के थे.

रो खन्ना – 44 साल के रो खन्ना ने कैलिफ़ोर्निया के सत्रहवें कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट से लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की है. उन्होंने एक दूसरे भारतीय-अमेरिकी 48 साल के रितेश टंडन को आसनी से मात दी है. उन्हें क़रीब 74 फ़ीसद मत प्राप्त हुए हैं.

उन्होंने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में आठ बार अमरीकी सांसद रह चुके माइक होंडा को हराया था. माइक होंडा ने 15 सालों से ज्यादा वक़्त तक कैलिफ़ोर्निया का प्रतिनिधित्व किया है.

2018 में हुए मध्यावधि चुनाव में उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार रॉन कोहेन को हराया था.

रो खन्ना के माता-पिता पंजाब से अमेरिका के फ़िलाडेलफ़िया पहुँचे. रो खन्ना स्टैंडफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं. वे ओबामा प्रशासन में अधिकारी रहे हैं.

प्रमिला जयपाल - 55 साल की प्रमिला जयपाल ने रिपब्लिकन उम्मीदवार क्रैग केलर को वाशिंगटन में बड़े अंतर से हराया है. उन्हें कुल मत का 84 फ़ीसद प्राप्त हुआ है. उन्होंने 2016 के चुनाव में रिपब्किलन पार्टी की उम्मीदवार ब्रैडी वाल्किनशॉ को हराया था.

वो पहली भारतीय-अमरीकी महिला हैं जिन्होंने अमेरिकी संसद में जगह बनाई थी. पिछली बार उनकी 78 साल की मां ख़ास तौर पर शपथ ग्रहण देखने के लिए भारत से अमेरिका पहुंची थीं.

प्रमिला का जन्म चेन्नई में हुआ है और वे 16 साल की उम्र में अपनी पढ़ाई करने के लिए अमेरिका पंहुची थीं. साल 2000 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता हासिल की. उन्होंने एक अमेरिकी स्टीव विलियमसन से शादी की है.

इस बार इनके अलावा कुछ और भी भारतीय हैं जिनके जीतने की उम्मीद थी और ‘समोसा कॉकस’ की संख्या में इज़ाफ़ा होने की संभावना थी लेकिन वो चुनाव हार गए हैं.

इनमें एक प्रमुख नाम 42 साल के श्री प्रेस्टन कुलकर्णी का है. उनका पूरा नाम श्रीनिवास राव प्रेस्टन कुलकर्णी हैं. वो पूर्व राजनयिक रहे हैं लेकिन वो टेक्सस से दूसरी बार चुनाव हार गए हैं. इस बार उन्हें रिपब्लिकन पार्टी के ट्रॉय नेहल्स ने हराया है जबकि 2018 के मध्यावधि चुनाव में वो पीट ओल्सन के हाथों बहुत क़रीबी मुक़ाबले में हार गए थे.

इस बार उन्हें 44 फ़ीसद वोट मिले हैं जबकि उनके प्रतिद्वंदी ट्रॉय नेहल्स को 52 फ़ीसद वोट हासिल हुए हैं. टेक्सस को रिपब्लिकन का गढ़ माना जाता है.

इसके अलावा भारतीय मूल की 48 साल की सारा गिडन भी अमेरिकी प्रांत मेन में रिपब्लिकन उम्मीदवार सुसान कोलींस के हाथों चुनाव हार गई हैं.

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