संपादकीय
हिमाचल की एक खबर आई है कि वहां के एक बुजुर्ग वैद्य रामकुमार बिंदल ने एक नौजवान मरीज महिला के साथ इलाज के नाम पर छेडख़ानी की, और यौन हमला किया। किसी तरह वह युवती बचकर निकली, और जाकर महिला थाने में रिपोर्ट की। 81 बरस का यह वैद्य हिमाचल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राजीव कुमार बिंदल का बड़ा भाई भी है। अब इस उम्र में उसने 25 बरस की एक मरीज का यौन शोषण करने की कोशिश की। इस मामले में भाजपा ने कुछ नहीं कहा है, और महिलाओं के संगठनों ने कड़ी कार्रवाई की मांग की है। कल-परसों की ही खबर है कि पश्चिम बंगाल में एक बार फिर एक मेडिकल छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ है, और वह गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती है, यह सबको याद होगा कि किस तरह कोलकाता के एक मेडिकल कॉलेज में 2024 में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार करके उसका कत्ल कर दिया गया था, और उसके खिलाफ बंगाल में एक बहुत बड़ा जनआंदोलन खड़ा हुआ था। एक अलग खबर मध्यप्रदेश से आई है जहां बुरहानपुर के सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र में चीरघर में रखी गई एक महिला की लाश को स्ट्रेचर पर से एक आदमी घसीटकर ले जाता है, और उसके साथ बलात्कार करता है। 2024 का यह वीडियो अभी सामने आया, और पुलिस ने सीसीटीवी रिकॉर्डिंग से इस आदमी, भाईलाल को गिरफ्तार भी कर लिया है। उसके खिलाफ शव के साथ यौन छेड़छाड़ का जुर्म दर्ज किया गया है। रिकॉर्डिंग बताती है कि यह घटना सुबह पौने 7 बजे हुई जिस वक्त चारों तरफ रौशनी हो चुकी थी। इस आदमी ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है। ट्विटर पर एक पत्रकार ने जब अस्पताल का यह वीडियो पोस्ट किया, और लिखा कि भारतीय समाज बीमार है, और महिला मरने के बाद भी ऐसे भयानक बर्ताव से बच नहीं सकती, तो उसके नीचे एक आदमी ने टिप्पणी की है- आंटी तेरा शोषित वंचित है यह। इन लोगों को मुजरिम जनजाति के दर्जे में रखने की एक वजह थी।
हिमाचल की इस खबर को देखें, तो रामकुमार बिंदल जो कि बलात्कार करते हुए पकड़ाया है, वह तो शोषित वंचित और मुजरिम जनजाति का नहीं है। वह तो वहां की सबसे ऊंची कही जाने वाली जाति का है, और जिसका नाम भी माँ-बाप ने भगवान के नाम पर रखा था। उम्र भी वानप्रस्थ आश्रम में जाने की हो गई थी, और पेशा भी मरीजों को ठीक करने का था। लेकिन कोई भी बात काम नहीं आई। बलात्कारी हर धर्म, हर जाति, हर उम्र, हर पेशे के होते हैं। और बलात्कार की शिकार आमतौर पर उनसे कमजोर धर्म, कमजोर जाति, आर्थिक रूप से कमजोर होती हैं। फिर सामूहिक बलात्कार के मामलों में तो सर्वधर्म, समभाव काम आता है, और बलात्कारी सारे धार्मिक भेदभाव छोडक़र, जातियों का फर्क छोडक़र किसी लडक़ी या महिला को घेरकर उससे बलात्कार करने के लिए एक हो जाते हैं। लोगों को जम्मू के कठुआ का सामूहिक बलात्कार याद होगा जिसमें 8 बरस की मुस्लिम खानाबदोश लडक़ी आसिफा बानो के साथ 6 मर्दों और एक नाबालिग ने बलात्कार किया था, और इसका एक मकसद जम्मू-कश्मीर की इस बंजारा जाति के लोगों को आतंकित करना भी था, ताकि वे लोग यह हिन्दू-बहुल इलाका छोडक़र चले जाएं। बलात्कार करने वाले 8 लोगों में अपहरण, बलात्कार, और कत्ल की साजिश बनाने वाला सांजीराम नाम का आदमी था जो कि एक मंदिर का पुजारी था, उसका बेटा और भतीजा भी इसी बलात्कार में शामिल थे, और उन्होंने फोन कर-करके दूसरे लोगों को बलात्कार के लिए बुलाया था। 8 बरस की बच्ची पर 7 लोगों का यह बलात्कार जम्मू के कठुआ के रसना गांव में देवस्थान मंदिर में हुआ था।
बलात्कार के मामलों में मर्द का गुफाकाल का बाहुबल काम आता है, या फिर उसकी संपन्नता, और जाति-धर्म का बाहुबल। और दूसरे धर्म या जाति से जितना भी परहेज रहता है, वह बलात्कार के मामलों में खत्म हो जाता है। जब किसी लडक़ी या महिला से बलात्कार करना होता है, तो वह अछूत भी नहीं रह जाती। उसके बदन के सबसे अंतरंग हिस्से जिन्हें कि कुछ मायनों में गंदा भी माना जा सकता है, वे भी, और वे ही, मर्द की सबसे बड़ी दिलचस्पी की जगह बन जाते हैं, और किसी जात-धरम की लडक़ी-महिला के गुप्तांगों में दाखिले से भी किसी ऊंची कही जाने वाली जाति या अहंकारी धर्म को छुआछूत नहीं लगता। यह बात जिंदा पर भी लागू होती है, और लाश के साथ बलात्कार करने वालों पर भी।
इस भयानक नौबत में यह देखकर हैरानी होती है कि किस तरह एक जुर्म करने में हर जात-धरम के लोग एक हो जाते हैं, और किसका तन या धन लूटना है, उसमें भी कोई जात-धरम आड़े नहीं आते, और तो और जिंदा या मुर्दा होना भी कोई फर्क नहीं करता। किसी तरह के वर्जित संबंध आड़े नहीं आते, किसी तरह की बेबस पर कोई दया नहीं आती। बलात्कार करते हुए लोगों को इस जुर्म के एवज में सजा काटने की आशंका भी नहीं सताती, न ही ऊपर जाकर ईश्वर को मुंह दिखाने की बात कचोटती, न ही किसी लडक़ी या महिला से खुद को कोई यौन रोग होने का खतरा लोगों को सताता, न ही यह सामाजिक खतरा सताता कि वे पकड़ाए जाने पर परिवार और समाज को क्या मुंह दिखाएंगे। यह समझना भी कुछ मुश्किल है कि जब कोई लडक़ी या महिला चीखती-पुकारती, छटपटाती रहे, तो उसकी देह में दाखिल होकर कोई सामान्य मर्द किस तरह का सुख पा सकते हैं। यह देह सुख अधिक रहता है, या किसी बेबस लडक़ी या महिला पर जुल्म करने का सुख अधिक रहता है? बलात्कारी की मानसिकता पर बहुत कुछ पढ़ा हुआ नहीं है, इसलिए हम सिर्फ एक अंदाज लगा सकते हैं कि उनके दिमाग में क्या-क्या घूम रहा हो सकता है। यह बात जरूर एक बहुत ही कड़वी और क्रूर सामाजिक हकीकत है कि बलात्कार करने का मौका मर्दों के आपस के किसी भी तरह के भेदभाव को खत्म कर देता है, रिश्तों के लिहाज को खत्म कर देता है, जिंदगी में जिस नैतिकता की नसीहत दी जाती है, उस नैतिकता को भी खत्म कर देता है। बहुत से ऐसे बलात्कार के मामले पकड़ाते हैं जिनमें बाप-बेटे, भाई-भाई, ससुर-दामाद साथ-साथ बलात्कार करते गिरफ्तार होते हैं।
तन या मन का वह हिंसक सुख जो कि सामाजिकता के तमाम बंधनों, और वर्जनाओं को खत्म कर देता है, उसकी ताकत के बारे में सोचना चाहिए! जिस समाज में जात-धरम, संपन्नता-विपन्नता जैसे भेदभाव परले दर्जे की हिंसा करवाते हैं, वे भी बलात्कार करने के लिए भाईचारे में तब्दील हो जाते हैं, बलात्कारियों के बीच भाईचारा! सरकार और समाज को चाहिए कि बलात्कारियों की सोच का अलग से अध्ययन करवाए क्योंकि उनका दिमाग समझ में आए बिना उस दिमाग का कोई इलाज नहीं हो पाएगा, समाधान के लिए समस्या की पूरी पहचान जरूरी है। अपराधों का, मनोविज्ञान और लैंगिक-अधिकारों का अध्ययन करने वाले लोगों को इस हिंसा के पीछे की मानसिकता का विश्लेषण करना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


