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श्रीलंका: राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे कैसे थामेंगे लोगों के गुस्से की लहर?
05-Apr-2022 8:39 AM
श्रीलंका: राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे कैसे थामेंगे लोगों के गुस्से की लहर?

-रजनी वैद्यनाथन

श्रीलंका में बेतहाशा बढ़ती मंहगाई और खराब आर्थिक हालात के कारण हो रहे विरोध प्रदर्शनों के बाद केंद्रीय मंत्रिमडंल और केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने इस्तीफ़ा दे दिया है.

राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने सभी दलों को नई सरकार में शामिल होने का न्योता दिया है.

लेकिन देश में गहराते आर्थिक संकट से परेशान होकर सड़कों पर उतरे लोगों का कहना है कि राष्ट्रपति राजपक्षे के इस्तीफ़ा देने तक उनका अभियान नहीं रुकेगा.

श्रीलंका में सड़कों पर उतरे लोगों के गुस्से और विरोध प्रदर्शनों के बीच बैनर और नारों में सिर्फ़ एक ही शख़्स का नाम सुनाई पड़ता है.

लोग कहते हैं, ''जाओ गोटा जाओ, जाओ गोटा जाओ.''

गोटा से यहां मतलब राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे से है. देश में कई लोग उन्हें मौजूदा हालात के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं.

देश में कर्फ़्यू के बाद भी अपने पति और दो बेटियों के साथ विरोध प्रदर्शन में पहुंची नाधी वांदुरगला कहती हैं, ''उन्हें चले जाना चाहिए, उन्होंने हमसे सबकुछ छीन लिया.''

उनके हाथ में एक पोस्टर था जिसमें ये जानकारी दी गई थी कि कैसे उनका परिवार एक अच्छी ज़िंदगी जी रहा था जो अब हर दिन दिक्कतें झेल रहा है. हर दिन 17 घंटे तक बिजली कटौती होती है, खाना पकाने के लिए गैस नहीं है और पेट्रोल के लिए लंबी लाइनें लगी रहती हैं.

उन्होंने बताया, ''अस्पतालों में दवाई नहीं है, स्कूल में परीक्षाओं के लिए कागज नहीं लेकिन राजनेताओं को हर दिन बिजली मिल रही है. उन्हें कभी गैस या तेल के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ता.''

नाधी सत्ता में बैठे लोगों से बहुत ज़्यादा नाराज़ दिखीं.

वह कोई एक्टिविस्ट या ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे विरोध प्रदर्शन का अनुभव हो. वह शहर में काम करती हैं और राजनीति से दूर रहना ही पसंद करती हैं. लेकिन, मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ बने माहौल से सहमति रखते हुए वो इन विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा बनीं है.

राजपक्षे की नीतियों पर सवाल
श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम हो गया है जिसके कारण ये देश ईंधन भी नहीं खरीद पा रहा है. कोरोना महामारी के कारण देश का पर्यटन भी प्रभावित हुआ है. लेकिन, लोगों का ये भी मानना है कि गोटाभाया राजपक्षे इस संकट को ठीक से नहीं संभाल पाए.

विशेषज्ञों का कहना है कि 2019 में उनके चुने जाने के बाद से राजपक्षे की नीतियों मसलन करों में बड़ी कटौती और आयात पर प्रतिबंध जैसे फ़ैसलों ने इस संकट को और बढ़ा दिया है. विशेषज्ञों के मुताबिक उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद लेने में भी लापरवाही दिखाई.

वहीं, राष्ट्रपति राजपक्षे मौजूदा स्थितियों के लिए पिछली सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. लेकिन, नाधी की बेटी अंजाली का कहना है कि राजपक्षे को तुरंत इस्तीफ़ा देकर पूरी ज़िम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए.

लोगों में बढ़ते गुस्से के साथ डर भी दिखता है. ये माना जा रहा है कि राजपक्षे सरकार अपने ख़िलाफ़ उठती आवाजों को दबाने की कोशिश में जुट गई है.

रविवार को लगाया गया कर्फ़्यू लोगों को इकट्ठा होने से रोकने का एक तरीक़ा था. सोशल मीडिया ब्लैकआउट भी किया गया. वहीं, राष्ट्रपति के आदेश के तहत लोगों के बिना प्रशासन की अनुमति के सड़कों पर, पार्क, ट्रेन और समुद्र किनारे आने पर रोक लगा दी गई.

नाधी और अंजाली उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं जिन्होंने विरोध प्रदर्शन के लिए गिरफ़्तारी का ख़तरा उठाया.

अंजाली कहती हैं, ''मैं आज इसलिए आई हूं क्योंकि मेरे अधिकार छीने जा रहे हैं. हमारे पास अभी खोने के लिए कुछ नहीं है. उन्होंने कर्फ़्यू क्यों लगाया है? क्या ये हमारी सुरक्षा के लिए है? इसका कोई मतलब नहीं है.''

विरोध की आवाज़ दबाने का आरोप
रविवार को हुए विरोध प्रदर्शनों में शामिल विपक्ष के नता साजिथ प्रेमदासा ने कहा, ''मैं इन्हें तानाशाह, निरंकुश और कठोर कदम कहूंगा.''

प्रेमदासा और उनकी पार्टी के अन्य सदस्यों ने जब राजधानी कोलंबो के इंडिपेंडेंस स्क्वायर पर जाने की कोशिश की तो पुलिस बैरिकेड्स के पास उन्हें रोक दिया गया.

अपने बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के साथ सरकार चला रहे राष्ट्रपति राजपक्षे पर पहले भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करने के आरोप लग चुके हैं.

महिंदा राजपक्षे दो बार श्रीलंका के राष्ट्रपति रह चुके हैं. वहीं, गोटाभाया राजपक्षे के विदेश मंत्री रहते उन पर श्रीलंका के गृह युद्ध के अंतिम चरण में मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगाए गए थे.

दोनों की छवि ऐसे नेताओं की है जो अपने ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ों को सख्ती के साथ दबाते हैं.

साल 2019 में श्रीलंका में ईस्टर के दिन चर्च में हुए बम विस्फोट के महीनों बाद राजपक्षे ने चुनाव में जीत हासिल की थी. उन्होंने लोगों को एक मजबूत शासन देने का वादा किया था.

राजपक्षे को वोट नहीं देने वालीं रोशिंता का कहना है, ''लोगों को लगा कि वो उन्हें सुरक्षा देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वो हर चीज़ में नाकाम हुए हैं. मैं इस परिवार के कारण अपना देश बर्बाद होते नहीं देखना चाहती. वे सत्ता के इतने लालची हैं कि शायद अब भी कुर्सी पर बने रहेंगे.''

देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शन की आंच गुरुवार को राष्ट्रपति राजपक्षे के आवास तक पहुंच गई. राजधानी कोलंबो में उनके घर के बाहर हो रहा प्रदर्शन हिंसक हो उठा था.

पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोलों और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया. पुलिस ने दर्जनों प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों को गिरफ़्तार भी किया.

कोलंबो में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल ने ट्वीट करके श्रीलंका प्रशासन से ''लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने'' की मांग की. इसमें असहमति जताने और शांतिपूर्ण सभा करने का अधिकार भी शामिल है.

मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि हिरासत में लिए गए लोगों का उत्पीड़न किया गया है.

गुरुवार के विरोध प्रदर्शनों के बाद देश में आपातकाल लगा दिया गया जिसने सुरक्षा बलों को गिरफ़्तारी और हिरासत की व्यापक शक्तियां दे दीं. प्रशासन ने कहा कि वो सुनिश्चित करेगा क़ानून व्यवस्था बनी रहे.

श्रीलंका के पश्चिमी प्रांत के अधिकारियों के मुताबिक शनिवार रात से रविवार के बीच उन्होंने कर्फ़्यू के उल्लंघन के लिए 600 से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया है.

29 साल के विज्ञापनों की कॉपी लिखने वाले सथसारा कहते हैं, ''ज़िंदगी में पहली बार मैं विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ हूं. इस सबके साथ हम अपने सपने कैसे पूरे करेंगे.''

सथसारा कहते हैं, "रोजाना बिजली चली जाती है और बढ़ती महंगाई के कारण बैंक बैलेंस कम होता जा रहा है. हमें ऐसी सरकार दो जो ये सब संभाल सके. अभी की सरकार को हमारी कोई चिंता नहीं है."

सुचित्रा अपने 15 महीने के बच्चे के साथ विरोध प्रदर्शन में आए थे. उन्होंने कहा कि वो बिजली के बार-बार जाने से परेशान हो गए हैं. उनका बच्चा सो भी नहीं पाता है.

उन्होंने कहा, ''हमारे नेता सही नहीं हैं. उन्होंने देश को बुरे हाल में पहुंचा दिया है. उन्होंने अपने वादे पूरे नहीं किए. लोग अब और सहन नहीं कर सकते.'' (bbc.com)


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