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सुशीला कार्की नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री बनीं, भारत से है पुराना नाता
13-Sep-2025 9:49 PM
सुशीला कार्की नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री बनीं, भारत से है पुराना नाता

नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं सुशीला कार्की अब नेपाल की पहली अंतरिम महिला प्रधानमंत्री बन गई हैं। सुशीला कार्की को राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।

कई दिनों तक 'जेन ज़ी' प्रदर्शनकारियों, नेताओं, राष्ट्रपति पौडेल और अन्य कानूनी विशेषज्ञों के साथ हुई चर्चाओं के बाद आखऱिकार शुक्रवार देर शाम अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए सुशीला कार्की के नाम पर सहमति बनी थी।

सुशीला कार्की केपी शर्मा ओली की जगह लेंगी। जिन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवाओं के भारी विरोध के बीच मंगलवार को इस्तीफा दे दिया था।

पुलिस के मुताबिक, प्रदर्शन और उससे जुड़ी अलग-अलग घटनाओं में अब तक 51 लोगों की जान जा चुकी है।

सुशीला कार्की को ईमानदार छवि वाले नेता के रूप में जाना जाता है। उन्हें अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए युवा प्रदर्शनकारियों के एक वर्ग का समर्थन प्राप्त था।

‘जेन जी’ आंदोलन में युवाओं के बीच मशहूर लोकप्रिय रैपर और काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने भी सुशीला कार्की के नाम का समर्थन किया था। उन्होंने अपने एक एक्स पोस्ट में लिखा, ‘अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए आप लोगों ने (युवाओं ने) जो नाम दिया है, पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का, उसे मैं पूरा समर्थन देता हूँ।’

सुशीला कार्की ने इस बारे में भारतीय टीवी चैनल सीएनएन-न्यूज़ 18 से बात करते हुए कहा था, ‘उन्होंने (युवाओं ने) मुझसे अनुरोध किया और मैंने स्वीकार किया।’

कार्की ने कहा कि युवाओं का विश्वास उन पर है और वे चाहते हैं कि चुनाव कराए जाएँ और देश को अराजकता से निकाला जाए।

सीएनएन-न्यूज़ 18 को दिए एक इंटरव्यू में सुशीला कार्की ने कई बातें कही थीं। इंटरव्यू की शुरुआत में उनसे नेपाल की मौजूदा स्थिति पर नज़रिया पूछा गया।

इस पर उन्होंने कहा, ‘जेन ज़ी समूह ने नेपाल में आंदोलन शुरू किया। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें मुझ पर विश्वास है और मैं एक छोटे समय के लिए सरकार चला सकती हूँ, ताकि चुनाव कराए जा सकें। उन्होंने मुझसे अनुरोध किया और मैंने स्वीकार किया।’

कार्की ने कहा, ‘मेरा पहला ध्यान उन लडक़ों और लड़कियों पर होगा, जो आंदोलन में मारे गए। हमें उनके लिए और उनके परिवारों के लिए कुछ करना होगा, जो गहरे दुख में हैं।’

उन्होंने स्पष्ट किया कि आंदोलन की पहली मांग प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा थी, जो पूरी हो गई है। अब अगली मांग देश से भ्रष्टाचार हटाने की है। उनके शब्दों में, ‘बाक़ी माँगें तभी पूरी हो सकती हैं, जब सरकार बनेगी।’

सुशीला कार्की कौन हैं ?

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को नेपाल के बिराटनगर में हुआ था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, उन्होंने 1972 में बिराटनगर से स्नातक किया।

1975 में उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की और 1978 में त्रिभुवन विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई पूरी की।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि 1979 में उन्होंने बिराटनगर में वकालत की शुरुआत की।

इसी दौरान 1985 में धरान के महेंद्र मल्टीपल कैंपस में वे सहायक अध्यापिका के रूप में भी कार्यरत रहीं।

उनकी न्यायिक यात्रा का अहम पड़ाव 2009 में आया, जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अस्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

2010 में वे स्थायी न्यायाधीश बनीं। 2016 में कुछ समय के लिए वे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रहीं और 11 जुलाई 2016 से 6 जून 2017 तक नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद संभाला।

करना पड़ा था महाभियोग का सामना

सुशीला कार्की ने नेपाली कांग्रेस के नेता दुर्गा सुबेदी से शादी की। वह कहती हैं कि उनके पति के सहयोग और ईमानदारी ने वकील से मुख्य न्यायाधीश तक के उनके सफऱ में अहम भूमिका निभाई।

बिराटनगर और धरान में तीन दशकों से ज़्यादा समय तक वकालत करने के बाद उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में प्रवेश किया।

सुशीला कार्की तब सुर्खियों में आईं जब उन्होंने कांग्रेस नेता जेपी गुप्ता को संचार मंत्री के पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराया। कार्की ने काफ़ी समय पहले बीबीसी नेपाली को दिए साक्षात्कार में यह भी कहा था कि वह अक्सर अपनी बेंच में भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई करती हैं।

हालांकि, मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने लगभग 11 महीने के कार्यकाल के दौरान उन्हें महाभियोग का सामना करना पड़ा और उन्हें निलंबित कर दिया गया।

अप्रैल 2017 में उस समय की सरकार ने संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव रखा।

आरोप लगाया गया कि उन्होंने पक्षपात किया और सरकार के काम में दखल दिया। प्रस्ताव आने के बाद जाँच पूरी होने तक उन्हें मुख्य न्यायाधीश के पद से निलंबित कर दिया गया।

इस दौरान जनता ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के समर्थन में आवाज़ उठाई और सुप्रीम कोर्ट ने संसद को आगे की कार्रवाई से रोक दिया।

बढ़ते दबाव के बीच कुछ ही हफ़्तों में संसद को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। इस घटना से सुशीला कार्की की पहचान एक ऐसी न्यायाधीश के रूप में बनी, जो सत्ता के दबाव में नहीं झुकतीं।

भारत से रिश्तों पर सुशीला कार्की

इंटरव्यू में जब उनसे भारत से जुड़ाव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘हाँ, मैंने बीएचयू में पढ़ाई की है। वहाँ की बहुत सी यादें हैं। मैं अपने शिक्षकों, दोस्तों को आज भी याद करती हूँ। गंगा नदी, उसके किनारे हॉस्टल और गर्मियों की रातों में छत पर बैठकर बहती गंगा को निहारना मुझे आज भी याद है।’

उन्होंने यह भी कहा कि वे बिराटनगर की रहने वाली हैं, जो भारत की सीमा से काफ़ी नज़दीक है। ‘मेरे घर से सीमा केवल लगभग 25 मील दूर है। मैं नियमित रूप से बॉर्डर मार्केट जाती थी। मैं हिंदी बोल सकती हूँ, उतनी अच्छी नहीं लेकिन बोल सकती हूँ।’

भारत से उम्मीदों पर उन्होंने कहा, ‘भारत और नेपाल के रिश्ते बहुत पुराने हैं। सरकारें अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन जनता का रिश्ता बहुत गहरा है। मेरे बहुत से रिश्तेदार और परिचित भारत में हैं। अगर उन्हें कुछ होता है, तो हमें भी आँसू आते हैं।

हमारे बीच गहरी आत्मीयता और प्रेम है। भारत ने हमेशा नेपाल की मदद की है। हम बेहद कऱीबी हैं। हाँ, जैसे रसोई में बर्तन एक साथ हों तो कभी-कभी आवाज़ होती है, वैसे ही छोटे-मोटे मतभेद हो सकते हैं, लेकिन रिश्ता मज़बूत है।’

बता दें कि सुशीला कार्की के साथ ही इस आंदोलन में काठमांडू के मेयर बालेन शाह का नाम भी सुर्खियों में रहा है।

बालेन शाह मई 2022 में जब पहली बार नेपाल की राजधानी काठमांडू के मेयर बने, तो यह सबके लिए चौंकाने वाला था।

बालेन शाह ने नेपाली कांग्रेस की सृजना सिंह को हराया था। शाह को 61,767 वोट मिले थे और सृजना सिंह को 38,341 वोट।

नेपाल में जब जेन ज़ी का आंदोलन शुरू हुआ तो सोशल मीडिया पर लोग बालेन शाह से अपील कर रहे थे कि वह मेयर के पद से इस्तीफ़ा देकर नेतृत्व करें।

महज 35 साल के बालेन शाह नेपाल में जेन ज़ी के आंदोलन का समर्थन कर रहे थे लेकिन वह सडक़ पर नहीं उतरे थे। (bbc.com/hindi)


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