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रूस के हमले ने नाटो को एकजुट करने के साथ ही उस पर यूक्रेन के साथ खड़े होने और भरोसा पैदा करने का भारी दबाव पैदा कर दिया है. टेरी शुल्त्स बता रहे हैं कि गठबंधन आगे की परिस्थितियों के लिए कैसे खुद को तैयार कर रहा है.
डॉयचे वैले पर टेरी शुल्स की रिपोर्ट-
अमेरिकी खुफिया एजेंसी के पूर्व निदेशक डेविड पेट्रियस ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए कहा है, "शीत युद्ध खत्म होने के बाद वह नाटो के लिए सबसे बड़ा तोहफा रहे हैं." डीडब्ल्यू से बातचीत में पेट्रियस ने कहा, "वह रूस को फिर से महान बनाना चाहते हैं लेकिन वास्तव में उन्होंने अपने कामों से नाटो को फिर से महान बना दिया है." पेट्रियस का कहना है, "उस खतरे ने नाटो को इस तरह से एकजुट कर दिया है जैसा (बर्लिन की) दीवार गिरने, वॉरसॉ संधि और सोवियत संघ के विघटन के बाद कभी नहीं रहा."
30 सदस्यों वाला संगठन अगर इस खतरे से लाभ का आकलन कर रहा है तो इसके साथ ही वह यह हिसाब लगाने में भी जुटा है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद उसका जवाब क्या होगा. अमेरिका ने इसे युद्ध छेड़ना कहा है. नाटो के लिए गैरसदस्य सहयोगी की रक्षा के लिए सेना भेजना जरूरी नहीं है. हालांकि सहयोगी देश यह नैतिक जिम्मेदारी मानते हैं कि यूक्रेन की संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानून की रक्षा हो. अब तक किसी देश ने अपने सैनिक यूक्रेन की रक्षा में भेजने की बात नहीं की है तो इसका मतलब है कि यह काम दूर रह कर करने की कोशिश की जाएगी.
मदद के लिए उठाए गए कदम
जब सहयोग के क्षेत्र की बात उठी तो नाटो के महासचिव येंस स्टोल्टेनबर्ग ने जोर दे कर कहा कि मदद के लिए कई कदम उठाए गए हैं, "हम ने 100 से ज्यादा जेट को हाई अलर्ट पर रखा है और सागर में सहयोगी देशों के 120 से ज्यादा जहाज मौजूद हैं." मंगलवार को स्टोल्टेनबर्ग ने कहा, "उत्तर के ऊंचाई वाले इलाके से लेकर भूमध्यसागर तक. हम अपने सहयोगी को आक्रमण से बचाने के लिए जो भी जरूरी होगा, करना जारी रखेंगे."
यूक्रेन के अलगाववादी इलाके डोनेत्स्क और लुहांस्क को मान्यता देने के बाद अब पुतिन ने वहां अपनी फौज भी भेज दी है. पहले से ही इसकी आशंका को देखते हुए अमेरिका ने बाल्टिक सागर में अपने सैनिकों की मौजूदगी बीते हफ्तों में बढ़ा दी है.
विदेश मामलों की यूरोपीय परिषद के सीनियर फेलो कादरी लीक ने इस कदम का स्वागत किया है. यूक्रेन में फौज भेजने के पुतिन के आदेश से पहले डीडब्ल्यू से बातचीत में लीक ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि बाल्टिक देशों को फिलहाल सीधे कोई खतरा है. हालांकि हालात थोड़े अनिश्चित हैं. अगर हम आने वाले दिनों और हफ्तों में यूक्रेन में कोई बड़ी जंग देखते हैं तो निश्चित रूप से आस पास के देशों में हालात बहुत तनावपूर्ण होंगे और इसके साथ ही सभी मोर्चों पर आकस्मिक टकराव और गलतफहमी का खतरा भी बढ़ जाएगा."
"ताकत है तो दिखाओ"
नाटो की पूर्वी शाखा में कौन किस तरह से सहयोग करेगा यह मोटे तौर पर देशों को खुद ही तय करना है. सारे देश यह नहीं सोचते कि गठबंधन संयुक्त रूप से संसाधनों को बढ़ा देगा. नाटो के पूर्व अमेरिकी राजदूत डोग लुटे हैरानी से पूछते हैं, "वीजेटीएफ (वेरी हाई रेडिनेस ज्वाइंट टास्क फोर्स) कहां है?" वीजेटीएफ नाटो के रिस्पांस फोर्स का एक अंग है जिसमें नाटो के 40,000 सैनिकों की त्वरित कार्रवाई क्षमता का करीब आधा हिस्सा शामिल है. लुटे कहते हैं, "अगर यह अगुआ है तो अब अगुआ बनने का समय आ गया है." नाटो के महासचिव ने इसे अगुआ कहा था और लुटे ने उसी ओर इशारा किया.
अमेरिकी सेना के थ्री स्टार जनरल लुटे रिटायर हो चुके हैं और उन्होंने अमेरिका के इराक और अफगानिस्तान के लिए उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी भी संभाली है. लुटे का मानना है कि नाटो को तुरंत अपनी फौजें इकट्ठा करनी चाहिए जिसमें जमीन, हवा और समुद्री सैनिक और साजो सामान के साथ ही स्पेशल ऑपरेशन के दल भी शामिल हों. लुटे ने कहा कि यह यूरोप में किसी भी जगह तैयार किया जा सकता है ताकि जरूरत पड़ने पर तुरंत तैनात किया जा सके. लुटे का कहना है, "अगर आपके पास ऐसी ताकत है और इस तरह के मौके जो कि पीढ़ियों का संकट है...उसमें आप उसका इस्तेमाल या कम से कम प्रदर्शन नहीं करते तो वास्तव में आपके पास वह ताकत नहीं है."
साइबरस्पेस पर खतरा
यूक्रेन पर हमले का विस्तार साइबर हमलों तक जा सकता है. हाल के दिनों में यूक्रेन लगातार इसका सामना कर रहा है और इसके खिलाफ नाटो यूक्रेन के साथ मिल कर सालों से काम कर रहा है. सूफान सेंटर में रिसर्च निदेशक कोलिन क्लार्क जोर दे कर कहते हैं कि ऐसा लचीलापन विकसित करना जरूरी है. क्लार्क का कहना है, "मेरे ख्याल से इस वक्त यूक्रेन के लिए प्राथमिकता इस बात को दी जानी चाहिए कि वो ऐसे क्षेत्रों की पहचान करें जहां रूसी साइबर हमला कर सकते हैं. टीयर 1 के लक्ष्यों खासतौर से अहम बुनियादी ढांचे के लिए सक्रिय साइबर सुरक्षा पर अतिरिक्त ध्यान देना चाहिए.
क्लार्क का कहना है कि साइबर हमलों को अकसर सैन्य गतिविधियों से अलग करके देखा जाता है. क्लार्क के मुताबिक, "यूक्रेन को रूस की क्षमताओं को व्यापक रूप में समझना चाहिए, जिसमें मास्को के हाथ में मौजूद कई हथियारों में एक साइबर है." इसके साथ ही क्लार्क ने "सूचना के संग्राम" को भी रूस के लिए बेहद फायदेमंद माना. उन्होंने यूक्रेन की सरकार से आग्रह किया है कि वह अपने लोगों को याद दिलाएं कि आने वाले दिनों और हफ्तों में रूस की ओर से फैलाई जाने वाली गलत जानकारियों, अफवाहों से बिल्कुल सतर्क रहना है.
नाटो फिलहाल कर क्या सकता है?
बुधवार को यूक्रेन के करीबी यूरोपीय संघ और नाटो के पड़ोसियों लिथुआनिया और पोलैंड ने और करीब लाने के लिए अपील की है. इसके तह इन देशों ने यूक्रेन को यूरोपीय संघ के उम्मीदवार का दर्जा तुरंत देने की मांग की है. त्रिपक्षीय बयान जारी कर इन देशों ने कहा है "संघ के लिए करार और आंतरिक सुधारों को लागू करने की प्रक्रिया में हुई अहम प्रगति के साथ ही सुरक्षा की मौजुदा चुनौतियों को देखते हुए यूक्रेन यूरोपीय संघ के उम्मीदवार का दर्जा हासिल करने की योग्यता रखता है और रिपब्लिक ऑफ पोलैंड के साथ ही रिपब्लिक ऑफ लिथुआनिया इस लक्ष्य को हासिल करने में यूक्रेन का साथ देंगे."
हालांकि इसी वक्त कुछ जानकार यह भी कह रहे है यूक्रेन के लोग नाटो की सदस्यता की उम्मीदें छोड़ने की पुतिन की मांग के आगे झुकने के बारे में भी सोच रहे हैं. ब्रिटेन में यूक्रेन के राजदूत ने बीबीसी को हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में इस बारे में बात भी की थी हालांकि वो जल्दी ही इस बयान से पीछे हट गए. वाशिंगटन की अटलांटिक परिषद के सीनियर फेलो मिषाएल बोकिरोकिउ का कहना है कि यह बयान आकस्मिक नहीं था. उनका कहना है, "मेरा ख्याल में (यूक्रेनी अधिकारी) यह विचार पेश कर रहे थे" और उन्होंने यह भी कहा कि कहा कि उनकी कुछ लोगों से बात हुई है जो कहते हैं, "अगर युद्ध से बचने का यही तरीका है तो शायद हमें यही करना चाहिए." बोकिरोकिउ का कहना है कि यूक्रेन इस पर तभी गंभीरता से विचार करेगा कि जब नाटो खुद ही इसके लिए दबाव बनाए. (dw.com)