संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रूस के हमले की मार इस बुरी तरह अजन्मे बच्चों पर
04-Apr-2022 5:27 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रूस के हमले की मार इस बुरी तरह अजन्मे बच्चों पर

यूक्रेन में रूसी हमले की रफ्तार शायद कुछ इलाकों में कुछ कम हुई है, और एक शहर में जहां से रूसी फौजों को पीछे हटना पड़ा है वहां पर एक साथ चार सौ से अधिक नागरिकों की लाशें मिली हैं। अब बचे हुए यूक्रेनियों को यह भी समझ नहीं आ रहा है कि चारों तरफ बिखरी लाशों का निपटारा कैसा किया जाए। और जब लाशें सड़ रही हों, लोगों के इलाज के लिए डॉक्टर न हों, तब क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि इन लाशों का डीएनए टेस्ट करवाकर रखा जाए ताकि बाद में इनके परिवार के लोगों को पता लग सके कि इनकी मौत हो गई थी, और क्या इनको दफन करने की जगह का भी कोई रिकॉर्ड रखा जा सकता है? जब जिंदा लोगों को बचाने के साधन-सुविधा न हों, तो फिर कफन-दफन की गुंजाइश कहां निकलती है। जिन परिवारों के लोग अपने लोगों को नहीं ढूंढ पाएंगे, आज जंग के बीच उन्हें मरा हुआ ही मान लिया जाएगा। जंग महज फौजों को खत्म नहीं करती है, किसी देश के इतिहास, वर्तमान और भविष्य सबको खत्म करती है।

आज दुनिया के अधिकतर देश रूस और यूक्रेन को लेकर अपनी रणनीति तय कर चुके हैं, और उनमें कोई बदलाव होते नहीं दिख रहा है। इन खबरों के आने के बाद भी उनमें कोई बदलाव आते नहीं दिखेगा कि यूक्रेन में चल रही बमबारी और धमाकों की वजह से वहां पर गर्भवती महिलाओं को समयपूर्व प्रसव हो रहा है, और ऐसे जल्द जन्मे बच्चे चार सौ और छह सौ ग्राम वजन के भी हैं जिन्हें बचा पाना आम हालात में भी नामुमकिन सा रहता, और आज तो गिर रही इमारतों के बीच, बिना बिजली, बिना दवाई किस तरह से इन बच्चों को बचाया जा सकेगा, बचाया जा रहा है, यह वहीं के समर्पित स्वास्थ्य कर्मचारी जानते हैं। कई ऐसे मामले युक्रेन के शहरों से सुनाई पड़ रहे हैं जिनके बारे में डॉक्टरों का कहना है कि आम दिनों में जितने समयपूर्व प्रसव होते हैं, जंग शुरू होने के बाद से उनकी संख्या तीन गुना बढ़ चुकी है। ऐसे जन्म के पहले कई माताएं तीन-तीन दिन तक बिना खाए-पिए लगातार सफर करके अस्पताल तक पहुंची हैं, और जन्म दिया है। ऐसे हालात में गर्भ में वक्त पूरा किए बिना पैदा बच्चों के बचने की गुंजाइश भी बहुत कम रह जाती है, लेकिन दुनिया के अलग-अलग देशों की अपनी-अपनी रणनीति और प्राथमिकताएं हैं। किसी को तेल चाहिए, किसी को फौजी साज-सामान चाहिए, किसी को अमरीका के खिलाफ हिफाजत चाहिए, किसी को अमरीका से मदद चाहिए, दुनिया का हर देश विदेश नीति के मामले में पहले अपने देश के प्रति अपनी नीति तय करता है, और उसके बाद ही वह किसी और मोर्चे पर इंसाफ के बारे में सोचता है। अभी कुछ ही वक्त पहले हमने लिखा था कि हर देश के विदेश मंत्रालय के बाहर बिना लिखा हुआ एक नोटिस टंगा होता है कि नैतिकता बाहर छोडक़र आएं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता के दिन लद गए हैं, और एक वक्त ऐसे महान नेताओं का दौर था जो पूरी दुनिया के भले की कोशिश करने में अपने देश के लोगों को भी नाराज करने का हौसला रखते थे, जिन्होंने पूरी इंसानियत का भला सोचकर अपने लोगों के हिस्से कुछ तकलीफ ले लेने को तकलीफ नहीं माना था। आज रूस की संपन्नता और उसके बाहुबल को देखते हुए दुनिया के कई देश यूक्रेन की तकलीफ को देखना भी नहीं चाहते क्योंकि उसे देखना महंगा पड़ेगा। जिस तरह हिन्दुस्तान में किसी दबंग से मार खाते किसी कमजोर को बचाने की हसरत कम ही लोगों में जाग सकती है, कुछ वैसा ही आज यूक्रेन के साथ हो रहा है, कुछ ऐसा ही इस सदी में इराक के साथ हुआ, अफगानिस्तान के साथ हुआ, सीरिया के साथ हुआ।

आज यूक्रेन की तकलीफ छोटी नहीं है, लेकिन वह विश्व इतिहास में अभूतपूर्व भी नहीं है। बहुत से देशों ने बड़ी ताकतों के हाथों इस तरह की मार खाई है, और दुनिया का इतिहास बताता है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी कागजी संस्था के सूखे आंसुओं से परे किसी देश ने नैतिकता के आधार पर शायद ही कभी किसी का साथ दिया हो, या किसी का विरोध किया हो। जब अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने गढ़े हुए झूठे सुबूतों के आधार पर इराक पर हमला किया था, तो संयुक्त राष्ट्र के सारे विरोध के बावजूद दुनिया के देश अमरीका के साथ बने रहे, और हमले में भागीदार भी रहे। जिन जनसंहार के हथियारों के इराक में होने का दावा अमरीका ने किया था, उनमें से कोई हथियार वहां नहीं निकला, फिर भी इराक के मुखिया सद्दाम हुसैन को मौत की सजा दे दी गई। दुनिया के अनगिनत देशों में अमरीका ने ऐसे हमले किए, लेकिन इनका विरोध महज उन देशों ने किया जो अमरीका का विरोध वैसे भी कर रहे थे। इसलिए विश्व राजनीति में अपने लिए सस्ता तेल, अपने लिए हथियार पाने का मौका छोडक़र शायद ही कोई देश नैतिकता के आधार पर दूसरे देश का साथ देता है। आज अमरीका और पश्चिम के जो देश यूक्रेन के साथ खड़े दिख रहे हैं, उनकी अपनी रणनीति रूस का विरोध करने की है, और रूस को नुकसान पहुंचाने के लिए ये देश यूक्रेनी फौजों और नागरिकों की जिंदगी की कीमत पर भी इस जंग को जारी रखना चाहते हैं, जारी रखे हुए हैं।

विश्व इतिहास इस बात को अच्छी तरह दर्ज करेगा कि दुनिया की एक महाशक्ति रूस ने जब एक बेकसूर यूक्रेन पर हमला किया था, और वहां वक्त से पहले पैदा होने वाले बच्चे इस तरह मर रहे थे, तब कौन-कौन से देश इसे अनदेखा कर रहे थे।
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