संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बदजुबान मंत्री से रियायत, और मुस्लिम प्रोफेसर पर...
20-May-2025 8:06 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बदजुबान मंत्री से रियायत, और मुस्लिम प्रोफेसर पर...

मध्यप्रदेश के एक बदजुबान मंत्री की भारतीय सेना की मुस्लिम महिला कर्नल को आतंकियों की बहन बताकर दिए गए भयानक भडक़ाऊ बयान पर मुख्यमंत्री या सत्तारूढ़ भाजपा ने कुछ नहीं किया है, बल्कि जब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने खुद होकर इस मामले में मंत्री के खिलाफ चार घंटे में एफआईआर करने का आदेश दिया, तब भी एफआईआर में मंत्री को बचाने की भरसक कोशिश की गई। उसके बाद से हाईकोर्ट, और उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मंत्री पर दोनों अदालतों का जो रूख है, उसे देखते हुए भी भाजपा हैरान करने की हद तक चुप है। इससे और कुछ नहीं हो रहा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जो भी मकसद एक हिन्दू, और एक मुस्लिम महिला फौजी अफसरों को पाकिस्तान पर हमले की प्रेस ब्रीफिंग में रखने के पीछे था, उसकी बहुत बुरी हार हुई है। एक तरफ तो देश हर दिन की प्रेस ब्रीफिंग को टीवी पर जीवंत देखकर भारत के हिन्दू-मुस्लिम समुदायों को एक साथ भी देख रहा था, और दूसरी तरफ एक मुस्लिम देश पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी जुबान में ठोस जानकारी देने का काम एक मुस्लिम हिन्दुस्तानी फौजी महिला अफसर कर रही थी, उससे पाकिस्तान को भी एक संदेश जा रहा था। लेकिन बदजुबानी और बकवास के लिए पहले से बदनाम चले आ रहे मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम के मंच और माईक से जिस तरह आधा दर्जन, या अधिक बार इस भारतीय महिला कर्नल को आतंकियों की बहन करार दिया, वह सुनना भी भयानक था, और भाजपा और मोदी सरकार का इसे बर्दाश्त करना तो और भी भयानक है। एक बदजुबान कई मौकों पर अपनी असलियत दिखा सकता है, लेकिन आज जब मोदी सरकार देश की सभी पार्टियों से यह उम्मीद करती है कि उसके सांसद दुनिया भर में जाकर भारत सरकार की पाकिस्तान पर की गई फौजी कार्रवाई को जायज ठहराएं, तो घर के भीतर इस किस्म की गंदगी को झाड़ू से साफ करके बाहर निकालने का काम भाजपा क्यों नहीं कर रही है, यह समझ से परे है।

और कुछ नहीं तो भाजपा को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच, और सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच की कही हुई बातों को ही सुन लेना चाहिए। ये बातें किसी विपक्षी पार्टी की कही हुई नहीं है, और ऐसा भी नहीं है कि लगातार दो बड़ी अदालतों के दो-दो जज आए दिन एक किस्म का इतना कड़ा रूख अख्तियार करते हों। फिर यह भी है कि इस मंत्री ने माफी मांगते हुए जिस किस्म की अगर-मगर, किन्तु-परन्तु की भाषा का इस्तेमाल किया है, उससे भी समझ पड़ता है कि अदालतों के ऐसे कड़े रूख के बावजूद मंत्री के कस-बल अभी निकले नहीं हैं, और अदालत को यह कहना पड़ा है कि मंत्री की यह माफी घडिय़ाली आँसू सरीखी है। इसके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री के इस बयान की जांच के लिए जितने खुलासे में जाकर मध्यप्रदेश के तीन आईपीएस अफसरों का एक विशेष जांच दल बनाया है, और उसकी रिपोर्ट हफ्ते भर में मांगी है, वह सब देखकर भाजपा को मौके की नजाकत समझनी थी। एक पार्टी के रूप में अगर भाजपा इसे नहीं समझ पाई, तो भारत सरकार के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस बात को समझना था कि आज जब पूरा देश फौज के साथ खड़ा है, और खुद भाजपा पूरे देश में तिरंगा यात्रा निकाल रही है, तब उनकी पार्टी का मध्यप्रदेश का एक मंत्री किस तरह की साम्प्रदायिक नफरत वाली गंदगी फैला रहा है, एक फौजी अफसर, एक महिला को नीचा दिखा रहा है। यह देखना थोड़ा सा हैरान करता है कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी, और भारत के आज के सबसे कामयाब नेता मिलकर भी इस मौके की नजाकत को समझ नहीं रहे हैं, और ऐसे मंत्री को पालकर रख रहे हैं।

इसके साथ ही समानांतर चल रहा एक दूसरा मामला अगर साथ-साथ रखकर नहीं देखा जाएगा, तो वह आज के हिन्दुस्तान के साथ बेइंसाफी होगी। हरियाणा में दर्ज कराई गई एक एफआईआर के आधार पर देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय, अशोका यूनिवर्सिटी के एक मुस्लिम प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया है, उन पर महिलाओं की गरिमा के खिलाफ लिखने, और फौज के खिलाफ लिखने जैसे कई आरोप लगाए गए हैं। मध्यप्रदेश के मंत्री के जुर्म को अनदेखा करना जितना भयानक है, उतनी ही भयानक इस मुस्लिम प्रोफेसर पर की गई कार्रवाई है। हरियाणा के महिला आयोग ने एक शिकायत की, और पुलिस ने आनन-फानन इस प्रोफेसर को गिरफ्तार किया है। प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा था- ‘इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया कुरैशी की तारीफ कर रहे हैं, ये देखकर मैं खुश हूं, लेकिन ये लोग शायद इसी तरह से मॉबलिचिंग के पीडि़तों, मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने, और बीजेपी के नफरत फैलाने के शिकार लोगों को लेकर भी आवाज उठा सकते हैं कि इन लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर सुरक्षा दी जाए। दो महिला सैनिकों के जरिए जानकारी देने का नजरिया महत्वपूर्ण है, लेकिन इस नजरिए को हकीकत में बदलना चाहिए, नहीं तो यह केवल पाखंड है। सरकार जो दिखाने की कोशिश कर रही है, उसकी तुलना में आम मुसलमानों के सामने जमीनी हकीकत अलग है। लेकिन साथ ही इस प्रेस कांफ्रेंस से पता चलता है कि भारत अपनी विविधता में एकजुट है, एक विचार के रूप में पूरी तरह से मरा नहीं है।’ इस पोस्ट के अंत में प्रोफेसर खान ने तिरंगे झंडे की फोटो के साथ जय हिन्द लिखा था।

अब अगर इन बातों को देखें, तो इनमें से एक भी बात महिला की गरिमा के खिलाफ नहीं है, और न ही फौज के खिलाफ है। इसमें कोई नई बात भी नहीं है, क्योंकि भारत में बहुत सारे लोग लगातार यह बात लिखते आए हैं कि देश में जगह-जगह धार्मिक आधार पर, और साम्प्रदायिक नीयत से मुस्लिमों पर हमले हो रहे हैं, और उन पर बुलडोजर चल रहे हैं, और उनकी मॉब-लिचिंग हो रही है। उन्होंने इसमें कोई भी नई बात नहीं कही है। कल जब इंडिया टुडे समूह के एक अंग्रेजी टीवी चैनल पर एक महिला एंकर ने हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष को उनके नोटिस के लिए घेरा, और बार-बार, एक दर्जन से अधिक बार यह पूछा कि उन्होंने अपने नोटिस में प्रोफेसर खान से जिन लाईनों के लिए जवाब मांगा है, खान की पोस्ट में वो लाईनें हैं कहां, तो आयोग अध्यक्ष की बोलती बंद हो गई, उन्हें किसी कागज में वे लाईनें नहीं दिखीं जिनका जिक्र करते हुए प्रोफेसर खान को नोटिस जारी किया गया था।

आज देश में जब ये दोनों मामले समानांतर चल रहे हैं, अलग-अलग लेकिन एक ही साथ खबरों में बने हुए हैं, तो यह हैरानी होती है कि एक प्रदेश की भाजपा सरकार, और दूसरे प्रदेश की भाजपा सरकार का दो बयानों पर यह कैसा रूख है! एक में मंत्री की बदजुबानी, और उसकी नफरती बातों पर हाईकोर्ट, और सुप्रीम कोर्ट अपना घंटों का वक्त लगा रहे हैं, और दूसरी तरफ एक मुस्लिम प्रोफेसर की लिखी हुई बहुत साधारण बातों को लेकर उसे महिलाविरोधी, और फौजविरोधी साबित किया जा रहा है। ये दोनों मामले सुप्रीम कोर्ट तक अलग-अलग पहुंचे हुए हैं, एक मामले में तो अदालत का शुरुआती रूख दिख गया है, और दूसरे मामले में हमारा ख्याल है कि प्रोफेसर खान को अदालत से तुरंत राहत मिलेगी, और हरियाणा पुलिस को झिडक़ी। देखते हैं क्या होता है। आज जब भारत के सर्वदलीय सांसद बाहर जाकर दुनिया को भारत के रूख से सहमत कराने में लगे हैं, तब मध्यप्रदेश और हरियाणा के ये दो मामले भारत सरकार के रूख को कमजोर करने में लगे हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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