संपादकीय
अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल से ही नैतिकता और ईमानदारी से उन्होंने एक सुरक्षित दूरी बनाकर रखी थी। कोई भी ऐसे सिद्धांत रिश्वत लेने, उसके एवज में नाजायज सरकारी फायदे देने, और मोटा भुगतान करने वालों को तरह-तरह की कुर्सियां देने, जुर्म से माफी देने में आड़े न आ जाएं, इसका ट्रम्प ने पूरा ध्यान रखा था। इसके अलावा भारत की कुनबापरस्ती की सबसे बुरी मिसालों को भी कुचलते हुए ट्रम्प ने अनैतिक कुनबापरस्ती का जो टॉवर खड़ा किया, वह ऊंचाई में न्यूयॉर्क के ट्रम्प टॉवर से भी ऊंचा था। अपने इस दूसरे कार्यकाल में एक बरस पूरा होने के पहले ही, कार्यकाल के पहले दिन से ही ट्रम्प ने जिस अंदाज में राष्ट्रपति भवन को जैसी खुली सौदेबाजी का अड्डा बना लिया है, उसके सामने दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों की मिसालें भी खासी ईमानदार लगने लगी हैं। अभी खबर है कि ट्रम्प को अरबों डॉलर देकर उसके एवज में अमरीका की कई कंपनियों ने मोटा फायदा कमाया, कई लोगों ने अपने परिवार के जुर्म के लिए राष्ट्रपति के विशेषाधिकार से माफी पा ली, कई लोगों के खिलाफ चल रहे केस खत्म कर दिए गए। बेशर्मी का हाल यह है कि राष्ट्रपति भवन में एक बड़े हिस्से को तोडक़र ट्रम्प एक जलसाघर बना रहा है, और इसके लिए निजी कंपनियों और कारोबारियों से पैसा लिया गया है। ट्रम्प इसे गर्व की बात बता रहा है कि कोई देश उसे दुनिया का एक सबसे महंगा हवाई जहाज तोहफे में दे रहा है, और कोई राष्ट्रपति भवन में होने वाले नाजायज निर्माण के लिए चंदा।
जो लोग अमरीका को एक अच्छा लोकतंत्र मानते थे, उन सब लोगों को समय-समय पर अमरीकी राष्ट्रपति निराश करते रहे। नाजायज काम करने वाला ट्रम्प पहला और अकेला नहीं है, इसके पहले भी राष्ट्रपति की माफी की अपार ताकत के इस्तेमाल के लिए भ्रष्टाचार सामने आते रहा है। अमरीकी संविधान के मुताबिक इस विशेषाधिकार के खिलाफ न संसद कुछ कर सकती, और न ही अदालतें दखल दे सकतीं। पता नहीं संविधान बनाने वाले लोगों को क्या यह खुशफहमी थी कि अमरीकी राष्ट्रपति नैतिक और सज्जन लोग होंगे? अगर उन्हें ऐसी कोई गलतफहमी थी, तो आज ट्रम्प यह साबित कर रहा है कि राष्ट्रपति को चंदा देकर ओहदा पाना, या माफी पाना अमरीकी इतिहास में आज सबसे अधिक संगठित है, और सबसे अधिक बेशर्म भी है। ट्रम्प ने अपने गोल्फ रिजॉट्र्स में दुनिया भर के रईसों और उनके दलालों का स्वागत करना आज भी जारी रखा है। दूसरी सरकारों से किसी तरह का फायदा उठाने पर अमरीकी कानून में रोक है, लेकिन ट्रम्प धड़ल्ले से यह करते आया है।
भारत तो कुनबापरस्ती के लिए बदनाम देश है। लेकिन ट्रम्प ने अपनी बेटी इवांका, और दामाद जेरेड कुशनर को अमरीका की विदेश नीति में भारी-भरकम जिम्मेदारी दे रखी है, और जिन देशों के साथ इन लोगों की कंपनियों का कारोबार है, उन देशों के साथ अमरीका के रिश्तों में भी ट्रम्प के कुनबे की सीधी औपचारिक दखल है। ट्रम्प का दामाद अभी रूस में यूक्रेन के साथ युद्धविराम की संभावना पर बात करने के लिए अमरीकी सरकार की तरफ से जाकर बैठकों में शामिल रहा, कभी वह मध्य-पूर्व में जाकर इजराइल और फिलीस्तीन के बारे में कई देशों की सरकारों के साथ बैठकों में शामिल होता है। यह एकदम ही अभूतपूर्व और असाधारण नौबत है, जब राष्ट्रपति और उनका कुनबा हर किस्म के अंतरराष्ट्रीय कारोबार में भी लगे हुए हैं, और ऐसे देशों के साथ जंग जैसे मुद्दों पर सरकारी बैठकों में भी शामिल हैं। राष्ट्रपति कारोबार में हैं, और उनका कारोबारी परिवार राष्ट्र की नीतियों और संबंधों को तय करने में शामिल है। अमरीकी विश्लेषकों का मानना है कि वहां का संविधान बनाते हुए राष्ट्रपति की इस दर्जे की बेशर्मी की कल्पना नहीं की गई होगी। अब अमरीका में यह बहस चल रही है कि क्या लोकतंत्र सिर्फ नियमों से चलता है, या फिर उसके लिए चरित्र भी जरूरी है।
डॉनल्ड ट्रम्प ने यह मिसाल भी पेश की है कि अपने राजनीतिक विरोधियों, और अपने से असहमत लोगों से बदला किस तरह से निकाला जाता है। उनके खिलाफ जितने तरह के मुकदमे अमरीका में बरसों से चल रहे हैं, उन मामलों की जांच करने वाले, संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों के खिलाफ भी ट्रम्प ने ढेरों मुकदमे दर्ज करवा दिए हैं, और संवैधानिक संस्थाओं को वह गैरकानूनी और नाजायज कार्रवाई के लिए खुलकर सार्वजनिक बयानों में भडक़ाता और उकसाता है। अपने कार्यकाल के इस पहले ही साल में उसने लोकतंत्र, संविधान, नैतिकता, और सार्वजनिक जीवन के सामान्य शिष्टाचार, इन सबको जिस तरह कुचलकर रख दिया है, उससे लगता है कि अमरीका ने पिछली एक सदी में दुनिया पर जितने बम बरसाए थे, उससे अधिक बम आज अमरीकी घरेलू लोकतंत्र पर बरस रहे हैं। ट्रम्प जिस तरह की मनमानी कर रहा है, जितना भ्रष्टाचार कर रहा है, जितनी तानाशाही कर रहा है, उतनी किसी बहुत बेशर्म अफ्रीकी तानाशाह ने भी नहीं दिखाई थी, और न ही किसी अरबी तेल साम्राज्य के तानाशाह ने।
इस पूरे सिलसिले से अमरीकी लोकतांत्रिक प्रणाली की यह बुनियादी कमजोरी और खामी भी खुलकर सामने आई है कि उसका संविधान किसी बेशर्म और अनैतिक राष्ट्रपति को तानाशाह बनने का पूरा मौका देता है। यह जरूर है कि ऐसा करने वाला ट्रम्प पहला व्यक्ति है, लेकिन वह आखिरी भी हो, ऐसा तो कहीं संविधान में लिखा नहीं है। एक परले दर्जे का भ्रष्ट, सनकी, बेदिमाग और बददिमाग कमीना इंसान दुनिया के सबसे ताकतवर देश की दशकों की दोस्तियों को पल भर में खत्म कर दे रहा है, और दशकों की दुश्मनी को गले लगा ले रहा है। इसने अमरीका की अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही, और उसके सामाजिक सरोकार को कूड़े की टोकरी में डाल दिया है, और गरीब देशों में पिछले एक बरस में ही टीके और इलाज के बिना करोड़ों जिंदगियां खतरे में पड़ गई हैं, क्योंकि अमरीका ने अंतरराष्ट्रीय मदद से हाथ खींच लिया है। ट्रम्प ने पर्यावरण बचाने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों को ग्रीन-झांसा करार देते हुए अमरीकी योगदान को खत्म कर दिया है, और उसके देखादेखी अब दुनिया के दूसरे कई संपन्न और विकसित देश भी जिम्मेदारी से पीछे हट गए हैं।
अमरीका बाकी दुनिया के लिए चाहे दुनिया का सबसे ताकतवर देश बना हुआ है, लेकिन अमरीका के भीतर वहां के लोकतंत्र का खोखलापन ट्रम्प के इस कार्यकाल से जिस तरह और जिस हद तक उजागर हुआ है, वह बेमिसाल है, उसने साबित किया है कि पूरी दुनिया में अमरीका ने अपने फौजी हमलों में जिन दसियों लाख बेकसूरों को मारा है, उनकी आह में कुछ तो असर है ही। अमरीका आज एक पूरी तरह कमजोर और असफल लोकतंत्र साबित हुआ है, और ऐसी मनमानी करने वाले देश के साथ यह अच्छा ही सुलूक है, एक कमजोर अमरीका से एक मजबूत दुनिया की संभावना पैदा हो सकती है, और उसके महत्व को कम नहीं आंकना चाहिए। मुम्बई में अंडरवल्र्ड के सबसे बड़े सरगना, दाऊद इब्राहिम के कमजोर होने से मुम्बई का भला ही हुआ होगा। एक कमजोर अमरीका का मतलब दुनिया में इंसाफ बढऩा भी होगा।


