संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी से बचाने केन्द्र और राज्यों की साझा कोशिश हो
सुनील कुमार ने लिखा है
04-Dec-2025 5:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी से बचाने केन्द्र और राज्यों की साझा कोशिश हो

छत्तीसगढ़ के सरगुजा इलाके से लड़कियों को ले जाकर महानगरों में बेचने का काम चलते ही रहता है। इसे पूरी तरह बिक्री कहने पर कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है, क्योंकि इनमें से कुछ लड़कियां बालिग रहती हैं, जाती अपनी मर्जी से हैं, लेकिन उन्हें काम दिलाने का लालच देकर ले जाया जाता है, लेकिन वहां ले जाकर बंधुआ मजदूर की तरह रखा जाता है, किसी प्लेसमेंट एजेंसी के मार्फत किसी घर में चौबीस घंटे की नौकरी दिलवाई जाती है, या कहीं किसी की जबर्दस्ती शादी करवा दी जाती है। कुछ मामलों में उन्हें देह के धंधे में भी धकेल दिया जाता है। ऐसा ही एक मामला अभी सामने आया है जिसमें सरगुजा जिले की दो युवतियों को नौकरी के नाम से मध्यप्रदेश के उज्जैन ले जाकर ढाई लाख रूपए में बेच दिया गया, और इनमें से एक की वहां जबर्दस्ती शादी करवा दी गई, जबकि वह पहले से शादीशुदा बताई जा रही है। इन्हें बलपूर्वक बंद करके रखा गया, और इन्हें छोडऩे के एवज में इनके घरवालों से पैसे मांगे जा रहे हैं।

ये जानकारियां अभी पुलिस में इन युवतियों और इनके घरवालों की दी हुई हैं, और हो सकता है कि सच इसके कुछ दाएं-बाएं भी हों। लेकिन यह तो सच है कि बिना किसी हिफाजत के, या कानूनी औपचारिकता के छत्तीसगढ़ की लड़कियों को दूसरे प्रदेशों में अलग-अलग मकसद से ले जाया जाता है। पिछले कुछ महीनों में कई अलग-अलग घटनाओं में बिहार की कुछ जगहों से छत्तीसगढ़ की नाबालिग लड़कियों को चकलाघरों से बरामद किया गया है, और कुछ दूसरी लड़कियां वहां मेलों में नाच दिखाने वाले कारोबारियों के पास बंधक मिली हैं। छत्तीसगढ़ और दूसरे प्रदेशों की पुलिस कभी मिलकर, और कभी अलग-अलग भी काम करते हुए इन लड़कियों को बरामद करती हैं। कुछ गैरसरकारी स्वयंसेवी संगठन भी लड़कियों को बचाने के लिए पुलिस को खबर करते हैं, और कार्रवाई में साथ भी डटे रहते हैं। हर बरस दर्जनों ऐसी लड़कियां दूसरे प्रदेशों से छुड़ाकर लाई जाती हैं। छत्तीसगढ़ के सैकड़ों लोग बेहतर मजदूरी के लिए दूसरे प्रदेशों में जाते हैं, और उन्हें वहां पर बंधक बनाकर रख लिया जाता है। ऐसे मामले भी राज्य सरकार और पुलिस की दखल से सुलझते हैं, और गिरफ्तारियां भी होती हैं।

अब जो मजदूर परिवार अपनी मर्जी से दूसरे प्रदेशों में जाते हैं, और खालिस मजदूरी के लिए जाते हैं, उन पर अगर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करके जाने का दबाव डाला जाएगा, तो वह सरकारी अमले की वसूली का एक और नाका शुरू हो जाएगा। लेकिन प्रदेश के लोग कहां-कहां काम कर रहे हैं इसकी जानकारी अगर नहीं रहेगी, तो शोषण के कई हफ्ते या महीने निकल जाने के बाद उनमें से कोई राज्य में किसी को खबर करेंगे तो ही सरकार को खबर होगी। आज देश के बाहर बसे हुए लोगों से शादी के लिए भारत की जो लड़कियां जाती हैं, भारत सरकार उनकी भी जानकारी दर्ज करने की एक योजना चलाती है ताकि दूसरे देश की जमीन पर उनके नए परिवार उनके साथ कोई जुल्म न करें। भारत के प्रदेशों में दूसरे प्रदेशों में ले जाए जाने वाले लोगों की हिफाजत के लिए ऐसे अधिक इंतजाम नहीं हैं। जब कभी बड़ी संख्या में मजदूरों को लेकर जाने के लिए दलाल यहां आते हैं, तो उन पर जरूर पुलिस यह सख्ती करती है कि वे सूचना देकर ही लेकर जाएं। जब बड़ी संख्या में लोग स्टेशन या बस स्टैंड पर दिखते हैं, तो पुलिस पूछताछ भी कर लेती है। लेकिन जब सीमित संख्या में लड़कियों को कोई बाहर ले जाए, और वे पहली नजर में बालिग लगें, तो पुलिस की नजर भी चूक सकती है।

छत्तीसगढ़ की एक तिहाई आबादी आदिवासियों की है, और इस राज्य से मानव तस्करी के अधिकतर मामलों की शिकार लड़कियां आदिवासी ही रहती हैं। कई लड़कियां पढ़-लिख लेने के बाद महानगरों की जिंदगी से आकर्षित होकर भी वहां काम करने जाना चाहती हैं, लेकिन वहां के शोषण के खतरों के खिलाफ उनके पास बचाव का कोई जरिया नहीं रहता। ऐसे में सभी राज्यों को एक-दूसरे के साथ तालमेल करके उन राज्यों से आए हुए मजदूरों और कामगारों की जानकारी एक-दूसरे को देना चाहिए। इसके लिए सरकारों का कोई आंतरिक पोर्टल ऐसा हो सकता है जो कि किसी राज्य में काम कर रहे, बसे हुए, या फंसे हुए लोगों की जानकारी पल भर में उस पोर्टल पर अपलोड करे, तो उनके गृहप्रदेश की पुलिस या दूसरे महकमे को वह जानकारी दिख जाए। इसके लिए हर प्रदेश को ऐसे समन्वय-अधिकारी नियुक्त करने चाहिए जो कि अपनी जमीन के ऐसे सारे मामलों को संबंधित राज्यों को दे सकें, या दूसरे राज्यों से जानकारी या शिकायत मिलने पर उसे अपने जिलों तक भेजकर जानकारी ले सकें।

मानव तस्करी न सिर्फ हिन्दुस्तान के राज्यों के बीच चलती है बल्कि पूरी दुनिया में मानव तस्करी आम हैं, और दुनिया के कई देशों में तो वहां के सबसे खतरनाक मुजरिमों के माफिया गिरोह इस धंधे में लगे रहते हैं। फिर ऐसी तस्करी अपने आपमें एक जुर्म नहीं रहती है, वह आगे के जुर्म के एक सिलसिले की शुरूआत रहती है। आगे इन लोगों को भीख मांगने के लिए, मानव अंग प्रत्यारोपण के लिए, या नशे की तस्करी, और वेश्यावृत्ति के लिए झोंक दिया जाता है। अभी एक-दो सदी पहले तक गरीब देशों से बंधुआ मजदूरों की तस्करी होती थी, और उनकी नीलामी की मंडियां रहती थीं, आज भी मानव तस्करी का माफिया ऐसा अघोषित काम करते ही रहता है। भारत जैसे देश में यह जरूरी नहीं है कि केन्द्र सरकार ही हर काम को करे, कोई स्मार्ट प्रदेश भी यह काम कर सकता है कि ऐसा एक पोर्टल शुरू करे जिस पर मानव तस्करी के शिकार लोग या उनके परिवार अपनी शिकायत और जानकारी डाल सकें, और वह जानकारी संबंधित दूसरे प्रदेश को आगे बढ़ाने का काम ऐसे पोर्टल शुरू करने वाले राज्य करें। पुलिस, मजदूर विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग जैसे कई विभाग इस तस्करी को रोकने में शामिल किए जाते हैं, और राज्य सरकारों को इसकी एक औपचारिक चौकसी में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार को पहल करनी चाहिए। आज एआई जैसे औजार भी रेलवे स्टेशनों, और बस अड्डों पर मजदूरों की भीड़ या ले जाई जा रही लड़कियों और महिलाओं पर निगरानी रख सकते हैं क्योंकि इन तमाम जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। भारत सरकार को सारे राज्यों को इससे जोडऩा चाहिए, और राज्यों को भी इस बात का अंदाज रहता है कि उनके किन इलाकों से लगातार ऐसी तस्करी होती है। समय रहते अगर तस्करी से बाहर ले जाई जाती लड़कियों और महिलाओं को बचाया नहीं जाता, तो उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी आंच आती है, और यह सब देखते हुए सरकारों को जानकारी साझा करने, और बिना देर किए हुए आपसी समन्वय से कार्रवाई का कोई सिस्टम विकसित करना चाहिए।  

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