गरियाबंद
जांच को पहुंची डॉक्टरों की टीम
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
गरियाबंद, 17 नवंबर। गरियाबंद जिले के आदिवासी विकासखंड मैनपुर के ग्राम धनोरा पंचायत में घटी त्रासदी ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया है। सरनाबहार के डमरू धार नागेश के तीन बच्चे-8, 7 और 4 वर्ष-लगातार तीन दिनों में एक-एक करके दुनिया से चल बसे। बीमारी का कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, पर इलाज में हुई गंभीर देरी, झोलाछापों पर अनियंत्रित निर्भरता और पारंपरिक बैगा-गुनिया उपचार ने स्थिति को और भयावह बना दिया।
मिली जानकारी के अनुसार, पूरा परिवार हाल ही में साहेबिनकछार मक्का तोडऩे गया था। वहीं से तीनों बच्चों को तेज बुखार हुआ। शुरुआत में किसी स्थानीय झोलाछाप से इलाज कराई गई। हालत बिगड़ती गई तो परिवार पारंपरिक तरीकों की ओर मुड़ गया-बैगा, गुनिया और झाड़-फूंक का सहारा लिया गया।
सबसे बड़े बच्चे को जब अमलीपदर सरकारी अस्पताल लाया गया था और सुबह उसकी मौत हो गई। दूसरे बच्चे को देवभोग क्षेत्र में एक कथित झोलाछाप उपचारकर्ता के पास ले जाया जा रहा था। पर दोनों को बचाया नहीं जा सका। दूसरा बच्चों को मौत मिट्टी कर जैसे ही घर लोटे वैसे ही तीसरे बच्चे की मौत ने पूरे गांव को शोक में डूबा दिया।
धनोरा और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारी के बाद सबसे पहले अस्पताल के बजाय झोलाछाप, बैगा-गुनिया पर इलाज कराने की पुरानी प्रवृत्ति अब गम्भीर चिंता का विषय बन चुकी है। स्वास्थ्य विभाग के वर्षों से चल रहे प्रचार, मितानिनों की समझाइश और सरकारी जागरूकता अभियानों के बावजूद लोगों का भरोसा वैज्ञानिक चिकित्सा पर उतना नहीं बन पाया है।
यह त्रासदी पहली नहीं है। पिछले वर्ष भी एक ही परिवार के दो बच्चों की सांप काटने से मौत हो गई थी। तब भी परिवार ने पहले झाड़-फूंक करवाई और जब हालत गंभीर हुई तब अस्पताल लाया गया-पर देर हो चुकी थी। उस दर्दनाक घटना से सीख नहीं मिल पाई और इतिहास एक बार फिर दोहराता दिखा।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी मौतें अक्सर बीमारी नहीं, बल्कि इलाज में देरी और गलत उपचार पद्धतियों से होती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि स्वास्थ्य केंद्र न होने, एंबुलेंस की देरी, डॉक्टरों की उपलब्धता जैसी समस्याएँ भी लोगों को वैकल्पिक और असुरक्षित उपायों की ओर धकेलती हैं।
क्षेत्र में व्याप्त अंधविश्वास अब सीधे-सीधे जीवन के लिए खतरा बनता दिख रहा है। लगातार हो रही ऐसी मौतों ने सवाल खड़ा कर दिया है। क्या स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, भरोसा और जागरूकता की कमी बच्चों की जान ले रही है?
मैनपुर स्वास्थ्य केंद्र के बीएमओ डॉ. गजेन्द्र ध्रुव ने चर्चा में बताया बुखार के समय हमारे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के द्वारा अस्पताल ले जाने की कोशिश की परंतु उन्होंने डॉक्टरों के पास ना जाकर बेगा गुनिया के पास झाड़ फूंक करवाने चले गए, जिससे समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका। तीन बच्चों का मौत हो गया। क्षेत्र में अभी भी अंधविश्वास काफी ज्यादा है। इस कारण क्षेत्र में जान जागरूक अभियान चलाया जाएगा।
डॉक्टर विशेषज्ञों की टीम घटना की जांच को गांव में पहुंची टीम वहीं स्थानीय लोग इस बार प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि सरकार को धनोरा, अमलीपदर, देवभोग और आसपास के इलाकों में विशेष जागरूकता अभियान, मोबाइल चिकित्सा यूनिट और झोलाछापों पर कड़ी कार्रवाई शुरू करनी चाहिए, ताकि ऐसी हृदयविदारक घट दोबारा न हों।


