अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान, 17 जनवरी । पाकिस्तान से संचालित होने वाले प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के मौजूदा नेता अब्दुल रहमान मक्की का नाम संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आतंकवादी की सूची में शामिल किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आईएसआईएस (दाएश) अल-क़ायदा प्रतिबंध कमेटी ने जिस सूची में मक्की का नाम शामिल किया है उसमें किसी व्यक्ति या संस्था के नाम तब जोड़ा जाता है जब उसकी आतंक से जुड़ी गतिविधियों के पुख़्ता सबूत उपलब्ध हों. इस सूची में शामिल होने वाले की संपत्ति फ़्रीज़ कर दी जाती है, उन पर ट्रैवेल बैन लगाया जाता है और किसी भी तरह से उन्हें हथियार मुहैया कराने पर रोक लगा दी जाती है.
ख़ास बात ये है कि बीते साल जून में अमेरिका और भारत के इस प्रस्ताव पर चीन ने 'टेक्निकल' रोक लगाई थी, लेकिन इस बार चीन को भी ये रोक हटानी पड़ी.
कमेटी ने इस फ़ैसले के साथ जारी बयान में कहा, "अब्दुल रहमान मक्की सहित लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा के चरमपंथी भारत में, ख़ासकर जम्मू और कश्मीर में फ़ंडिग करते हैं और युवाओं को बरगला कर चरमपंथी बनाते हैं और हमलों की योजना में उन्हें शामिल करते हैं."
16 जनवरी को मक्की का नाम इस सूची में शामिल करते हुए संयुक्त राष्ट्र की कमेटी ने सात आतंकवादी हमले का हवाला दिया जिसमें साल 2000 में लाल क़िले पर हुआ हमला, 2008 में हुआ रामपुर हमला, 2008 में मुंबई मे हुआ 26/11 हमला और साल 2018 में गुरेज़ में हुए हमले को शामिल किया गया.
कौन हैं अब्दुल रहमान मक्की
68 साल के हाफ़िज़ अब्दुल रहमान मक्की आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के मुखिया और मुंबई 26/11 हमलों के मास्टमाइंड हाफ़िज़ सईद के रिश्तेदार हैं. हाफ़िज़ सईद इस वक़्त जेल में हैं. पाकिस्तान की आतंक-विरोधी अदालत ने उन्हें 30 साल से अधिक की सज़ा सुनाई है.
माना जाता है कि हाफ़िज़ सईद की ग़ैर मौजूदगी में अब्दुल रहमान मक्की ही लश्कर-ए-तैयबा का कामकाज देख रहे हैं. वह इस आतंकवादी संगठन में उप-प्रमुख हैं.
मक्की को भारत और अमेरिका पहले ही आतंकवादी घोषित कर चुके हैं. अमेरिका के ट्रेज़री विभाग ने उनकी जानकारी देने वाले को 20 लाख डॉलर की इनामी राशि देने का एलान किया था.
लश्कर ए तैयबा के लिए फ़ंड जुटाने की ज़िम्मेदारी मक्की पर है. मक्की भी अपने नाम के आगे 'हाफ़िज़' पदवी का इस्तेमाल करते हैं. इस्लाम में हाफ़िज़ उसे कहते हैं जिसे क़ुरान पूरी तरह ज़ुबानी याद हो.
साल 2020 में पाकिस्तान की एक आंतकवाद-विरोधी कोर्ट ने अब्दुल रहमान मक्की को ग़ैर-क़ानूनी फ़ंडिंग से जुड़े मामले में एक साल की सज़ा और उन पर 20 हज़ार पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना लगाया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि मक्की इस्लामाबाद में हर साल फ़रवरी में होने वाली 'कश्मीर सॉलिडैरिटी डे' में शामिल होते हैं और अपने भड़काऊ भाषणों को लेकर चर्चा में रहते हैं. पाकिस्तान हर साल पांच फ़रवरी को 'कश्मीर सॉलिडैरिटी डे' के रूप में मनाता है और रैली निकाली जाती है.
साल 2010 यानी मुंबई हमलों के दो साल बाद 'कश्मीर सॉलिडैरिटी डे' रैली में अब्दुल रहमान मक्की ने भाषण में कहा था कि कश्मीर अगर भारत को नहीं दिया तो 'भारत में ख़ून की नदियां बहा देंगे.'
उनके इस भाषण के बाद ही अमेरिका के ट्रेज़री विभाग ने नवंबर 2010 में मक्की को प्रतिबंधित आतंकवादी घोषित कर दिया था. अख़बार के मुताबिक़, अमेरिका का कहना था कि तब तक उन्होंने अपने संगठन लश्कर-ए-तैयबा के लिए लगभग दो लाख 48 हज़ार डॉलर की फ़ंडिंग ट्रेनिंग कैंप के ज़रिए जुटाई थी और लश्कर-ए-तैयबा के मदरसों के ज़रिए एक लाख 65 हज़ार डॉलर की फ़ंडिंग जुटाई.
चीन ने इस बार कैसे हामी भरी
बीते साल जून में जब अमेरिका और भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की '1267 अल-क़ायदा समिति' के नियमों के तहत अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया था तो ऐन वक्त पर चीन ने इस प्रस्ताव पर 'टेक्निकल' रोक लगा दी थी.
इस बार चीन ने इस प्रस्ताव पर हामी भर दी. लेकिन सवाल ये है कि आख़िर इस बार ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान से चलने वाले इस आतंकवादी संगठन के लिए चीन ने अपना वीटो पावर इस्तेमाल नहीं किया.
हिंदुस्तान टाइम्स ने न्यूयॉर्क में रहने वाले राजनयिकों के हवाले से एक रिपोर्ट लिखी थी. जब चीन ने मक्की से जुड़े प्रस्ताव पर रोक लगाई तो भारत ने साफ़ कर दिया था कि वो लश्कर के इस चरमपंथी और चीन ने जिस तरह पाकिस्तान के चरमपंथी संगठन को सह दी है, उसे बार -बार दुनिया के सामने उजागर करता रहेगा.
चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और इसलिए उसके पास किसी प्रस्ताव पर रोक लगाने का वीटो पावर है. जिसका इस्तेमाल वो समय-समय 'पाकिस्तान के पक्ष' में करता रहा है.
इससे पहले जैश-ए-मोहम्मद के मसूद अज़हर के पाकिस्तानी पंजाब स्थित बहावलपुर से चरमपंथी गतिविधि के पर्याप्त सबूत होने और भारत में कई हमलों के पीछे उनका हाथ होने के पुख़्ता सबूत के बावजूद चीन ने उन्हें वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर चार बार रोक लगाई और पांचवीं बार में ये प्रस्ताव पारित होने दिया.
ठीक यही रवैया चीन ने प्रतिबंधित संगठन जमात-उद-दावा और लश्कर-ए-तैयबा के लीडर हाफ़िज़ मोहम्मद सईद और उनके सहयोगी ज़की-उर-रहमान लखवी के लिए अपनाया था. चीन इन दोनों को ही वैश्विक आतंकवादी ठहराए जाने के प्रस्ताव के आड़े आता रहा और पांचवीं बार की कोशिश में संयुक्त राष्ट्र उन्हें आंतकवादी घोषित कर सका. (bbc.com/hindi)