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तुर्की: बचावकर्मियों के जज़्बे की मिसाल, कैसे मलबे में दबी दो बहनों को ज़िंदा निकाला गया?
15-Feb-2023 10:27 AM
तुर्की: बचावकर्मियों के जज़्बे की मिसाल, कैसे मलबे में दबी दो बहनों को ज़िंदा निकाला गया?

-नफ़ीसे कोहनावर्द

मर्वी! इरम! मर्वी! इरम. तुर्की में भूकंप के बाद लोगों को मलबों से निकालने में लगे बचावकर्मी मुस्तफ़ा ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे हैं.

यहां खड़े हम सभी को चुप रहने के लिए कहा गया है. राहतकर्मियों की टीम यहां मलबे में दो बहनों की तलाश में लगी हैं. मलबे से निकाल लिए गए कुछ लोगों का कहना है के ये बहनें अभी भी मलबे के ढेर में दबी हैं.

बचावकर्मी संवेदनशील यंत्रों के ज़रिये दोनों बहनों की आवाज़ सुनने के लिए पूरी तरह मुस्तैद हैं. हर कोई किसी उम्मीद से जहां के तहां ठिठका हुआ है.

तभी एक आवाज़ गूंजती हैं. मुस्तफ़ा कहते हैं,'' इरम, मेरी बच्ची. मैं तुम्हारे बिल्कुल नज़दीक हूं. क्या तुम मेरी आवाज़ सुन रही हो.

इस ऑपरेशन को यहां देख रहे लोगों को कोई आवाज़ सुनाई नहीं पड़ रही है. लेकिन अब ये साफ़ हो गया है वो जवाब दे रही है. लड़कियों का एक छोटा समूह चुपचाप इंतज़ार कर रहा है.

अचानक मुस्तफ़ा बोल पड़ते हैं '' आप कमाल हो! अब बिल्कुल शांत रहो और मेरे सवालों का जवाब दो. अरे वाह, वो रही मर्वी. मर्वी डियर. सिर्फ़ मेरी बातों का जवाब दो.''

24 साल की मर्वी और उनकी 19 साल की बहन इरम दक्षिणी तुर्की के अंतकाया में एक अपार्टमेंट के मलबे में दबे हुए थे. भूकंप ने इस अपार्टमेंट को बिल्कुल जमींदोज़ कर दिया है. भूकंप को आए सिर्फ़ दो दिन बीते हैं. लेकिन उन्हें ऐसा लग रहा है कि हफ्तों का वक्त बीत चुका है. ''

मुस्तफ़ा उन्हें हिम्मत देते हैं,'' नहीं बेटे,आज बुधवार है. तुम चौदह दिनों से यहां नहीं फंसे हो. मुझे सिर्फ़ पांच मिनट दो. तुम्हें मैं बाहर निकाल लूंगा.''

मुस्तफ़ा को पता है कि इस काम में घंटों लगेंगे. लेकिन हमसे उन्होंने कहा,''अगर मैं ऐसा न कहता तो वो उम्मीद खो देतीं. निराशा में उनकी मौत हो सकती है.''

मर्वी और इरम अब राहत में हैं. अब तो उन्होंने हंसी-मज़ाक भी शुरू कर दिया है. मैं मुस्तफ़ा के चेहरे पर मुस्कुराहट देख सकती थी.

बचावकर्मियों के हिसाब से लड़कियां उनसे दो मीटर की दूरी पर हैं. लेकिन राहत टीम के कमांडर कहते हैं कंक्रीट में सुरंग बनाने में बेहद सतर्कता की ज़रूरत होती है. ये काम बड़ा महीन है. एक गलत कदम भयावह साबित हो सकता है.

लड़कियों को निकालने के लिए चल रहे ऑपरेशन के दौरान एक बुलडोज़र लाया जाता है.यह कंक्रीट को थोड़ा ऊपर उठा कर कर थामे रखता है ताकि बिल्डिंग पूरी तरह ध्वस्त होकर ज़मीन पर न आ जाए. और फिर इस बीच खुदाई शुरू हो जाती है.

मुस्तफ़ा कहते हैं,''लड़कियों मैं अब तुम लोगों को तुरंत कंबल दूंगा.'' लेकिन दोनों बहनें बोल पड़ती हैं,''अरे नहीं, आप चिंता न करें. हमें ठंड नहीं लग रही है और न ही हम थके हुए हैं.''

मुस्तफ़ा कहते हैं कि मर्वी राहतकर्मियों के हालात को लेकर चिंतित हैं. रात के साढ़े आठ बज रहे हैं और मौसम बेहद ठंडा है. लोगों का कहना है कि ये सबसे ज़्यादा ठंडे इलाकों में से एक है.

बचावकर्मी पूरी ताकत से खुदाई शुरू कर देते हैं. वे कंक्रीट के बड़े-बड़े टुकड़े को अपने हाथों से उठा-उठा कर दूर फेंक रहे हैं.

लेकिन कुछ ही घंटों में हमारे पैरों के नीचे की ज़मीन हिलती मालूम होती है. ये एक बड़ा आफ्टरशॉक है. बचाव अभियान को रोकना ही पड़ेगा. हम तुरंत इस जगह को छोड़ देते हैं. ''

हसन कहते हैं,'' ये बड़ा ही क्रूर सच है''.लेकिन अपनी टीम की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता है.''

लगभग आधे घंटे के बाद मुस्तफ़ा और तीन अन्य बचावकर्मी वापस लौटते हैं और खुदाई फिर शुरू हो जाती है.

मुस्तफ़ा चिल्ला कर कहते हैं,'' डरो मत. भरोसा रखो हम तुम लोगों को छोड़ कर नहीं जाएंगे. मैं तुम लोगों को बाहर निकालूंगा और फिर हम साथ लंच करेंगे.''

इस तरह चला ऑपरेशन
ज़मीन हिलने की वजह से बचावकर्मियों के यहां से चले जाने के बाद लड़कियों ने सोचा था कि उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया है.

रात के बारह बज रहे हैं. खुदाई फिर शुरू हो गई है. पिछले कुछ दिनों के दौरान बचावकर्मी शायद ही सोए होंगे. खुदाई चल रही है.

हम लोग अगली बिल्डिंग के सामने जलाई गई आग तापने के लिए इसके चारों ओर जमा हो गए हैं.

इस बीच थोड़ी-थोड़ी देर में एक आवाज़ गूंजती है- सेसिज़लिक. मतलब- साइलेंस. बत्ती बुझ जाती है. पूरा अंधेरा छा जाता है.

बचावकर्मियों ने कंक्रीट में एक छोटा छेद बना लिया है. वो ये देखना चाह रहे हैं मुस्तफ़ा के टॉर्च की रोशनी को लड़कियां देख पा रही हैं या नहीं.

हां… बिल्कुल ठीक! मैं एक छोटा कैमरा सरका रहा हूं. जैसे ही ये तुम्हें दिखाई पड़े तुम लोग बता देना. फिर मैं बताऊंगा कि तुम लोगों को क्या करना है. ''

अचानक सब लोगों में उत्साह भर जाता है. हसन अपनी टीम में शामिल हो जाते हैं ताकि नाइट विज़न कैमरे से जुड़ी स्क्रीन में इन लड़कियों को देख सकें.

'' तुम बड़ी सुंदर हो.'' ज़्यादा हिलो-डुलो मत. इरम कैमरे को थोड़ा खींच लो ताक हम मर्वी को ठीक से देख सकें.''

स्क्रीन पर हम देख रहे हैं कि इरम मुस्कुरा रही है. अच्छी बात ये है कि कंक्रीट से घिरे होने के बाद भी उन लोगों के लिए पर्याप्त जगह बची है.

अब हर किसी के चेहरे पर राहत के निशान दिख रहे हैं. लड़कियां अच्छी स्थिति में दिख रही हैं. कम से कम इरम के पास तो इतनी जगह है कि अगर छेद को बड़ा किया जाए तो वो खुद वहां से सरक कर निकल सकती हैं.

लेकिन अचानक ही ये टीम चिंतित दिखने लगी. मर्वी ने उनसे कहा था कि उसे ठंड लगने लगी है. उसके पैर पर कोई वज़नी चीज पड़ी हुई है.

बचाव दल में शामिल मेडिकलकर्मी चिंतित हो गए. उन लोगों ने सोचा,क्या मर्वी के पैरों में गैंगरीन हो गया है? या ये हाइपोथर्मिया के शुरुआती लक्षण हैं?

मलबे से कैसे निकाली गईं दोनों बहनें
अब सुबह के पांच बज चुके हैं. सुरंग अब इतनी चौड़ी हो गई है कि टीम के सबसे छरहरा शख्स इससे सरक कर वहां तक पहुंच सकता है. अगले कुछ लम्हों में बचाव दल का ये सदस्य इरम तक पहुंचने में सफल हो गया. फिर थोड़ी ही देर में उसका हाथ इरम को छूने लगा.

शरीर ने कहा, '' मेरी मां का शव मेरे सामने पड़ा है. उससे बदबू आ रही है. हम ठीक से सांस नहीं ले पा रहे हैं. ये लड़कियां अपनी मां की लाश के पास कई दिनों से पड़ी हुई थीं.

ये झकझोर देने वाला वाकया था. क्या ऐसा भी वक्त आ सकता है जब आप अपनी मां से दूर होना चाहेंगे.

हसन ने वहां शांत, तनाव से घिरी और चुपचाप खड़ी उन लड़कियों की सहेलियों से कहा कि वे उनकी तस्वीरें शेयर करें. ताकि बचावकर्मी उनकी काया देख कर यह अंदाज़ा लगा सकें कि उन्हें निकालने के लिए सुरंग कितनी चौड़ी की जाए.

तस्वीर दिखाई गई. ये किसी शादी समारोह की तस्वीर थी. दोनों लड़कियां पार्टी ड्रेस पहन कर मुस्करा रही थीं.

हसन बोले, '' बिल्कुल सही. अब हम उन्हें बाहर निकाल सकते हैं''. मेडिकल टीम थर्मल कंबल और स्ट्रेचर के साथ तैयार थी. हर कोई रोमांचित दिख रहा था.

सुबह के साढ़े छह बजे गए थे. बचावकर्मी अपने अभियान के आख़िरी चरण में थे.पहले इरम को निकाला गया. वो हंस रही थीं लेकिन लेकिन वक्त उन्हें रोना भी आ रहा था.

'' अल्लाह आपका भला करे. प्लीज़ मर्वी को भी निकाल लाइए, प्लीज. इरम बचावकर्मियों से मिन्नत करने में लगी थीं. हसन कहते हैं,''मर्वी को भी निकाल लाएंगे. चिंता मत करो. मैं वादा करता हूं.''.

लेकिन मर्वी को निकालने में बचावकर्मियों को और आधा घंटा लग गया.

कंक्रीट से दबे उनके पांव इस तरह खींच कर निकाला, जिससे उन्हें कोई चोट न पहुंचे.

आखिरी कॉल
मर्वी को बाहर निकालते हुए वहां खुशी की लहर दौड़ पड़ी. लोग तालियां बजा-बजा कर खुशियां मना रहे थे. मैंने सुना मर्वी दर्द से कराह रही थी लेकिन ये भी पूछे जा रही थी, क्या मैं ज़िंदा हूं.?

मुस्तफ़ा ने मुस्कुराते हुए कहा, हां डियर. बिल्कुल. बिल्डिंग के चारों ओर रात भरे खड़े उन लड़कियों के दोस्त खुशी से चिल्ला रहे थे.'' उनकी आंखों में आंसू थे.

मर्वी! इरम! हम सब यहां हैं. डरो मत. बाहर निकाले जाते ही दोनों बहनों को तुरंत एंबुलेंस में डाल कर फ़ील्ड अस्पताल ले जाया गया.

लेकिन खुशियों के इन लम्हों के बाद चुप्पी छा जाती है. फिर एक आवाज़ गूंजती है. एक बचावकर्मी सबसे चुप रहने को कहता है. ये आखिरी कॉल है.

वो कहता है, ''अगर किसी को मेरी आवाज़ सुनाई पड़ रही है तो जवाब दे. अगर आप जवाब नहीं दे सकते तो सतह को छूने की कोशिश करें.''

फिर हसन ने ये बात दोहराई. उन्हें गिरी हुई बिल्डिंग के अलग-अलग कोणों से ज़ोर-ज़ोर से ये बात दोहराई.

इसके बाद जब कोई और आवाज़ नहीं आई तो कंक्रीट से लाल रंग के स्प्रे से वहां चिन्ह बना दिया गया. वहां एक कोड डाल दिया गया ताकि कोई दूसरी बचाव टीम फिर इस बिल्डिंग में तलाशी अभियान न चलाए.

हसन कहते हैं, ''लोगों को बचाना एक खूबसूरत अहसास है. हमारी दुआ है किसी की मौत न हो. ये कहते हुए उनके चेहरे पर उदासी साफ़ दिखती है. ''

मैंने पूछा,'' क्या आप मर्वी और इरम के साथ लंच करेंगे. वो मुस्कुराते हैं. उम्मीद है एक दिन हम ऐसा कर पाएंगे. लेकिन सबसे अहम चीज तो ये है कि वे ज़िंदा हैं. और अच्छे लोगों की निगरानी में हैं. (bbc.com/hindi)


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