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श्रीलंका के साथ चीन कर रहा बंदरों का व्यापार
16-Apr-2023 1:14 PM
श्रीलंका के साथ चीन कर रहा बंदरों का व्यापार

सुसिता फर्नांडो

कोलंबो, 16 अप्रैल | कर्ज से जूझ रहे श्रीलंका के कृषि मंत्री ने पिछले हफ्ते देश के सबसे बड़े द्विपक्षीय ऋणदाता चीन को 1 लाख बंदरों के निर्यात की घोषणा की।

मंत्री महिंदा अमरवीरा के अनुसार इसका उद्देश्य श्रीलंका को स्थानीय टोके मकाक या आम बंदरों से छुटकारा दिलाना है, जो फसलों को नष्ट कर किसानों के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं।

हालांकि, चीन को बंदरों के निर्यात का पर्यावरणविदों और पशु अधिकार कार्यकर्तार्ओं ने विरोध किया है। उनका कहना है कि ऐसा करने से पहले व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है। देश में 40 वर्षों में बंदरों की कोई जनगणना नहीं हुई है।

अग्रणी पर्यावरण अधिकार कार्यकर्ता जगत गुणवर्धन ने उन जानवरों के निर्यात की योजना पर स्पष्टता और पारदर्शिता की मांग की है, जो श्रीलंका में संरक्षित प्रजाति नहीं हैं, लेकिन लुप्तप्राय जानवरों की अंतरराष्ट्रीय लाल सूची में हैं। उन्होंने कहा, हम जानना चाहते हैं कि चीन इतने सारे बंदर क्यों चाहता है। उसे बताना चाहिए कि वह इनका इनका इस्तेमाल मांस, चिकित्सा अनुसंधान या किसी अन्य किस उद्देश्य के लिए करेगा।

पर्यावरणविद् और पशु अधिकार कार्यकर्ता चीन के साथ बंदर व्यापार करने के खिलाफ हैं। वे पाकिस्तान के साथ चीन के गधे के व्यापार पर भी संदेह करते हैं। पिछले अक्टूबर में चीन ने यह घोषणा की थी कि वह श्रीलंका जैसे नकदी की तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान से गधे और कुत्ते आयात करने का इच्छुक है। गधे का इस्तेमाल वहां चीनी पारंपरिक दवा ईजाओ में किया जाता है। इसके अलावा गधे की खाल से जिलेटिन का निर्माण भी किया जाता है। माना जाता है कि गधे में औषधीय गुण होते हैं।

कार्यकर्ताओं का विरोध उचित प्रतीत होता है क्योंकि चीन के साथ व्यापार किसी अन्य देश के विपरीत संदेह के साथ की जाती है। किसी भी पक्ष द्वारा चीन को संभावित बंदर निर्यात का कोई वित्तीय विवरण तत्काल प्रकट नहीं किया गया है।

चीन ने श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, बंदरगाह, राजमार्ग आदि परियोजनाओं में भी निवेश किया है। लेकिन इनका कोई लाभ नहीं मिल रहा। ये परियोजनाएं सफेद हाथी बनी हैं। अब प्रश्न पूछा जा रहा है कि बीजिंग का सबसे बड़ा ऋणी बनकर श्रीलंका को क्या लाभ हुआ। इसका कोई समुचित उत्तर नहीं आ रहा है।

इस सप्ताह के दो अन्य एशियाई दिग्गजों, जापान और भारत ने फ्रांस के साथ मिलकर श्रीलंका के ऋण पुनर्गठन के समन्वय के लिए द्विपक्षीय लेनदारों के बीच बातचीत के लिए एक साझा मंच की घोषणा की। हालांकि, चीन ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह आईएमएफ बेलआउट कार्यक्रम के अनुरूप 2022 और 2023 के लिए द्वीप राष्ट्र को ऋण राहत प्रदान करेगा।

जापानी वित्त मंत्री शुनिची सुजुकी ने ऋण राहत के लिए गठित होने वाले मंच में चीन को भी आमंत्रित किया है। उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छा होगा यदि चीन इसमें शामिल होगा।

जापानी वित्त मंत्री के अनुरोध के जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने श्रीलंका की ऋण सेवा के विस्तार को दोहराया।

बीजिंग के प्रवक्ता ने कहा, श्रीलंका को उपर्युक्त अवधि के दौरान बैंक (चीन के एक्जिम बैंक) के ऋणों का मूलधन और ब्याज नहीं चुकाना होगा, ताकि श्रीलंका को अल्पकालिक ऋण चुकौती दबाव को दूर करने में मदद मिल सके।

प्रस्तावित मंच और अन्य ऋण पुनर्गठन उपायों की श्रीलंका को 2.9 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज को सुरक्षित करने और 2029 तक सालाना लगभग 6 बिलियन उॉलर का पुनर्भुगतान शुरू करने की आवश्यकता है।

जिन प्रमुख देशों ने मंच की शुरुआत की, उन्हें उम्मीद है कि यह मध्यम आय वाले देशों के कर्ज के बोझ को हल करने के लिए एक मॉडल होगा।

लेकिन यह अनिश्चित है कि चीन इस ऐतिहासिक पहल में शामिल होगा या नहीं। जापान के शीर्ष मुद्रा राजनयिक मासाटो कांडा ने कहा कि समूह ने चीन सहित श्रीलंका के सभी द्विपक्षीय लेनदारों को निमंत्रण भेजा है और जल्द से जल्द पहले दौर की वार्ता आयोजित करने की उम्मीद है।

अपने दक्षिणी पड़ोसी का समर्थन करने के लिए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक भूमिका निभाते हुए, भारत पूरे संकट के दौरान श्रीलंका के साथ रहा। भारत और जापान की अनदेखी करते हुए श्रीलंका ने कई मौकों पर चीन कार्ड खेला है, इसके बावजूद भारत ने सबसे पहले श्रीलंका को ऋण राहत सहायता के लिए आईएमएफ को सूचित किया था।

इसी भावना के साथ काम करते हुए पिछले हफ्ते भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आईएमएफ-विश्व बैंक स्प्रिंग मीटिंग्स के मौके पर एक उच्च-स्तरीय बैठक में भाग लेते हुए आर्थिक संकट से निपटने में श्रीलंका की मदद करने की भारत की प्रतिबद्धता की घोषणा की। सीतारमण ने जोर देकर कहा कि ऋण पुनर्गठन चर्चाओं में सभी लेनदारों के साथ व्यवहार में पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करने के लिए लेनदारों के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है। (आईएएनएस)


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