संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीका क्या एक धर्मान्ध तानाशाह चुनना पसंद करेगा
29-Jul-2024 4:38 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : अमरीका क्या एक धर्मान्ध  तानाशाह चुनना पसंद करेगा

अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कुछ बुनियादी सवाल खड़े कर रहा है। ट्रंप ने अभी लोगों को हैरान करने वाला एक बयान दिया है। एक चुनावी रैली में उसने मंच और माईक से कहा- ‘ईसाईयों बाहर निकलो, और सिर्फ इस बार वोट कर दो। फिर आपको वोट डालने की जरूरत ही नहीं होगी। चार साल में सब सही कर दिया जाएगा। मेरे प्यारे ईसाईयों, आपको फिर वोट डालने की जरूरत नहीं होगी, मैं आपसे प्यार करता हूं।’ बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि पहले भी कई बार ट्रंप ने दुनिया के तानाशाहों और बेकाबू शासकों की तारीफ की है। इनमें रूस के पुतिन, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन, और उत्तर कोरिया के तानाशाह किंग जोन ऊन के नाम शामिल हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि ट्रंप ने किसी वक्त हिटलर की कुछ बातों की भी तारीफ की थी। लोगों को याद होगा कि पिछला राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद जब ट्रंप के समर्थकों ने ट्रंप के उकसावे पर अमरीकी संसद पर हमला बोला था, तो वहां भी ईसाई धर्म से जुड़े झंडे लिए हुए लोग थे, बहुत से लोग हमले के वक्त प्रार्थना भी कर रहे थे, कुछ लोगों ने लकड़ी का सलीब उठाया हुआ था, और कई ट्रंप समर्थकों ने उसे ईसाई धर्म बचाने वाला बताया था। 2020 के चुनाव में भी ट्रंप अपने चुनाव प्रचार में धर्म का मुद्दा बार-बार उठाते थे, और अपने प्रतिद्वंद्वी बाइडन को ईश्वर विरोधी बताते थे। अब 2024 के चुनाव में उन्होंने एक बार फिर ईसाई धर्म का फतवा दुहराना शुरू किया है। अमरीका की एक शोध संस्था का अंदाज है कि वहां की करीब 70 फीसदी आबादी ईसाई है।

अब यह देखें कि ट्रंप जो लोकतंत्र विरोधी फतवा दे रहे हैं कि इस बार के वोट के बाद वोट की जरूरत ही नहीं रहेगी, इसे लेकर यह याद पड़ता है कि किस तरह डेमोक्रेटिक पार्टी ट्रंप को लोकतंत्र के लिए खतरा बताते आई है। और अभी ट्रंप के इस बयान पर जब अलग-अलग लोगों से पूछा गया, तो वहां के एक प्रमुख वकील ने सोशल मीडिया पर लिखा- ये ईसाई राष्ट्रवाद नहीं है, ट्रंप लोकतंत्र को खत्म करने, और ईसाई देश बनाने की बात कर रहे हैं। एक अभिनेता ने, ट्रंप के बयान कि इस बार के बाद वोट डालने की जरूरत ही नहीं होगी, सोशल मीडिया पर पूछा- लेकिन अगर मैं फिर से वोट डालना चाहूं तो? एक बड़े टीवी चैनल एनबीसी की कानूनी टिप्पणीकार ने कहा- दूसरे शब्दों में कहें तो ट्रंप राष्ट्रपति चुने गए, तो वो व्हाईट हाऊस कभी नहीं छोड़ेंगे। एक राजनीतिक टिप्पणीकार ने कहा- वो, ट्रंप ने 2028 के चुनाव को रद्द कर दिया। एक डेमोक्रेटिक प्रवक्ता ने कहा- जब हम ये कहते हैं कि ट्रंप लोकतंत्र के लिए खतरा है, तो हम यही बताने की कोशिश कर रहे होते हैं, जो ट्रंप ने अब कहा है। एक प्रमुख पॉडकॉस्टर ने कहा- ये ड्रील नहीं है, लोकतंत्र खतरे में है।

सच बात यही है कि ट्रंप की लोकतंत्र पर कोई आस्था नहीं है, और वे धार्मिक मामलों में बहुत ही कट्टर हैं। ऐसे में अब अचानक उन्हें ईसाई धर्म की जरूरत इस हद तक क्यों पड़ रही है, यह समझने की जरूरत है। मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन के मुकाबले ट्रंप वहां के रिपब्लिकन वोटरों, और अपने दीवानों के बीच शोहरत के सैलाब पर तैर रहे थे। लेकिन जैसे ही बाइडन ने चुनाव न लडऩे की घोषणा की, खुलकर कमला हैरिस को प्रत्याशी बनाने की वकालत की, दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों की शोहरत के आंकड़े एकदम से बदल गए। ताजा सर्वे में पता लग रहा है कि उम्मीदवारी की संभावना के कुछ ही दिनों में कमला हैरिस ट्रंप को कड़ी टक्कर देने की हालत में आ गई हैं। अब जब ट्रंप को पहले जीती हुई दिख रही बाजी, आज हाथों से फिसलते हुए दिख रही है, तो उन्हें धर्म और राष्ट्रवाद ये दो हथियार सूझ रहे हैं। उन्होंने तुरंत ही इन दो बंदूकों को बैसाखियों की तरह एक-एक कांखतले टिका लिया है, और इनके सहारे से वे जीत की मंजिल तक पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं। अमरीका के शिक्षित या विकसित होने से वहां धर्मान्धता कम होने की कोई उम्मीद नहीं करना चाहिए। ऐसे में ईसाई धर्म का फतवा देकर अगर ट्रंप खुलकर यह मुनादी कर रहे हैं कि इस बार वोट देने के बाद आगे कभी वोट देने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी, तो वे संसद पर हमले के दर्जे की किसी तानाशाही की तरफ इशारा भी कर रहे हैं। जिन नेताओं का मिजाज अमर होने और तानाशाही का रहता है, वे कभी उग्र राष्ट्रवाद का फतवा देकर अपने देश के झंडे के पीछे छुप जाते हैं, या फिर धर्म का फतवा देकर लोगों के बीच एक धार्मिक उन्माद पैदा करते हैं। ट्रंप यह कोई अनोखी तरकीब इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, दुनिया में कई नेता ऐसा कर चुके हैं।

अब सवाल यह उठता है कि जो अमरीका अपने घरेलू लोकतंत्र पर गर्व करता है, उस अमरीका में लोकतंत्र के खिलाफ, और धार्मिक उन्माद वाले, ऐसे फतवों को लोग बर्दाश्त कैसे कर सकते हैं? क्या वहां पर ईसाई धर्म की कट्टरता वाले लोग, बंदूकों की संस्कृति के हिमायती लोग, महिलाविरोधी मर्दानगी वाले लोग, और ट्रंप की तरह के बदचलन को बुरा न मानने वाले लोग, धर्म और राष्ट्रवाद के फतवों पर अगला अमरीकी राष्ट्रपति चुनेंगे? यह देखना दिलचस्प है कि विपक्षी उम्मीदवार की जरा सी शोहरत दिखते ही रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार, और पिछले राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने लोकतंत्र और सभ्यता दोनों के कपड़े उतार फेंके हैं, और अपने जन्म के कपड़ों पर उतर आए हैं। ऐसे नंगे को भी अगर अमरीकी जनता चुनती है, तो दुनिया में अमरीकी लोकतंत्र को मुंह छिपाने की जगह भी नहीं मिलेगी। दुनिया में लोकतंत्र का सरदार बना देश क्या एक ऐसा राष्ट्रपति चुनेगा जो कि अपने चुनाव को देश के भविष्य का आखिरी चुनाव कह रहा है, और जो संसद पर हमला करवाने के जुर्म में अदालती कटघरे में भी खड़ा है?  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 


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