गरियाबंद

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नवापारा-राजिम, 19 दिसंबर। शहर के राधा कृष्ण मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत गीता ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चौथे दिन राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी भारती दीदी ने बताया कि यह संसार एक कल्पवृक्ष के समान है, जिसका बीज ऊपर परमात्मा शिव है। उनसे निकले हुए पत्ते वेद और उसी से ही तना बनता है।
तना देवी देवता धर्म का सूचक है और फिर अनेक धर्म की शाखाएं उप शाखाएं निकलती है। कल्पना से कल्पवृक्ष बनता है। इस तरह से यह मानव कल्पवृक्ष विस्तार को पाता है और अंत में फल और बीज निकलता है। पुन: नए कल्प की उत्पत्ति अर्थात वृक्ष की उत्पत्ति होती है। इस तरह से यह मानव सृष्टि का परिवर्तन एक सर्किल के रूप में चलता रहता है। सारे वेद उपनिषद पुराण गाये हैं, गाय का सार दूध है और वह दूध अर्थात श्रीमद् भागवत गीता है।
कहा कि गीता जीवन जीने की कला और कर्मों को श्रेष्ठ बनाने का सर्वश्रेष्ठ मानव ग्रंथ है जिससे हम अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाकर उच्च पद की प्राप्ति कर सकते हैं। आज हर एक मानव मन के अंदर अहम, ममता, वासना भरी पड़ी है अर्थात यह पूरा कल्पवृक्ष जड़ जड़ी भूत हो गया है यह संसार रहने लायक नहीं है। अब नए वृक्ष की उत्पत्ति के लिए परमात्मा हमें श्रेष्ठ संकल्प राजयोग के माध्यम से देते हैं कि अपने संकल्पों को पहचान कर ज्ञान प्रधान बनाकर हम एक नई सृष्टि के निर्माण का कार्य कर रहे हैं। यह संसार की उत्पत्ति स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के मिश्रण से होती है इसी तरह यह संसार रूपी वृक्ष संकल्प और प्रकृति के मिश्रण से यह संसार बनता है।
भारती दीदी ने बताया कि जीवन को सुखी बनाने के लिए अनेक गुणों की आवश्यकता होती है। सेवा, प्रेम, नम्रता, दया, सहानुभूति समर्पण इत्यादि परंतु एक दोष ऐसा है, जिसका नाम अभिमान है। यह इन सब गुणों का विनाश कर देता है। परिणाम यह होता है, कि अभिमानी व्यक्ति किसी के साथ भी मिलकर नहीं रह पाता। जीवन का आनंद नहीं ले पाता। सदा अभिमान के नशे में चूर रहता है। अपना तथा दूसरों का तनाव बढ़ाता है।
यदि लोग अभिमान को छोडक़र नम्रता और प्रेम से रहे, तथा परस्पर एक दूसरे की सुख समृद्धि को बढ़ाने कि कोशिश करे तो लोगो के अभिमान स्वत: ही छुट जायेगा और जीवन आनंदमय हो जाएगा। एक नया कल्पवृक्ष बन जाएगा तो इस नए कल्प वृक्ष का बीज जो हमारे अंतर मन में अभिमान के रूप में समाया हुआ है इस देह अभिमान का त्याग कर अपने को आत्म अभिमानी बनाने की आवश्यकता है।
इसीलिए गीता में यह बात बार-बार आती है कि देह सहित सब धर्म को छोड़ अपने को आत्मा समझ और सब चिंता से मुक्त हो मेरी शरण में आजा तो मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर एक श्रेष्ठ इंसान देवप्रधान इंसान बना दूंगा यही गीता सार है, जिससे यह सृष्टि पुन: सत्तोंप्रधान स्वर्णिम बन जाती है।