संपादकीय

छत्तीसगढ़ का एक वीडियो कल से सोशल मीडिया पर तैर रहा था, और उसने देखने वालों को बड़ा विचलित भी कर दिया। स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव के अपने इलाके सरगुजा में एक सरकारी अस्पताल में सात साल की एक गरीब बच्ची गुजर गई। उसके शव को घर ले जाने के लिए जब कोई सरकारी गाड़ी नहीं मिल पाई तो उसका पिता उसे कंधे पर लेकर ही 8-10 किलोमीटर पैदल गया। इस वीडियो ने उन अच्छे-अच्छे शहरी लोगों को भी हिलाकर रख दिया जिनके मन में आमतौर पर सबसे गरीब तबके के लिए कोई हमदर्दी नहीं होती है, और उन्हें मिलने वाली कुछ छोटी-मोटी सरकारी रियायतें जिन्हें खटकती ही रहती हैं। फिलहाल स्वास्थ्य मंत्री ने ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी को हटा दिया है, जांच के आदेश दिए हैं, और स्वास्थ्य विभाग के अमले को अधिक संवेदनशीलता से काम करने के लिए कहा है।
चूंकि यह मामला एक गरीब बाप के कंधे पर उसकी बेटी की लाश का था, इसलिए यह तुरंत खबरों में आ गया, और उसने लोगों को विचलित भी कर दिया। लेकिन यह बर्ताव सिर्फ अस्पताल के कर्मचारियों का हो, ऐसा भी नहीं है। यही बर्ताव तहसील के कर्मचारियों का होता है, पुलिस का होता है, जंगल विभाग के कर्मचारियों का होता है, और बिना किसी अपवाद के सरकार के हर विभाग का ऐसा ही बर्ताव होता है। यह तो मौत और लाश की बात है जो कि सरकारी अस्पताल में ही अधिक दिखती है, वरना पटवारी के दफ्तर में भी हक का कागज पाने के लिए भी सबसे गरीब और बेबस को भी जिस तरह हजारों रूपये देने पड़ते हैं, महीनों तक चक्कर खाने पड़ते हैं, वह भी लोगों को जिंदा लाश बनाकर छोडऩे वाली बात रहती है। जिन लोगों ने सरकारी ऑफिसों के संवेदनाशून्य बर्ताव के एक हिन्दी सीरियल को देखा होगा, उन्हें यह बात मालूम होगी कि छत्तीसगढ़ जैसे बहुत से प्रदेश हैं जहां पर हर नागरिक का हाल मुसद्दीलाल सरीखा है।
अभी दो ही दिन पहले की ही बात है इसी छत्तीसगढ़ में एक जिले मुंगेली में सिटी कोतवाली के थानेदार का एक ऑडियो सामने आया जिसमें वह बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करवाने वाली महिला को पैसे लेकर समझौता करने के लिए दबाव डाल रहा है, और यह धमकी भी दे रहा है कि शिकायत वापिस नहीं लेने पर अदालत में कैसे बर्ताव का सामना करना पड़ेगा। इस मामले में चूंकि समझाने के नाम पर धमकाने की ऑडियो रिकॉर्डिंग चारों तरफ फैल गई थी, एसपी को मजबूरी में कार्रवाई करनी पड़ी, वरना बलात्कार के आरोपी को बार-बार फरार बताकर गिरफ्तारी से बचाया जा रहा था। ऐसा ही हाल प्रदेश में हर उस गरीब और कमजोर का है जो कि सत्ता के किसी ताकतवर तक पहुंच नहीं रखते, उन पर दबाव नहीं डाल सकते। गरीबी, लोगों के बुनियादी हक खत्म करने की एक पर्याप्त वजह है, और आये दिन उसकी मिसालें सामने आते रहती हैं। आज प्रदेश में आदिवासी सरकार के बर्ताव के कुछ मुद्दों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। भाजपा शासन के पन्द्रह बरसों में आदिवासी हक के लिए लडऩे वाली कांग्रेस पार्टी की सरकार आने के बाद बस्तर के आदिवासियों के लिए मानो कुछ भी नहीं बदला है। अभी भी बेकसूर आदिवासियों को नक्सली बताकर मारना जारी है, उनकी गिरफ्तारी जारी है, उनके खिलाफ मुकदमे जारी हैं। ऐसी बहुत सी वजहों को लेकर प्रदेश के आदिवासी बहुत बेचैन हैं, लेकिन आदिवासी इलाकों पर राज करने वाले वन विभाग को आज भी प्रदेश का सबसे भ्रष्ट विभाग माना और जाना जाता है। पुलिस विभाग का भी कमोबेश ऐसा ही हाल है, और ऐसे विभागों में जिस तरह के पूंजीनिवेश के बाद अफसर मैदानी पोस्टिंग पाते हैं, उसकी भरपाई के लिए वे संवेदनाशून्य तरीके से काम करते हैं, और ऐसे में लोगों के हक सबसे पहले बेचे जाते हैं। सरकार के किसी एक विभाग, या कुछ चुनिंदा विभागों की ही बात नहीं है, यह बात पूरे के पूरे सरकारी अमले में संवेदनशीलता गायब होने की है, और बेकाबू भ्रष्टाचार की भी है। गांव-गांव से गरीबों की शिकायतें आना थमता ही नहीं है कि सरकारी दफ्तरों से वास्ता पडऩे पर, अदालतों से वास्ता पडऩे पर उनका कैसा बुरा हाल होता है। ऐसी नौबत जब नहीं सुधरती है, तो जनता सरकारों को सुधार देती है।
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