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महामारी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने लगाई लंबी छलांग
09-Jul-2021 8:04 PM
महामारी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने लगाई लंबी छलांग

हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के बारे में ऐसे बात करते हैं मानो ये भविष्य की कोई चीज होगी. लेकिन एआई तो हमारे इर्दगिर्द पहले से ही मौजूद है- कोविड 19 की महामारी ने ये दिखा भी दिया है.

डॉयचे वैले पर जुल्फिकार अब्बानी की रिपोर्ट- 

अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भविष्य है तो वो भविष्य फिर आज है. महामारी ने दिखाया है कि कितनी तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई काम करती है और कितने अलग अलग तरीकों से ये क्या कुछ कर सकती है. शुरू से ही देखें तो एआई ने हमें सार्स-कोवि-2 के बारे में जानकारी मुहैया करायी है.

कोविड-19 का संक्रमण इसी वायरस से फैलाता है. एआई की मदद से वैज्ञानिकों ने वायरस की जेनेटिक सूचना यानी उसके डीएनए की तेजी से छानबीन की है. डीएनए ही वो व्यवस्था है जो वायरस को वायरस जैसा बनाती है बल्कि हर जीवित चीज़ को. और अगर आप खुद का बचाना चाहते हैं तो आपको अपने दुश्मन का भी पता होना चाहिए.

एआई ने वैज्ञानिकों को ये समझने में मदद की है कि वायरस कितनी तेजी से म्युटेट होते हैं, एआई की मदद से ही टीके तैयार हो पाए हैं और उनका टेस्ट हो पाया है. ऐसी न जाने कितनी सारी चीजें होंगी जिनके बारे में यहां बताना मुमकिन नहीं – एक जायजा ही लिया जा सकता है. लेकिन एआई के बारे में कुछ बुनियादी बातों को समझने की कोशिश करते हैं.

एआई पर एक स्पीड रिफ्रेशर कोर्स

एआई निर्देशों का एक समुच्चय है जो कम्प्यूटर को ये बताता है कि उसे क्या करना है- हमारे फोन में पड़े  फोटो एल्बम में चेहरों की शिनाख्त करने से लेकर डाटा के विशाल ढेर को खंगालने तक. यानी भूसे के बहुत बड़े ढेर से सुई खोज निकालने जैसा काम है एआई का. लोग एआई को अल्गोरिदम भी कह लेते हैं. सुनने में जंचता है लेकिन अल्गोरिदम तो नियमों की एक स्थिर सी सूची भर है जो कम्प्यूटर को इतना ही बताती हैः "If this, then that” यानी "अगर ये, तो वो.”

इसी बीच, मशीन लर्निंग (एमएल) अल्गोरिदम एक ऐसी किस्म की एआई है जिससे हममें से बहुतों को डर लगेगा. ये वो एआई है जो किसी चीज़ को पढ़कर या उसका आकलन कर उसे याद कर लेती है और खुद को नयी नयी चीजें करना सिखा लेती है.

हम इंसानों को अक्सर लगता है कि हम इस एमएल अल्गोरिदम को काबू में नहीं कर सकते हैं और ना ही ये बता सकते हैं कि वो क्या जान लेता है. लेकिन वास्तव में हम ऐसा कर सकते हैं क्योंकि मौलिक कोड लिखने वाले तो हम ही हैं. इसलिए आप चैन की सांस ले सकते हैं. थोड़ी सी.

संक्षेप में एआई और एमएल वे प्रोग्राम हैं जो हमें, बहुत तेजी के साथ बहुत सारी सूचनाओं को बहुत सारे रॉ यानी कच्चे डाटा को प्रोसेस करने देते हैं. वे सारे के सारे दुष्ट दैत्य नहीं हैं जो हमें मार देंगे या हमारी नौकरियां चुरा लेंगे. ये कतई जरूरी नहीं है कि वे ऐसा करेंगे.

कोविड के खिलाफ लड़ाई में मददगार एआई

कोविड-19 के मामले में देखें तो एआई और एमएल ने कुछ जानें बचाने में मदद ही की है. डायगनॉस्टिक उपकरणों में उनका इस्तेमाल हो रहा है. वे बड़ी संख्या में छाती के एक्सरे रिपोर्टों को किसी रेडियोलॉजिस्ट की तुलना में काफी तेजी से पढ़ लेते हैं. एआई से डॉक्टरों को कोविड मरीजों की पहचान और निगरानी में मदद मिली है.

नाईजीरिया में संक्रमण के जोखिमों के आकलन के लिए टेक्नोलजी का बहुत बुनियादी लेकिन व्यवहारिक स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है. लोग बहुत सारे सवालों का ऑनलाइन जवाब देते हैं और उनके जवाबों के आधार पर उन्हें ऑनलाइन ही मेडिकल सलाह दी जाती है या उन्हें अस्पताल भेज दिया जाता है.

एआई बनाने वाली एक कंपनी वैलविस कहती है कि उसकी वजह से रोग नियंत्रण के लिए गठित आपात सेवा पर खामाखां आने वाली कॉलें कम होने लगी हैं.

दक्षिण कोरियाः कोविड की टेस्टिंग

सबसे अहम चीजों में से एक जो हमें हैंडल करनी पड़ती है, वो है संक्रमित लोगों की तेजी से पहचान. और दक्षिण कोरिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने डॉक्टरों का काम आसान किया है.

जब बाकी दुनिया पहले-पहल लॉकडाउन लगाने के बारे में सोच ही रही थी, तब सोल में एक कंपनी ने एआई की मदद से कुछ ही सप्ताहों में, कोविड-19 का टेस्ट तैयार कर लिया था. एआई के बिना उन्हें महीनों लग जाते. सीजीन कंपनी में डाटा साइंस और एआई डेवलेपमेंट की प्रमुख यंगशांह्ग "जेरी” सुह ने डीडब्लू को दिए इंटरव्यू में बताया कि इस बारे में "कभी सुना ही नहीं” गया था. सीजीन के वैज्ञानिकों ने 24 जनवरी को किट्स के लिए कच्चा माल मंगाया था और पांच फरवरी तक टेस्ट का पहला संस्करण तैयार हो चुका था.

टेस्ट को डिजाइन करने के लिए, ये तीसरा ही मौका था जब कंपनी ने अपने सुपर कम्प्यूटर और बिग डाटा एनालिसिस का इस्तेमाल किया था. लेकिन उन्होंने कुछ सही काम ही किया होगा क्योंकि पिछले साल मध्य मार्च में, अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में बताया गया था कि दक्षिण कोरिया ने दो लाख तीस हजार लोगों का टेस्ट कर लिया है. और आखिरकार कुछ देर के लिए ही सही, देश में हर दिन नये संक्रमणों की संख्या को स्थिर रखा जा सका. सुह कहती हैं, "जैसे जैसे नये वेरिएंट और म्यूटेशन का पता चल रहा है, हम लगातार अपडेट भी कर रहे हैं. इससे हमारे एमएल को नये वेरिएंट की शिनाख्त का मौका भी मिल जाता है.”

दक्षिण अफ्रीकाः तीसरी लहर की पहचान

एक और प्रमुख मुद्दा हमारे सामने ये ट्रैक करने का था कि बीमारी, खासतौर पर नये वेरिएंट और उनके म्युटेशन किस तरह समुदायों में और एक देश से दूसरे देश में फैल रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका में शोधकर्ताओं ने, भविष्य में रोजाना के कोविड-19 के कन्फर्म मामलों का आकलन करने के लिए एआई आधारित अल्गोरिदम का इस्तेमाल किया था. ये दक्षिण अफ्रीका में पूर्व संक्रमण के इतिहास के डाटा और लोगों की एक समुदाय से दूसरे समुदाय में आवाजाही जैसी दूसरी सूचनाओं पर आधारित था.

मई में शोधकर्ताओं के मुताबिक देश में महामारी की तीसरी लहर का खतरा कम दिखता था. अफ्रीका-कनाडा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डाटा इनोवेशन कंजोर्टियम के प्रमुख जूड कॉंग कहते हैं, "लोग सोचते थे कि बीटा वेरिएंट पूरे महाद्वीप में फैलेगा और हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को तोड़ कर रख देगा, लेकिन एआई की बदौलत हम उसे काबू में रख पाए.”

ये प्रोजेक्ट दक्षिण अफ्रीका की विट्स यूनिवर्सिटी और गाउटेंग की प्रांतीय सरकार और कनाडा की यॉर्क यूनिवर्सिटी के गठजोड़ से चल रहा है. कैमरून के कॉंग यॉर्क यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. वह कहते हैं, "अफ्रीका में डाटा बहुत बिखरा हुआ सा है” और एक बड़ी समस्या है बीमारियों को लेकर समाज में शर्म और संकोच, चाहे वो कोविड हो या एचआईवी, इबोला या मलेरिया.

उनके मुताबिक वैसे एआई की बदौलत हर इलाके की कुछ "खास छिपी हुई सच्चाइयां” बाहर आ सकी हैं, और स्थानीय स्वास्थ्य नीतियों को भी सचेत किया गया है. उन्होंने अपनी एआई मॉडलिंग को बोत्सवाना, कैमरून, इस्वातिनी, मोजाम्बिक, नामीबिया, नाईजीरिया, रवांडा, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाव्वे जैसे देशों में भी लागू किया है.

कॉंग कहते हैं, "बहुत सारी सूचनाएं एकआयामी हैं. आप जानते हैं कि कितने लोग अस्पताल में दाखिल हुए और कितने वहां से निकले. लेकिन इसके नीचे जो बात छिपी रह जाती है वो है उनकी उम्र, उनकी और बीमारियां और वो समुदाय जहां से वे आते हैं. हम एआई की मदद से वो सब पता लगा लेते हैं कि उन्हें मदद की कितनी जरूरत है और नीतियां बनाने वालों को भी सूचित कर देते हैं.”

एआई की खूबियों के दावे अतिरंजित तो नहीं? 

चेहरे की पहचान वाले अल्गोरिदम से मिलते-जुलते दूसरी तरह के एआई का इस्तेमाल भीड़-भाड़ में संक्रमित लोगों की पहचान करने या जिनके शरीर का तामपान बढ़ा हुआ हो, उनकी पहचान करने में हो सकता है. एआई से संचालित रोबोट, अस्पतालों और दूसरी सार्वजनिक जगहों की सफाई कर सकते हैं.

लेकिन उससे आगे क्या? क्योंकि कुछ जानकार ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि एआई की क्षमताएं बढ़ा-चढ़ाकर बतायी गयी हैं. इनमें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मशीन लर्निंग के प्रोफेसर नील लॉरेंस भी शामिल हैं जिन्होंने अप्रैल 2020 में एआई को "हाइप्ड” करार दिया था. उनके मुताबिक इसमें कोई हैरानी नहीं कि महामारी में शोधकर्ताओं ने गणितीय मॉडलिंग जैसी आजमाई हुई तकनीकों पर ही भरोसा किया. लेकिन एक दिन एआई उपयोगी होगी.

ये महज 15 महीने पुरानी बात है. और देखिए हम कितना दूर चले आए हैं. (dw.com)

 

    


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